पटना (आशीष झा, वरिष्ठ संवाददाता) | कश्मीर को लेकर पाकिस्तान अब अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है. न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे अपने लेख में इमरान एटमी जंग का अंदेशा जता चुके हैं. सवाल है क्या भारत और पाकिस्तान के बीच हो सकती है एटमी जंग?
2002 में पाकिस्तान में एटमी हथियार की हिफाजत करने वाले एसपीडी यानी स्ट्रैटजिक प्लांस डिवीजन के पहले प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल खालिद किदवई ने चार हालात का जिक्र किया था जिनमें पाकिस्तान भारत के खिलाफ एटमी हथियार का पहले इस्तेमाल कर सकता है-
अगर भारत पाकिस्तान के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लेता है.
अगर भारत पाकिस्तानी सेना, एयरफोर्स या नेवी को बहुत भारी नुकसान पहुंचाता है.
अगर भारत पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को गंभीर तौर पर कमजोर कर देता है.
अगर भारत पाकिस्तान को राजनीतिक तौर पर अस्थिर कर देता है या पाकिस्तान में आंतरिक अशांति की बड़ी साजिश को अंजाम देता है.
पाकिस्तान अच्छी तरह जानता है कि वो भारत से एटमी जंग में दो तरह से कमतर है. एक ओर भारत इंटरसेप्टर तकनीक के जरिए पाकिस्तानी मिसाइलों को हवा में ही खत्म कर सकता है तो वहीं उसके पास अमेरिका, रुस, चीन और ब्रिटेन की तरह ट्रायड यानी जमीन, हवा और एटमी सबमरीन के जरिए स्टैटिक और मोबाइल दोनों तरह के लांचिंग पैड के जरिए हमला करने की तकनीक मौजूद है जो पाकिस्तान के पास नहीं है.
एटमी जंग की शुरूआत हो गई तो क्या होगा ?
पाकिस्तान क्या करेगा ?
अगर कभी भारत और पाक के बीच एटमी जंग की शुरूआत होती है तो ये तय है कि पहला वार पाकिस्तान ही करेगा. सवाल है अगर पाकिस्तान हमला करता है तो वो क्या करेगा ? किन मिसाइलों से हमला करेगा पाकिस्तान. अगर एक वार सिनारियो इस तरह का बनता है जहां कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में एक साथ भारतीय सेना पाकिस्तानी सरहद में दाखिल होती है तो पाकिस्तान जवाब में टैक्टिकल न्यूक्स यानी छोटी दूरी के एटमी हथियार जैसे हत्फ 9यानी नसर से एटमी जंग की शुरूआत कर सकता है और बाद में लंबी दूरी के बैलिस्टिक मिसाइल का इस्तेमाल किए जाने की आशंका है. लेकिन पाकिस्तान को सबसे ज्यादा अगर डर किसी से है तो वो है भारत की ब्लू वाटर नेवी से. ब्राउन वाटर नेवी से इसका सामना करने के लिए पाकिस्तान बाबर 3 सबमरीन लांच्ड क्रूज मिसाइल को कराची से छोड़ सकता है. अगर उसके निशाने पर अंडमन में भारत का एटमी बेस हो तो उसके लिए वो गौरी 3 (1600किमी) और शाहीन (2500किमी) का इस्तेमाल कर सकता है. बात एयरफोर्स की की जाए तो पाकिस्तान के पास अब भी कुछ पुराने F-16 फाइटर प्लेन बचे हैं जिन्हें एटमी जंग के लिए खास तौर पर मोडीफाई किया गया है ताकि इन पर एटमी मिसाइल ले जाया जा सके. कराची से मिराज 3 और चीनी मदद से बने JF-17 के जरिए 350 किमी रेंज वाले न्यूक्लियर ALCM- Air-Launched Cruise Missile छोड़ सकता है. अब ये हमला चाहे टैक्टिकल हो या बैलिस्टिक, लेकिन भारत के पास इन्हें रोकने के लिए इंटरसेप्टर रेंज यानी अमेरिका के पैट्रियट मिसाइल की तरह का सिस्टम मौजूद है.
भारत क्या करेगा ?
अगर जंग के हालात बने तो भारत क्या करेगा ? भारत पहले ही कह चुका है कि वो एटमी हमले की शुरूआत नहीं करेगा. लेकिन इसके साथ ही अगर भारत को पाकिस्तानी टैक्टिकल न्यूक्स के मुकाबले के लिए एटमी हथियार का इस्तेमाल पाकिस्तान के खिलाफ करना पड़ा तो भारत की कोशिश ऐसे हमले की होगी जिसके बाद पाकिस्तान बैलेस्टिक मिसाइल से सेकेंड स्ट्राइक न कर पाए. यानी एक साथ पाकिस्तान के तमाम SPD यानी स्ट्रैटजिक प्लांस डिवीजन सेंटर्स, एटमी रियेक्टर, गैस सेंट्रीफ्यूज सेंटर्स, मिसाइल लांचिंग साइट्स, मिलिटरी मिडियम वेव कम्यूनिकेशन सेंटर्स, मिसाइल ट्रेकिंग एंड कमांड सेंटर्स और सेटेलाइट कम्यूनिकेशन सेंटर्स पर एक ही वक्त MIRV -Multiple Independently Targetable Reentry Vehicle और MARV-Maneuverable Reentry Vehicle से हमला करने की होगी. कमांड अथोरिटी में कन्फ्यूजन क्रिएट करने के लिए न्यूक्लियर कमांड अथोरिटी प्रोटोकॉल में जिनका स्थान टॉप 5 में होगा, वो ब्रह्मोस के निशाने पर लिए जाएंगे. लेकिन पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा प्रलय लेकर आएंगे अरिहंत और किलो क्लास न्यूक्लियस सबमरीन जिनके K4 और k15 सागरिका मिसाइल से दहल जाएगा पाकिस्तान. इसके बाद बारी आएगी एयरफोर्स यानी कारगिल का कहर …. मिराज 2000H और जगुआर की . अगर उस वक्त तक फ्रांसीसी रफायल फाइटर प्लेन आ गए तो वो इस जंग में अहम भूमिका निभाएंगे, अगर नहीं तो रुस से आए Su 30 mki इस जंग में अहम भूमिका निभाएंगे. ग्राउंड सपोर्ट की बात करें तो पृथ्वी, अग्नि 1 और अग्नि 2 पर खास कर पाकिस्तान का नाम ही लिखा है. अगर नापाक पाकिस्तान की मदद को चीन आया तो अग्नि 3, अग्नि 4 से लेकर अग्नि 6 तक के जरिए भारत चीन को प्रशांत महासागर तक जाकर उसकी औकात बता सकता है.
अगर भारत –पाक के बीच एटमी जंग हुआ तो नतीजा क्या होगा ?
यही मनाइए कि ये जंग कभी न हो, क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो धरती पर प्रलय आ जाएगा. MAD यानी Mutually Assured Destruction – की रणनीति के हिसाब से मूवेबल लांचर के जरिए दोनों देश मिलकर हिरोशिमा की तरह के तकरीबन 100 न्यूक्लियर मिसाइल छोड़ पाएंगे. इससे….
- कम से कम दो करोड़ लोगों की मौत तत्काल हो जाएगी. इसके बाद प्रभावित इलाकों में अगले एक साल में कम से कम औसतन दस लाख लोगों की मौत हर रोज होती रहेगी .
- एक साल के बाद, 130 करोड़ के भारत और 23 करोड़ के पाकिस्तान में जिंदा और स्वस्थ लोगों की तादाद करोड़ में नहीं चंद लाखों में होगी.
- करीब पचास लाख टन रेडियोएक्टिव काला धुआं फौरन बनेगा जो तेजी से 50 किमी ऊपर जाकर स्ट्रेटोस्फेयर में मिल कर दुनिया भर में फैल जाएगा और सूरज की रोशनी को ढंक लेगा . अब सफेद बादल और नीले आकाश की बात सिर्फ किताबों में होगी और धरती पर बहुत कम जगह ऐसी होगी जहां के लोग सूरज की रोशनी को देख पाएंगे. बाकी की दुनिया आने वाले कई सालों तक रोशनी का दीदार नही कर पाएगी.
- धरती को बचाने वाला ओजोन लेयर करीब-करीब 70 % तक खत्म हो जाएगा.
- धुएं के लगभग दस दिन के अंदर अगली तबाही गिरते तापमान से होगी. प्रभावित इलाको में तापमान में बहुत तेज गिरावट दर्ज होगी और गर्म वातावरण वाले इलाकों में हिम युग आ जाएगा, जिससे एशिया, यूरोप और अमेरिका में अनाज उगने बंद हो जाएंगे.
- बनस्पतियों में से कुछ रेगिस्तानी और कुछ बर्फीले इलाकों में पाए जाने वाले ही शायद बच रहेंगे. पौधों का हरा रंग देखने के लिए जिंदा लोगों को पुरानी तस्वीरों से गुजारा करना होगा.
एटमी हथियार क्या है? – दरअसल न्यूक्लियर वार हेड हथगोले की तरह का वन पीस हथियार नहीं होता. इसमें एक एटमी वार हेड होता है जो जंग शुरू होने से पहले तक हमेशा ही अनमेट यानी निष्क्रिय अवस्था में होता है. यानी खाली वार हेड अलग रहता है और उसमें डाला जाना वाला फिसाइल मैटेरियल जैसे HUE या Pu 239 और फ्यूजन फ्यूल अलग कहीं दूसरे ठिकाने पर रखा रहता है. अगर वार हेड और फ्यूजन फ्यूल मिल भी जाए तो भी वार हेड में गैस सेंट्रीफ्यूज से फ्यूल डालते ही वो ऑटो लॉक हो जाता है जिसे किसी और ठिकाने से MW कम्यूनिकेशन के जरिए कंप्यूटर जेनरेटेड स्पेशल कोड डायल कर ही अनलॉक किया जा सकता है. अनलॉक करने के बाद ट्रिगर ऑन करना होता है यानी न्यूट्रान जेनरेटर से पार्टिकल एक्सीलरेटर को एक्टिवेट किया जाता है जिसकी बेहद जटिल कोडिंग होती है . अगर इतना कुछ कर लिया तब बारी आती है डिलीवरी मेकेनिज्म यानी फाइटर प्लेन या लांचिंग पैड की . ये भी हाथ में आ गया तो इसके बाद बारी आती है ट्रेकिंग एंड कमांड सेंटर की जो सेटेलाइट के जरिए टैक्टिकल या बैलिस्टिक मिसाइल को लांच और कंट्रोल करता है. इसमें दुर्घटना या आतंकी साजिश से बचा जा सके इसके लिए NCA नेशनल कमांड अथॉरिटी के जरिए हरेक स्टेज का ग्लोबल प्रोटोकॉल फॉलो किया जाता है. ये प्रोटोकॉल इतना सटीक है कि आज तक दुनिया में कहीं भी ऐसा कोई हादसा अब तक पेश नहीं आया है और खास कर भारत और पाकिस्तान दोनों देश इस मामले में तो इतने सतर्क हैं कि 2004 से ही दोनों देश किसी मिसाइल का परीक्षण भी करते हैं तो एक दूसरे को एडवांस में ही सारी जानकारी दे देते हैं ताकि अगर किसी वजह से वो परीक्षण फेल हो जाए तो इसे गलती से भी एटमी जंग की शुरूआत न माना जाए और हिफाजत के हर मुमकिन उपाय पहले से ही तैयार रहें. यानी जवाब साफ है आतंकी एटमी बम में इस्तेमाल होने वाले फिसाइल फ्यूल तो हासिल कर सकते हैं लेकिन इनका दहशतगर्दी में इस्तेमाल करना कतई आसान नहीं है.