भगवान श्री कृष्ण का जन्म जेल में हुआ था, भगवान का जन्म रोहिणी नक्षत्र में देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में हुआ था. हालांकि कंस उसे मरना चाहता था, उस रात जेल के दरवाजे खुल गए और उसके पिता वासुदेव उसे नंद गांव में सुरक्षा के लिए ले गए .ऋषि सांदीपनि को उनकी गुरुदक्षिणा वह अपने गुरु ,संदीपनी के बेटे को वापस लाया, जो मर चुका था. इस प्रकार उन्होंने ऋषि सांदीपनी को अपनी गुरु दक्षिणा दी.
मरे हुए भाइयों से पुनर्मिलन– अपने छह भाइयों के साथ पुनर्मिलन हम में से बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं कि वह वासुदेव व देवकी के छः पुत्रों (सातवें बलराम और आठवे स्वयं श्री कृष्ण) को पुनः लाये थे जो उनके मामा कंस द्वारा मारे गए थे. इन छह पुत्रों के नाम हैं- स्मारा, उदित्था, पारिश्वंगा, पतंगा, क्षुद्रब्रित और गृहिण. थे जो कि उनके भाई थे. श्री कृष्ण और उनकी पत्नियाँ- श्री कृष्ण की कुल 16,108 पत्नियां थीं, जिनमें से केवल आठ उनकी राजसी पत्नियां थीं, जिन्हें अष्ट भरी या पटरानी के नाम से भी जाना जाता है. जिनके नाम इस प्रकार हैं रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, नागन जाति, कालिंदी, मित्रविन्दा, भद्रा और लक्ष्मणा.
रुक्मिणी से उनका विवाह- रुक्मिणी को भाग्य की देवी श्री लक्ष्मी जी का अवतार माना जाता है. श्री कृष्ण की अन्य 16,100 पत्नियां असल में उनकी पत्नी होने से पहले नरकासुर के यहां जबरन बंदी बनाकर उन्हे महल में कैद कर रखा था. श्री कृष्ण ने नरकासुर को मारने के बाद इन 16,100 महिलाओं को बचाया और उन्हें मुक्त किया. और उनसे विवाह कर लिया.
तुलाभारम- श्री कृष्ण की पत्नियों में से, सत्यभामा को अपने न धन-धान्य का कुछ अहंकार था, जबकि रुक्मिणी भगवान कृष्ण के लिए पूरी तरह से समर्पित थीं. तब श्री कृष्ण ने उनका अहंकार तोडा जब श्री कृष्ण तराजू में एक ओर बैठ गए और दूसरी तरफ सारा खजाना रखने पर भी उनके भार के बराबर न आ सका तब बाद में रूक्मिणी ने एक तुलसी के पत्ते को रखा और उनके भार के बराबर आ गया.
श्री कृष्ण के पुत्र – उनके अस्सी बेटे थे उनकी आठ रानियों से अस्सी पुत्र थे. उनकी प्रत्येक रानी से उनके दस पुत्र हुए थे. प्रद्युम्न रुक्मणी का पुत्र था. सांब जाम्बवती का पुत्र था, जो ऋषियों द्वारा शापित था जो बाद में यदु वंश के विनाश का कारण बना.
भगवत गीता- श्रीकृष्ण से भगवत गीता केवल अर्जुन ने ही नहीं बल्कि कुछ और द्वारा भी सुनी गई थी जिसमें शामिल थे श्री हनुमान जी और संजय द्वारा सुनी गई थी. कुरुक्षेत्र के युद्ध में हनुमान जी अर्जुन के रथ के ऊपर विराजमान थे और धृतराष्ट्र को युद्ध की घटनाओं को बताने के लिए दिव्य दृष्टि से वेद व्यास ने संजय को यह आशीर्वाद दिया था.
सुदर्शन चक्र- श्री कृष्ण का पसंदीदा हथियार सुदर्शन चक्र था. इसका उल्लेखनीय उपयोग शिशुपाल की हत्या में था और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसका उपयोग सूर्यास्त का भ्रम पैदा करने के लिए किया गया था जिसके कारण जयद्रथ की हत्या हुई थी.
पं ब्रम्हानंद