आज के समय में एक ओर जहाँ भाषाओं को लेकर इतनी बहत छिड़ी हुई है। लोग पैसे की ख़ातिर दूसरी भाषा सीखने पर ज़ोर दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर एक जाने-माने बहुभाषी कवि का अपनी मातृभाषा में पहला कविता-संग्रह प्रकाशित करवाना चौंकाता है। मैं बात कर रहा हूँ समस्तीपुर (बिहार) में जन्मे युवा कवि, गीतकार और लेखक त्रिपुरारि की, जो अपनी उर्दू शायरी की वजह से काफ़ी शोहरत बटोर चुके हैं। फ़िल्म और टीवी की दुनिया में भी अपने लिखे गीत और पटकथा से अपनी पहचान बना रहे हैं। पिछले कुछ सालों से उनकी कविताएँ महाराष्ट्र राज्य बोर्ड की ग्यारहवीं कक्षा और भारती भवन की आठवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में पढ़ाई जा रही हैं। और अब, त्रिपुरारि का पहला कविता-संग्रह साहित्य अकादमी, दिल्ली ने प्रकाशित किया है। इस ख़ास मौक़े पर पेश है उनसे की गई बातचीत का एक हिस्सा:
पटना नाउ: बतौर उर्दू शायर आपकी अच्छी-ख़ासी पहचान है। ऐसे में पहली किताब के लिए मैथिली भाषा क्यूँ?
त्रिपुरारि: इसका सबसे आसान जवाब ये है कि मैथिली मेरी मातृभाषा है। मैं मानता हूँ कि किसी भी शायर के लिए उसकी शायरी की पहली किताब बहुत मायने रखती है। ख़ासकर तब, जब आप कई भाषाओं लिखते हैं। लिहाज़ा, मेरे लिए भी पहली किताब के रूप में मैथिली भाषा का चुनाव थोड़ा मुश्किल तो रहा। और जैसा कि आपने कहा, लोग मुझे उर्दू शायरी के हवाले से ही जानते हैं। लेकिन कुछ क़रीबी दोस्तों को पता था कि मैं मैथिली में भी लिखता हूँ। और हमेशा ही से मेरी दिली ख़्वाहिश थी कि मेरी शायरी का पहला मजमूआ मेरी पहली ज़बान (मातृभाषा) मैथिली में आए। बस इतनी सी बात है।
पटना नाउ: आज के समय में आप दूसरी भाषा सीख कर बहुत से पैसे कमा सकते हैं। फिर मातृभाषा आपके लिए कितना ज़रूरी है?
त्रिपुरारि: बात ज़रूरत की नहीं है। बात अपने आपको ज़ाहिर करने की है। सच तो यही है कि हर इंसान को अपनी मातृभाषा प्रिय होती है। आपने सही कहा कि आज के समय में दूसरी भाषा सीख कर बहुत से पैसे कमाए जा सकते हैं। इसमें बुराई भी नहीं है लेकिन अगर हम मातृभाषा को छोड़ देते हैं तो हम अंदर से मरने लगते हैं। क्योंकि हम अपनी ही भावनाओं को बेहतर ढंग से प्रेषित नहीं कर पाते। और इससे बड़ा दुख कुछ भी नहीं है।
पटना नाउ: इस किताब के बारे में कब सोचा?
त्रिपुरारि: मार्च या अप्रैल 2013 की बात है। कॉलेज की पढ़ाई ख़त्म हो चुकी थी। कॉलेज के दिनों में ही मैंने अपनी पहली किताब पूरी कर ली थी, जो मैथिली और हिंदी में एक साथ लिखी थी और उसे छपवाना भी चाहता था। उन्हीं दिनों साहित्य अकादेमी के वार्षिकोत्सव ‘साहित्योत्सव’ में जाना हुआ। वहीं मुझे पहली दफ़ा अकादेमी के नवोदय योजना के बारे में पता चली थी। मैंने अपनी पाण्डुलिपि जमा करवाई और एक दिन स्वीकृति आ गई कि अकादेमी मेरी किताब छापेगी। लेकिन उसके बाद बहुत इंतिज़ार करना पड़ा। इंतिज़ार के कई नए रंग भी समझ में आए। पर मैंने भी इंतिज़ार की इंतिहाँ कर दी। और अब नतीजा सबके सामने है।
पटना नाउ: इस किताब को कहाँ से ख़रीदा जा सकता है? क्या ई-बुक भी उपलब्ध है?
त्रिपुरारि: ओसक बुन्न का पेपरबैक संस्करण साहित्य अकादेमी के किसी भी बुक शॉप से या 011-23386626 पर कॉल या [email protected] पर ई-मेल करके मंगवाया जा सकता है। ई-बुक अगले महीने से अमेज़ॉन पर उपलब्ध होगी।
पटना नाउ: जो लोग मैथिली नहीं पढ़ सकते हैं, उनके लिए क्या सोचा है?
त्रिपुरारि: जो लोग मैथिली नहीं पढ़ सकते हैं, उनको बता दूँ कि ये किताब अगले साल तक हिंदी-अंगेज़ी सहित दुनिया की कई भाषाओं में प्रकाशित हो जाएगी।
पटना नाउ: आप तो संगीत की दुनिया में काम करते हैं। गीत लिखते हैं। तो क्या हम उम्मीद करें कि इस किताब पर आधारित कोई सॉन्ग भी सुनने को मिलेगा?
त्रिपुरारि: आपने अच्छा याद दिलाया। किताब के टायटल पोएम ‘ओसक बुन्न’ और मैथिली ग़ज़ल का फ़्यूज़न जल्द ही वीडियो सॉन्ग के रूप में आपके सामने होगा। मैं उम्मीद करता हूँ कि छठ-पूजा के बाद रीलीज़ किया जाएगा।
पटना नाउ: मातृभाषा मैथिली से आपका लगाव ज़ाहिर है। इसे और ज़ियादा कूल और अप-टू-डेट बनाने के लिए और क्या सोचा है?
त्रिपुरारि: सोचने को वैसे तो बहुत सी बाते हैं लेकिन मज़ा तो जब है कि आपका सोचा हुआ लोग स्वीकार भी करें। ख़ैर! मैंने भी एक कोशिश की है। हाल ही में मैथिली भाषा से जुड़े पोस्टर्स और मेरी कविताओं को रोज़ाना इस्तेमाल की चीज़ें जैसे कि टी-शर्ट, टैंक टॉप, बैग़्स, मास्क, कैप, स्टिकर वग़ैरह पर प्रिंट किया गया है। इसे मेरी वेबसाइट www.tripurari.org से ऑनलाइन ख़रीदा जा सकता है।
पटना नाउ: ये तो बहुत ही इनोवेटिव आइडिया है। और मुझे लगता है कि मैथिली के लिए बिल्कुल नया होगा।
त्रिपुरारि: है तो, देखते हैं लोगों को कितना पसंद आता है।
पटना नाउ: मैं उम्मीद करता हूँ कि लोग इसे पसंद करेंगे। फ़िलहाल, इस ख़ूबसूरत बातचीत के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया। किताब के अनुवाद और ओसक बुन्न सॉन्ग का इंतिज़ार रहेगा। आने वाले सभी प्रोजेक्ट्स के लिए शुभकामनाएँ।
त्रिपुरारि: जी, आपका भी बहुत-बहुत शुक्रिया।
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