बिहार के वरीय अधिकारी विजय प्रकाश किसी पहचान के मोहताज नहीं है बिहार में काम करने वाले अमूमन सभी लोग उन्हें एक कुशल प्रशासक के रूप में जानते हैं और उनकी मृदुभाषिता ने बिहार में लोगों में उनकी एक अलग छाप छोड़ी है. जब वे सरकारी कार्य से अवकाश प्राप्त हो रहे थे तब विजय प्रकाश द्वारा एक लिखी गई कविता ने उनकी कल्पनाओं को एक विशाल दृष्टि दिया हैं जो कई कहानियाँ कहता है आने वाले दिनों के काम को लेकर भी वे कई इशारे करते हैं … अगला कदम कविता के रूप में आपके सामने हैं.
अगला कदम
आइए अब खास से हम आम बन जाएँ
उपाधियों से अलग एक पहचान बन जाएँ
स्वप्न लेकर चल पड़े थे खास दुनिया में
कुछ अधूरे रह गए हैं आज भी उनमें
आम से जुड़कर उन्हें साकार कर जाएँ
आइए अब खास से हम आम बन जाएँ
सृजन के संसार में जो गीत लिखे थे
गा न सके व्यस्तता में खास दुनिया के
धुन नयी उनपर सजाकर आम कर जाएँ
आइए अब खास से हम आम बन जाएँ
आम जन के उकेरे चित्र जो हमने
रंगों से वंचित रह गए हैं उनके कई कोने
रंग उनमें आज भरकर आम कर जाएँ
आइए अब खास से हम आम बन जाएँ
संकल्प लिया था आम आँसू को सुखाने का
आँसुओं की नदी सिकुड़ तालाब बच गयी
आम में जाकर उसे पूरा सुखा जाएँ
आइए अब खास से हम आम बन जाएँ
चल पड़े थे सफर पर अकेले तो क्या
रास्ते में मित्रों का साथ मिल गया
एकजुट हम आवाम की आवाज बन जाएँ
आइए अब खास से हम आम बन जाएँ
स्नेह पुष्पों से सजा के रथ दिया तूने
ज्ञान अनुभव का भी पाथेय भेजा है
इन्हें लेकर नए पथ पर प्रयाण कर जाएँ
आइए अब खास से हम आम बन जाएँ
शुक्रिया जिन्होंने सफर में हौसला दिया
शुक्रिया जिन्होंने सितारों तक पहुँचा दिया
इसके आगे का जहाँ अब आम कर जाएँ
आइए अब खास से हम आम बन जाएँ
उपाधियों से अलग एक पहचान बन जाएँ
— विजय प्रकाश