भारत में 1.8 से 3 करोड़ लोगों पर आर्सेनिक और फ्लोराइड का गंभीर खतरा
कई राज्यों में पानी हुआ जहरीला, फ्लोराइड और आर्सेनिक की मात्रा है अधिक
अधिक फ्लोराइड गर्दन, पीठ, कंधे व घुटनों के जोड़ों व हड्डियों को करता है प्रभावित
वर्षों से बना हुआ है भारत में भू-जल संकट
बिहार,आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, असम, छ्त्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड में ज्यादा है आर्सेनिक
आर्सेनिक वाला पानी पीने से गंगा के मैदानी इलाकों में 10 लाख से ज्यादा लोगों की हो चुकी है मौत
देश के कई हिस्सों में अभी भी लोग फ्लोराइड और आर्सेनिक की अधिकता का सामना कर रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में 44 जिले के कुछ भाग ऐसे हैं, जहां भू-जल में आंशिक रूप से फ्लोराइड की अधिकता है. वहीं, उत्तर प्रदेश के 36 जिलों के कुछ भाग ऐसे हैं जहां आंशिक रूप से पानी में आर्सेनिक की अधिकता है. हालांकि, केंद्र सरकार का जल जीवन मिशन के तहत 2024 तक देश के प्रत्येक ग्रामीण परिवार को निर्धारित गुणवत्ता की पेयजल आपूर्ति प्रदान करने का लक्ष्य है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड में जिले ऐसे हैं जहां भूजल में फ्लोराइड की आंशिक मात्रा 1.5 एमजी प्रति लीटर से अधिक है. वहीं, इन्हीं जिलों में भूजल में आर्सेनिक की मात्रा (0.01 एमजी प्रति लीटर से अधिक) है. देश में 26 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में 409 जिलों के भाग ऐसे हैं जहां पानी में फ्लोराइड की मात्रा आंशिक तौर पर ज्यादा है. वहीं 25 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में 209 जिलों के भाग ऐसे हैं जहां आर्सेनिक की मात्रा आंशिक तौर पर अधिक है.
आर्सेनिकोसिस नामक बीमारी आर्सेनिक प्रदूषण की वजह से ही होती है. आर्सेनिक वाले पानी के सेवन से त्वचा में कई तरह की समस्याएं होती है. इनमें प्रमुख हैं, त्वचा से जुड़ी समस्याएं, त्वचा कैंसर, ब्लैडर, किडनी व फेफड़ों का कैंसर, पैरों की रक्त वहनिओं से जुड़ी बीमारियों के अलावा डायबिटीज,उच्च रक्त चाप और जनन तंत्र में गड़बड़ियां. भारतीय मानक ब्यूरो के मुताबिक इस मामले में स्वीकृत सीमा 10 पीपीबी नियत है, हालांकि वैकल्पिक स्रोतों की अनुपस्थिति में इस सीमा को 50 पीपीबी पर सुनिश्चित किया गया है.
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 1.8 से 3 करोड़ लोगों पर आर्सेनिक का गंभीर खतरा मंडरा रहा है.
डॉ अमित कुमार का कहना है कि फिल्टर पानी का प्रयोग करना चाहिए. बीमारी की शुरुआती स्तर पर पहचान इसे गंभीर होने से बचा सकती है. पानी में आर्सेनिक की अधिक मात्रा से त्वचा का रंग बदल जाता है और नाखून की त्वचा भी मोटी हो जाती है यही नहीं इसके कारण त्वचा, फेफड़े, गुर्दा के कैंसर होने की संभावना भी बढ़ जाती है. पानी में फ्लोराइड की अधिक मात्रा फ्लोरोसिस को जन्म देती है. इसका असर दांतों और हड्डियों पर पड़ता है. दांतों में पीलापन आ जाता है. शरीर के सभी अंगों एवं प्रणालियों पर प्रभाव पड़ने से स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न प्रकार की शिकायतें होती हैं. अधिक फ्लोराइड गर्दन, पीठ, कंधे व घुटनों के जोड़ों व हड्डियों को प्रभावित करता है. कैंसर, स्मरण शक्तिकमजोर होना, गुर्दे की बीमारी व बांझपन जैसी समस्या भी इससे हो सकती है. विदेश में पानी में फ्लोराइड की मात्रा 0.5 मिलीग्राम प्रति लीटर तक सामान्य मानी जाती है, जबकि भारत में यह दर 1.0 मिलीग्राम निर्धारित है.
क्या है बिहार में स्थिति
बिहार के 18 जिलों के भूगर्भ जल में आर्सेनिक का जहर फैला हुआ है. एक अनुमान के मुताबिक बिहार के करीब 1 करोड़ लोग आर्सेनिक युक्त पानी पी रहे हैं. कई इलाकों में तो पानी में आर्सेनिक की मात्रा 1000 पीपीबी से ज्यादा है, जो सामान्य से 20 गुना अधिक है. दिलचस्प बात ये है कि कई क्षेत्रों में अब तक भूगर्भ पानी की जांच नहीं हुई है. सारण जिले के नवरसिया के भूजल में सामान्य से ज्यादा आर्सेनिक के बारे में तब पता चला जब कई मौतें हुईं.
बिहार में भूजल में आर्सेनिक की मौजूदगी का सबूत सबसे पहले वर्ष 2002 में अक्टूबर में भोजपुर जिले की सिमरिया ओझापट्टी में मिला था. इसके बाद बिहार के जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग ने गंगा नदी के आसपास 10 किलोमीटर क्षेत्रफल के भूगर्भ जल की जांच कराई. जांच में सारण, वैशाली, समस्तीपुर, दरभंगा, बक्सर, भोजपुर, पटना, बेगूसराय, खगड़िया, लखीसराय, मुंगेर, भागलपुर और कटिहार के 50 ब्लॉक में सामान्य से ज्यादा आर्सेनिक मिला. जानकारों का कहना है कि महज 80 हजार जलस्रोतों की जांच में ये परिणाम आया था. इसका मतलब है कि जिन स्रोतों की जांच नहीं हुई, वहां भी आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा हो सकती है. इसलिए सरकार को चाहिए कि वह सभी जलस्रोतों की जांच कराए.
गौरतलब हो कि बेगूसराय के ज्ञानटोली गांव के पानी की जांच पहले नहीं हुई थी, इसलिए सरकार को इस गांव की जानकारी भी नहीं थी. पिछले साल एएन कॉलेज, यूनिवर्सिटी ऑफ सैलफोर्ड और महावीर कैंसर संस्थान ने इस गांव के के पानी की जांच की, तो वहां आर्सेनिक की मात्रा 500 माइक्रोग्राम प्रति किलो मिली थी, जो सामान्य से काफी ज्यादा थी. महावीर कैंसर संस्थान की तरफ से जांच में शामिल डॉक्टर अशोक घोष ने उस वक्त कहा था कि इस गांव के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं थी. इस गांव में कैंसर के कई मरीज भी मिले. आर्सेनिक को लेकर काम करनेवाले महावीर कैंसर संस्थान के चिकित्सक डॉ अरुण कुमार कहते हैं, “अभी भी बिहार के बहुत सारे हिस्सों में आर्सेनिक का प्रभाव है, लेकिन उनकी शिनाख्त नहीं हुई है.”लेकिन, अफसोस की बात है कि आर्सेनिक की गंभीर स्थिति के बावजूद इस बड़ी आबादी तक सरकार साफ पानी मुहैया नहीं करा रही है. सिर्फ भोजपुर में एक प्लांट है, जिसमें गंगा का पानी साफ कर आर्सेनिक प्रभावित 48 गांवों की तीन लाख आबादी तक साफ पानी की आपूर्ति की जा रही है.
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