‘हम बिहार में चुनाव लड़ रहे हैं ‘
हम बिहार में चुनाव लड़ रहे हैं …हरिशंकर परसाई के व्यंग्य पर आधारित इस एकल नाटक के सैकड़ों शो अब तक देश दुनिया में , दिल्ली से लेकर गाँव – चौपाल तक में हो चुके है .राष्ट्रीय नाट्य विधालय से अभिनय में स्नातक रंगकर्मी विजय कुमार के अभिनय शिल्प की एक अलग पहचान है.लंदन से संवाद पर विशेष प्रशिक्षण प्राप्त विजय कुमार के हर काम में कुछ नया करना, ईमानदारी और समर्पण के साथ काम को अंजाम देना इनकी खासियत हैं.उनके इस स्वभाव के कारण देश- विदेश के दर्शकों में उनकी अपनी एक अलग पहचान है. लोगों ने उन्हें नुक्कड़ ,मंच ,टीवी और फिल्मों में भी देखा है और उनकी अभिनय की तारीफ़ आज भी करते है .हमने उनसे ‘हम बिहार में चुनाव लड़ रहे हैं’ एकल नाटक के जरिए बिहार में संस्कृति कर्म के विकास पर बातें की.कैसे बढ़े बिहार में संस्कृतिकर्म . रवीन्द्र भारती की प्रख्यात अभिनेता रंगकर्मी विजय कुमार से ख़ास बातचीत ..
‘हम बिहार में चुनाव लड़ रहे हैं’ इसकी परिकल्पना कैसे हुई ?
जब मैं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से स्नातक कर के निकला वर्ष 1995 में तब सबके जेहन में होता है सोलो करो एकल नाटक अब करना चाहिए.तब मैं और मेरे मित्र सत्यजीत शर्मा ने मिलकर एकल नाटक तैयार किया जो व्यंग्य पर आधारित है.मैंने अपनी प्रस्तुतियां करनी शुरू कर दी लेकिनकुछ कारण वश मेरे मित्र नहीं कर पाए और मैं आज भी इस नाटक को कर रहा हूँ .
पूरे देश में दर्शकों की क्या प्रतिक्रिया मिली ? कैसे दर्शकों से रूबरू हुए आप ?
हर कलाकार की अपनी तरह की ट्रेनिंग होती है .आप तरह तरह के ऑडियंस के बीच जाते हैं तो आपका कम्फर्ट लेवल बढ़ जाता है.जाने अनजाने ऑडियंस के बीच जाते ही अभिनेता को आतंरिक समझ हो जाती है और तब एक दरवाजा खुल जाता है .यहाँ कैसे नाटक होना चाहिए, इसकी पुरी प्लानिंग हो जाती है .अब अलग अलग जगहों पर अलग- अलग दर्शक मिलते हैं . राजनीति की समझ वाले दर्शक कम ही मिलते हैं तो उनके बीच कुछ नया भी करना पड़ता हैं.जहाँ तक क्रिया प्रतिक्रिया बात है कुछ कॉमिक तत्व को शामिल कर लिया तब ज्यादा संवाद स्थापित होने लगते हैं . कोई भी राजनीतिक समझ वहीँ होती है जहाँ पोलिटिकल अवरनेस हो . वहां लोग समझेंगे कि आप क्या कर रहे हैं . बिहार की राजनीति की समझ लोगों में है.बिहार से बाहर निकल कर देखें, आज जहाँ-जहाँ बिहार के लोग है वहां चीजे आसानी से हो जाती हैं .ऐसा लगता है जैसे आप अपने गाँव जवार में चाय की दुकान पर पहुँच गए.अपने लोगों के बीच में पहुँच गए.
राजनीति वहीँ पर विकसित होती है जहाँ पर अपने तरह की ख़ास परेशानियाँ होती है. परेशानियों से लड़ने की समझ पैदा होती है और जो जज्बा पैदा होता होता है वो बिहार में आपको मिलेगा ,बिहार के लोगों के बीच आपको मिलेगा .राजनीतिक समझ वहां पैदा होती है जहाँ दिक्कतें होती हैं.जहाँ यातना होती है वहां दृष्टी मिलती है. कई जगहों में ऑडियंस का समृद्ध कुनबा है .जैसे जयपुर ,गोवा जैसे जगहों पर लोग पोलिटिकल सन्दर्भों को एन्जॉय नहीं करते. वे अभिनेता के अंदर कुछ नया ढूंढते है. मसलन हाव भाव,अभिनय के तत्व, आंगिक और वाचिक अभिनय जैसे चीजों पर ज्यादा एन्जॉय करते हैं .इसी कारण दिल्लीविवि,जेएनयू,जबलपुर,उदयपुर,रायपुर इन जगहों पर मेरा कम्फर्ट लेवल ज्यादा रहता है .अभिनेता के अस्त्र- शस्त्र ही इन जगहों पर बहुत मायने रखते हैं. अंगसंचालन,गति,वाचिक अभिनय सब खोजते हैं दर्शक .इसके अलावा लोक तत्वों को भी लोग ज्यादा एन्जॉय करते हैं.
महान नाटककार दारियो फ़ो से भी कुछ प्रेरणा मिली है क्या ?
अलग अलग समय में मानव सभ्यता की अलग अलग बातें होती है. लोग अपने- अपने तरीके से काम कर रहे होते हैं.किसी न किसी रूप से उनके काम का जाने अनजाने इंटरेक्शन हो ही जाता है.हमे जो रानावि और अन्य जगहों से जो ट्रेनिंग मिली है. हमें रॉ, रस्ट और खुली जगह में काम करने में ज्यादा चैलेन्ज होता है और उसमे मजा भी आता है.चौक चौराहों,बस स्टैंड ,मंदिर ,स्कुल कॉलेज जैसे अप्रत्याशित जगहों पर काम करना अपने आप में एक चुनौती होती है .
बिहार में कला दिवस मनाया गया कलाकारों को सम्मानित किया गया, लेकिन कल्चरल इन्फ्रास्ट्रक्चर की बहुत कमी है ?
अभिनेता हो गीतकार हों उनको सम्मान तो मिलना ही चाहिए और उसकी सराहना भी की जानी चाहिए सबको करनी चाहिए .पर जहाँ सरकार की बात है उसकी अपनी सोंच और अपनी नीति होती है.कभी किसी ने कहा अमुक मेला से आयोजन से बिहार का नाम होगा कर दिया गया. बस कहने पर काम होता गया ,अब शत्रुघ्न सिन्हा थियेटर में मुर्खता की महान प्रतिमूर्ति है वो बिहार आकर नाटक कर के 30 लाख ले गए .फिल्म के लिए वे सम्मानीय है उनका सम्मान होना चाहिए.सरकार को इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रदान करना ही होगा बगैर उसके थियेटर का विकास कैसे होगा.मेरा मानना है कि पुरे देश में जो ग्रांट दिए जाते है वे बंद कर देने चाहिए.राज्य में जिला स्तर पर बड़ी- बड़ी रेपेट्री बने तो कम पैसे में अच्छा थियेटर हो सकता है.राजकोष खोल देने से संस्कृतिकर्म का विकास नहीं होता है.अब देखिये राज्यपोषित चीजों में राजा ,बादशाह होता है वो खास होता है .अब ख़ास है तो कुछ ख़ास करेगा .आयोजन के नाम पर खास चीजें होती रहती है.उसमें जनता भी भागीदार होती है?यही सबसे बड़ी कमी है अभी बिहार में.
आप भी बिहार से है और बिहार के बारे में जो कुछ भी परोसा गया है देश दुनिया में उस पर आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी ?
बिहार में शुरू से पढ़ने-पढ़ाने का माहौल रहा है.मीडिया में बिहार को गंदे तरीके से दिखाया गया,गलत प्रोजेक्ट किया गया.खैर अब तो लोगों की समझ बदली है.अब लोग कहते है बिहार से मतलब बन्दे में हैं दम. बिहार के लोगों का ये हुनर है. अब एक जेएनयू की घटना को जिस प्रकार से दिखाया गया ,उससे कितनी बड़ी शुन्यता आ गई है. बिहार में भी वही हाल हैं.इसकी भरपाई कल्चरल एरीना से ही हो सकती है.कल्चरल एरीना की अगर हम बात करें तों संस्कृति कहाँ से आती है संस्कार से.संस्कार कहाँ से आता है प्रकृति से और हम प्रकृति का दोहन ही कर रहे है.खैर प्रकृति ने बिहार को बहुत कुछ दिया है .बिहार में सबसे बड़ा तोहफा गंगा का किनारा है .जहाँ न जाने कितने काम हो सकते है .एक बहुत बड़ा भाग विकसित हो जाएगा. मंच बने स्थानीय कलाओं का विकास हो उनकी प्रस्तुति हो .लोगों के बीच ज्यादा से ज्यादा आपसी संवाद के अवसर बने .टूरिस्म के साथ- साथ संस्कृति का संरक्षण और प्रकृति का भी.ऐसा अगर वहां हो जाए तो तब बिहार कहाँ खड़ा होगा.बिहार के कण कण में अपार संभावनाएं हैं.इसके लिए सम्मिलित प्रयास करने होंगे.
बिहार में अब तक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का कोई केंद्र या विद्यालय क्यों नहीं स्थापित हो पाया ?हम बिहार में चुनाव लड़ रहे है नाटक में नए नए तत्व मिलते होंगे !
कुछ भी हो मुझे ऐसा लगता है कि किसी भी ट्रेनिंग का दूरगामी असर होता है.सरकार अगर इन्फ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध करा दे तो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय अपना केंद्र यहाँ खोल सकता है .सरकार इसमें दोषी है .सरकार के पास अपना ज्ञान नहीं है सम्मिलत प्रयास से कर के सरकार को दिखाना होगा.बताना होगा कि इसके क्या फायदे होंगे.तब सरकार जानेगी .वैसे नीतीश कुमार अच्छे आदमी है काम करने की समझ है उनमें और काम के लिए जाने भी जाते हैं.इन दिनों राजनीतिक विवशता भी है .काम नहीं हो पा रहे है.अभी बिहार में इतना मुर्खतापूर्ण कार्य हो रहा है किमत पूछिए.सारे इश्यु को दरकिनार कर सिर्फ शराबबंदी पर फोकस किया जा रहा है .हिटलर शाही वाली बात हो गई है. सड़क ,पुलिस प्रशासन में, कोर्ट में,स्कुल में, अस्पताल में ,हवा,पानी बिजली में क्या हो रहा है बिहार में? जो मूलभूत सुविधाएँ लोगों को मिलनी चाहिए थी क्या वो मिल पा रही है. इस बार लग रहा है कि उनके हाथ पाँव कुछ बंधे हुए नजर आ रहे हैं.
पटना में इन दिनों रंगकर्मी शारीरिक अभिनय पर कार्य कर रहे है कैसा लगता है सुन कर ?
बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं लोग,एक अभिनेता के लिए सबसे जरुरी उसका स्वस्थ तन और मन होता है .मुनचुन,पुंज,हसन इमाम, रणधीर कई अच्छे रंगकर्मी अलग-अलग विधाओं पर अच्छा कार्य कर रहे हैं .इन सबको चाहिए कि सब मिल कर सरकार को वो बात भी समझाए कि हमें अपना काम करने में इन्फ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध हो जाए तो हम कुछ बेहतर कर सकते हैं. आने वाली पीढ़ी के लिए भी बेहतर होगा और हमारे अपने लिए भी . सरकार का काम है जगह देना बनवाना पर उससे कराना पड़ता है.बिना सांस्कृतिक विकास के असली विकास नहीं हो सकता.सभी मिल कर कदम बढ़ाएं .