युगपुरुष नाट्य महोत्सव 2023
दर्शकों को ऐसा लगा मानो स्वामी विवेकानंद उनसे संवाद कर रहे हों
विवेकानंद के जीवन के उतार-चढ़ावों के साथ ही अपनी कला यात्रा को भी पूरी श्रेष्ठता से प्रस्तुत किया
पूर्व राज्यसभा सांसद आर के सिन्हा ने कहा कि एकल अभिनय सम्राट की कठिन अभिनय साधना है
पटना, मंच पर प्रकाश आते ही मंच पर स्वामी विवेकानंद के दर्शन होते हैं ऐसा लगा कि विवेकानंद ही मंच पर आ गये. पद्मश्री शेखर सेन ने युगपुरुष नाट्य महोत्सव में स्वामी विवेकानंद की जीवनी पर अपने एकल अभिनय और भावपूर्ण गायन से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. इस एकल नाट्य प्रस्तुति की शुरुआत श्लोक ‘सर्वे भवन्तु सुखिन’ से हुआ. ‘अगले पचास साल तक अपने देवी देवता को उठा कर ताक पर रख दो हमारा राष्ट्र ही हमारा देवता है. पूजा करें हम अपनी मातृभूमि की, सेवा करें अपने देशवासियों की’. “उठो जागो और तब तक कर्म करो जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो” . ये इस नाटक के संवाद थे जो दर्शकों को झकझोर गये . बिहार आर्ट थियेटर के अध्यक्ष आर के सिन्हा जी की ओर से आयोजित युगपुरुष नाट्योत्सव के दूसरे दिन एकल अभिनय सम्राट पद्मश्री शेखर सेनजी ने स्वामी विवेकानंद की जीवनी को बड़े ही रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया. इस एकल नाट्य प्रस्तुति में संगीत प्रकाश और वेश भूषा के साथ भावप्रवण अभिनय ने राजधानी पटना के रंगकर्मियों और दर्शकों को प्रायोगिक नाटक के कई आयाम दिखाया. ‘डम डम डमरू बजावेला हमार जोगिया’ जैसे छोटे छोटे पदों के गायन और संगीत की धुन पर लोग झूमने पर मजबूर हुए.
पूर्व राज्यसभा सांसद आर के सिन्हा ने कहा कि एकल अभिनय सम्राट की कठिन अभिनय साधना है कि पहले किसी भी युगपुरुष को जानना,उन पर नाटक लिखना और उसे आज के दर्शकों के हिसाब से तैयार कर प्रस्तुति देना राष्ट्र के प्रति समर्पण को दर्शाता है,पद्मश्री शेखर सेन का यह अभियान सदा चलते रहे इसकी हम सब कामना करते हैं. शेखर सेन एक ऐसी सर्वमान्य विरल विभूति हैं जिन्होंने कला की रंगभूमि पर अपनी विलक्षण प्रयोगधर्मिता और नवाचार की मिसाल क़ायम की है. लगभग चार दशकों की रंगयात्रा में शेखर ने सिद्धि और प्रसिद्धि के उन शिखरों को छुआ है जहाँ वे मनुष्यता के लिए आदर्श मूल्यों की तलाश करते हैं. और इस तरह एक सभ्य, सुसंस्कृत, अनुशासित और मर्यादित समाज का सपना देखते हैं. एक सांस्कृतिक अभियान पर निकल पड़े है.
संगीतकार, अभिनेता, लेखक तथा संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पद्मश्री शेखर सेन कहते हैं कि कलाकार का चुंबकत्व होता है जो दर्शकों को जोड़े रखता है. जैसे कोई माँ अपने बच्चे को कोई पाठ याद कराती है और फिर उससे पूछती है कि तो बच्चा माँ के सिखाए पाठ को ही ज्यों का त्यों दोहराता है, तब वह यह नहीं सोचता कि माँ को तो सब पता है, उसी ने तो बताया, तो मैं क्यों बताऊँ. इसी तरह कबीर, तुलसी, सूर या स्वामी विवेकानंद के बारे में सबको पता है लेकिन उसे किस रोचकता से पेश किया जा रहा है, यह अहम है. मैं जब कोई भी पात्र करता हूँ तो उसका विवेचन करता हूँ. स्वामी विवेकानंद के विचार प्रेरणादायी हैं. स्वामी जी कहते हैं कि मंदिर के ईश्वर को देखने से कोई लाभ नहीं है, राष्ट्र ही मंदिर है. अब इसे सुनना, गुनना और विश्लेषण करना होगा तभी तो आप उसके मर्म तक पहुँच पाएँगे. हमारे यहाँ शब्द को ब्रह्म कहा गया है, स्वर ब्रह्म कहा गया है और किसी अन्य संस्कृति में शब्दों को या स्वर लहरियों को ब्रह्म नहीं कहा गया है. इनकी साधना करने वाले साधक हैं. उन्हें हिमालय में जाकर तपस्या करने की जरुरत नहीं है, वे कला कर्म करते हुए ही योगी हैं.स्वामी विवेकानंद शास्त्रीय संगीत जानते थे तो उनकी जीवनी को प्रस्तुत करते हुए नाटक स्वामी विवेकानंद में ध्रुपद में स्वामीजी को चौताल में गाता हुआ दिखाता हूँ.
स्वामी विवेकानंद की जीवन यात्रा को जिस रोचक संवाद, कुशल अभिनय, ध्वनि और प्रकाश के साथ ही संगीत की स्वरलहरियों और भजनों की गूँज से प्रस्तुत किया उससे ऐसा लगा मानों हाल में बैठे सभी दर्शक स्वामी विवेकानंद से ही संवाद कर रहे हों. दर्शकों और कलाकार के बीच ऐसा नाट्य आस्वाद दुर्लभ ही होता है. शेखर सेन की एक और खूबी यह है कि वे अपने किरदार का मेक-अप खुद ही करते हैं, किसी मेकअप कलाकार की सेवा नहीं लेते. लेखक, निर्देशक, गायक, संगीतकार और अभिनेता शेखर सेन हर बार एक नए रूप में दर्शकों के सामने आते हैं. शेखर सेन दुनिया भर में अपने एकल नाटकों की 1000 से अधिक प्रस्तुतियाँ दे चुके हैं. स्वामी विवेकानंद के विराट व्यक्तित्व के जीवन के अनगिनत जाने-अनजाने पहलुओं को दो घंटे के नाटक में रंजकता व निर्देशकीय कुशलता से प्रस्तुत करना कोई आसान काम नहीं, लेकिन शेखर सेन ने इस प्रस्तुति के माध्यम से विवेकानंद के जीवन के उतार-चढ़ावों के साथ ही अपनी कला यात्रा को भी पूरी श्रेष्ठता से प्रस्तुत किया. स्वामी विवेकानंद के प्रोफेसर, पिता विश्वनाथ दत्त, माँ भुवनेशवरी, माँ शारदादेवी, रामकृष्ण परमहंस को निभाते हुए इस शेखरजी ने अकेले ही दर्शकों को पूरे दो घंटे तक बांधे रखा.
शेखर जी ने बहुत ही खूबसूरती से दर्शकों से संवाद करते हुए बताया कि स्वामी विवेकानंद उस दौर में पैदा हुए थे जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था और स्वामी जी भारत को इस गुलामी से मुक्ति देना चाहते थे. स्वामी विवेकानंद द्वारा ब्राह्मो समाज में शामिल होना, विवेकानंद जब कोलकोता के स्कोटिश चर्च कॉलेज में पढ़ रहे थे तो उनके अंग्रेज प्रिंसिपल विलियम हैस्टी ने कैसे विवेकानंद की प्रतिभा को पहचान और उन्हें समाधि और ईश्वर के बारे में जानने व समझने से लिए रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी. शेखर सेन ने इस घटना को अद्भुत कौशल और रंजकता के साथ प्रस्तुत किया. पिता की मृत्यु के बाद घर में घोर गरीबी का सामना करते हुए रामकृष्ण परमहंस से ये कहना कि माँ काली से कह कर मुझे गरीबी से मुक्ति दिलवाने में मदद दिलवाएँ, और फिर रामकृष्ण परमहंस द्वारा विवेकानंद को कहना कि तुम खुद ही माँ से जाकर माँग लो . विवेकानंद तीन बार माँ काली के पास जाकर बजाय गरीबी से मुक्ति के, ज्ञान, वैराग्य, ध्यान और समाधि माँग लेते हैं, इन दृश्यों को जिस जीवंतता और कल्पनाशीलता व भावुक कर देने वाले संवादों से शेखरसेन ने प्रस्तुत किया उसकी गहरी अनूभूति श्रोताओं के दिल और दिमाग में उतर रही थी. मंच सज्जा – नीतेश शुक्ला , प्रकाश संयोजन – पंकज मंग , ध्वनि संचालन – अशोक पवार , संगीत संचालन – विजय सरोज एवं निर्माण सहायक – सौरभ थे.
इस अवसर पर राजधानी के कई प्रतिष्ठित साहित्यकार और नाटक प्रेमियों ने भाव सम्प्रेषण,संवाद अदायगी और गायन का जम कर लुत्फ़ उठाया. आर के सिन्हा ने कहा यह नई पीढ़ी के लिए बहुत ज्ञानवर्धन हैक्योंकि सभी ने विवेकानंद जी को पढ़ा है और सेन जी की प्रस्तुति में जीवंत तरीके से आप उनको अच्छे तरह से जान सकेगा.आपको लगेगा की आपके सामने साक्षात स्वामी विवेकानंद खड़े है. उन्होंने कल अंतिम दिन गोस्वामी तुलसीदास देखने के लिए लोगो को रविंद्र भवन में समय आने का आमंत्रण दिया. इस मौके भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी , विधायक अरुण सिन्हा,डा शंकर दयाल जी के साथ कई कॉलेजों के छात्र छात्रा ने नाटक देखा.
रवींद्र भारती