बिहारशरीफ/पटना (ब्यूरो रिपोर्ट)। बिहारशरीफ शहर के अखाड़ा में महान संत बाबा मणिराम की समाधि है. यह देश का अकेला ऐसा स्थल है जहां लोग आकर लंगोट चढ़ाते हैं और पूजा कर मन्नतें माँगते है. सूफी संतों की धरती कही जाने वाली बिहारशरीफ की धरती और यहां के बाबा मणिराम की समाधि काफी प्रसिद्ध है. लंगोट अर्पण मेले की खासियत यह है कि मेले की शुरुआत सबसे पहले जिला प्रशासन द्वारा लंगोट अर्पण कर की जाती है.
लंगोट अर्पण मेले के पीछे की कहानी
1248 ई. में बाबा मणिराम हरिद्वार से बिहारशरीफ आए और शहर के दक्षिणी छोर पर स्थित पिसत्ता घाट जिसे आज बाबा मणिराम अखाड़ा के नाम से जाना जाता है, पर डेरा डाला था. सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ उन्होंने स्वच्छ मन के लिए स्वच्छ तन जरूरी है का उपदेश दिया था. इसके लिए एक अखाड़ा बनवाया जो आज भी मौजूद है. लोग यहां मल्लयुद्ध करते थे. खुद बाबा भी बहुत बड़े मल्लयुद्ध योद्धा थे. सन 1300 ईस्वी में बाबा ने समाधि ली थी. बाद में इनके चार शिष्यों में से दो अयोध्या निवासी राजा प्रह्लाद सिंह और वीरभद्र सिंह तथा दो अन्य बिहारशरीफ के कल्लड़ मोदी और गूही खलीफा ने भी समाधि ली थी. यहां मां तारा मंदिर, सूर्य मंदिर तालाब और यज्ञशाला, शिवालय सहित प्राचीन मूर्तियां मौजूद है. यहां के शिवालय का महत्व इस कारण काफी है कि वहां एक ही मंदिर में एक साथ चार शिवलिंग स्थापित है. मांगलिक कार्यों लिए बाबा मणिराम अखाड़ा काफी प्रसिद्ध है.
कब शुरू हुआ लंगोट चढ़ाने का प्रचालन
कहा जाता है कि पटना में पदस्थापित एक अवकारी विभाग के अधिकारी कपिलदेव प्रसाद को पुत्र नहीं था. पुत्र प्राप्ति के लिए वे देश के कोने-कोने में मत्था टेक चुके थे, परंतु उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हो पायी. कपिलदेव प्रसाद को जब बाबा मणिराम की समाधि की ख्याति पता चली तो वे बाबा की समाधि पर जाकर घंटों याचना की. कहा जाता है कि उसी वर्ष उन्हें पुत्र की प्राप्ति हो गयी. इसी खुशी में विद्धानों से मत लेकर वे 6 जुलाई 1952 ई. को गुरु पूर्णिमा के दिन, लंगोट अर्पण की शुरुआत की. पहली बार समाधि पर लंगोट चढ़ाने के इस अद्भुत दिन बाबा की समाधि पर शहर के कई अधिकारी मौजूद थे.
गुरु पूर्णिमा से शुरू होकर पांच दिनों तक लगता है यह भव्य मेला
वैसे तो यहां सालों भर लोग लंगोट अर्पण करने आते हैं लेकिन प्रत्येक साल आषाढ़ पूर्णिमा यानी गुरु पूर्णिमा से भव्य लंगोट अर्पण मेला शुरू होता है. पांच दिनों तक चलने वाले इस मेले में भारी भीड़ उमड़ती है. पूरे प्रदेश ही नहीं दूसरे राज्यों से भी लोग यहां लंगोट अर्पण करने आते हैं. 1973 से ही बाबा की समाधि की सेवा कर रहे पुजारी आनंद मिश्रा ने बताया कि यह दर्शनीय स्थल मनोकामना मंदिर के रूप में भी प्रसिद्ध है. उन्होंने यह भी बताया कि स्वस्थ शरीर और स्वच्छ मन के लिए मल्लयुद्ध पर बाबा मणिराम का ज्यादा जोर था. इस कारण लंगोट चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है.
बाबा मन्नतें पूरी करते हैं
कहा जाता है कि लंगोट बाबा से मांगी गई मन्नत जरूर पूरी होती हैं. यहां पूर्व राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर कई बड़ी हस्तियों ने आकर माथा टेका है. बाबा मणिराम के प्रताप का फल है कि यहां का साम्प्रदायिक सद्भाव हमेशा बना रहता है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शुक्रवार को लंगोट चढ़ाकर किया मेले का उद्घाटन
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शुक्रवार को बाबा मणिराम अखाड़ा पर एक सप्ताह तक चलने वाले लंगोट अर्पण मेला का उद्घाटन किया. मुख्यमंत्री ने मंदिर प्रांगण में पहुंचकर पूजा अर्चना की और बिहार की सुख, शांति एवं समृद्धि की कामना की. मंदिर प्रांगण में पहुँचने पर मुख्यमंत्री का पुरोहित आनंद मिश्रा ने पूजा अर्चना कराई. मंत्रोचारण के बाद मुख्यमंत्री ने लंगोट चढ़ा कर सूबे में खुशहाली एवं अमन चैन की कामना की. इसके पश्चात मुख्यमंत्री परिसर में बने सामुदायिक भवन गए, जहाँ स्थानीय विधायक व न्यास समिति के सचिव अमर कांत भारती ने मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन सौंपा. इस अवसर पर ग्रामीण कार्य मंत्री शैलेष कुमार, ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार, सांसद कौशलेन्द्र कुमार, विधायक डॉ सुनील कुमार, विधायक रवि ज्योति कुमार, विधायक चंद्रसेन प्रसाद, विधान पार्षद हीरा बिंद, सहित अन्य जनप्रतिनिधि, मुख्यमंत्री के सचिव मनीष कुमार वर्मा, मुख्यमंत्री के विशेष कार्य पदाधिकारी गोपाल सिंह, पुलिस उप महानिरीक्षक पटना प्रक्षेत्र राजेश कुमार, जिलाधिकारी नालंदा डॉ त्याग राजन एसएम, पुलिस अधीक्षक नालंदा सुधीर कुमार पोरिका सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति तथा बड़ी संख्या में श्रद्धालू उपस्थित थे.
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