बिहार के लोग बोझ नहीं.. बोझ उठाने वाले.. फिर क्यों जाना पड़ता पढ़ने के लिए अन्य प्रदेश
आनेवाली पीढ़ी का भविष्य संवारना हो परम दायित्व
के एस डी संस्कृत विश्वविद्यालय के साढ़े चार अरब से अधिक के घाटे के बजट पर सीनेट ने लगाई मुहर
संजय मिश्र,दरभंगा
बिहार की लचर शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए नए प्रयोग देखने को मिल सकते हैं. इसके संकेत बिहार के नए गवर्नर राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने दरभंगा में दिए. रविवार को के एस डी एस यू यानि कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में सीनेट की 46 वीं बैठक की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए अलग से सीनेट की बैठक बुलाई जाएगी.
कुलाधिपति राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने दरबार हॉल में आयोजित सीनेट की बैठक में कहा कि ये विद्वत सभा है. सीनेट का कार्य सिर्फ बजट पास करना नहीं है. बल्कि हम सभी की जिम्मेदारी बनती है कि शिक्षण संस्थानों की शैक्षणिक व्यवस्था में सुधार कैसे हो? शिक्षा में सुधार के लिए अलग से सीनेट की बैठक होगी जिसमें सिर्फ और सिर्फ शैक्षणिक वातावरण की बेहतरी पर ही चर्चा होगी. उन्होंने उत्साह बढ़ाते हुए कहा कि सीनेट की ऐसी विशेष सम्मिलन में वे स्वयं उपस्थित रहेंगे.
उन्होंने कहा कि सूबे के 13 करोड़ आबादी पर हमें गर्व है. बिहार के लोगों के बारे में कहा जाता है कि वे बोझ नहीं हैं ,बल्कि बोझ उठाने वाले हैं. फिर भी यहां के बच्चे दूसरे प्रदेशों में जाकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं. इस पर हमें चिंतन करने की जरूरत है. अन्यथा आनेवाली पीढ़ी हमें दोष देगी. आखिरकार उनका भविष्य संवारने का दायित्व हमारा है. राजभवन, राज्य सरकार व विद्वतजन मिलकर एक नया शैक्षणिक वातावरण बनाएंगे.उन्होंने उत्सुकता से पूछा कि संस्कृत विश्वविद्यालय में सभी विषयों की पढ़ाई संस्कृत में ही होती है या नहीं? अध्ययन व अध्यापन ठीक से हो रहा है या नहीं इस पर ध्यान देने की जरूरत है. विश्वविद्यालय परिसर में शिक्षा के बारे में गम्भीरता से नहीं सोचना महापाप है. क्या छात्रों की 75 फीसदी उपस्थिति सिर्फ दस्तावेजी तो नहीं? इसलिए सभी शिक्षक, पदाधिकारी व अन्य कर्मचारी समेत छात्रों की उपस्थिति बायोमेट्रिक जरिये से बननी चाहिए.पेंशनभोगियों को बड़ी राहत देते हुए अर्लेकर ने कहा कि विश्ववविद्यालय में अलग से पेंशन सेल गठित होगा जिसकी मोनेटरिंग वे खुद करेंगे. सुनिश्चित किया जाएगा कि सेवानिवृत्त होने से एक महीने पहले ही सेवा निवृत्ति सम्बन्धी सारे कागजात तैयार हो जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि मिथिला की ज्ञान परम्परा का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है. क्या यही पूंजी हमारे लिए काफी है? बेहतर तो यह होगा कि उस इतिहास को याद कर वर्तमान व भविष्य की चिंता की जाय.
कुलाधिपति और सीनेट सदस्यों का अभिवादन करते हुए के एस डी एस यू के कुलपति शशिनाथ झा ने इस विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की मांग रखी. वीसी ने स्वीकारा कि वर्ष 2020 व 21 में आई कोविड जैसी महामारी ने शैक्षणिक व्यवस्था को पूरी तरह से दुष्प्रभावित कर दिया जिसे अभी तक पटरी पर नही लाया जा सका है. यही कारण है कि शैक्षणिक सत्र भी विलम्ब से चल रहे हैं. उपशास्त्री, शास्त्री और आचार्य की 2021 तक की ही परीक्षा का आयोजन हो पाया है. पारम्परिक पाठ्यक्रमों की 2022 की परीक्षा का आयोजन जून-जुलाई 2023 तक सम्पन्न हो जाएगी. इसी तरह 2023 की भी परीक्षा इसी वर्ष के अंत तक विशेष परिस्थिति में कर लेने की संभावना है. कुलपति ने सदन को भरोसा दिलाया कि 2024 तक सभी परीक्षाएं अद्यतन हो जाएगी. वीसी ने कहा कि नैक मूल्यांकन के लिए अनुदान राशि मिले तो तेजी से कार्य आगे बढ़ाया जाएगा. वहीं मान्य सदस्यों से सहयोग की अपेक्षा करते हुए कुलपति ने कहा कि इस विश्वविद्यालय की आय का आंतरिक श्रोत बहुत कम है. इस कारण अनेक विकासात्मक कार्य बाधित होते हैं. यहां निःशुल्क शिक्षा के कारण उसकी भरपाई नही हो सकती है. इसलिए राज्य सरकार से राशि प्राप्त कराने में सदस्य सहयोग करें. विश्वविद्यालय में रखी करीब छह हजार दुर्लभ पांडुलिपियों के डिजिटाइजेशन, सम्पादन एवं प्रकाशन कराने को कुलपति ने आवश्यक बताया.
बैठक में दस प्रस्तावों पर चर्चा के बाद निर्णय लिया गया. वर्ष 2023-24 के चार अरब 54 करोड़ 57 लाख 14 हजार पांच सौ 29 रुपये के घाटे का बजट पारित हो गया. बजट में कुल अनुमानित वार्षिक व्यय चार अरब 56 करोड़ 59 लाख 11 हजार नौ सौ 27 रुपया आंका गया है जबकि कुल अनुमानित आय मात्र दो करोड़ एक लाख 97 हजार तीन सौ 98 रुपया है. प्रशासनिक खर्चे में कमी तथा आंतरिक श्रोतों से आय में बढ़ोतरी कर एवं राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान से घाटे की पूर्ति करने का आश्वासन दिया गया. आपको बता दें कि के एस डी एस यू में यूनिवर्सिटी स्नातकोत्तर विभागों के अलावा 31 अंगीभूत कालेज, 26 शास्त्री कालेज एवम 15 उपशास्त्री कालेज हैं.
इससे पहले बिहार के राज्यपाल के पहले दरभंगा दौर पर दरभंगा के सांसद गोपालजी ठाकुर ने मिथिला की परंपरा के अनुसार उनका स्वागत किया. संस्कृत विश्वविद्यालय के सीनेट की बैठक के दौरान दरभंगा सांसद ने पाग, चादर एवं मखान की माला से स्नेहिल स्वागत करते हुए साल 1951 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के कर कमलों से शिलान्यास किए गए मिथिला संस्कृत शोध केंद्र की बदतर स्थिति से राज्यपाल को अवगत कराया और इसके पुनरुद्धार का आग्रह किया. साथ ही पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के कर कमलों से स्थापित डब्लूआईटी की स्थिति से भी अवगत कराते हुए सांसद ने इस संस्थान के कल्याण का निवेदन किया ताकि इस संस्थान की स्थापना के मूल उद्देश्य की प्राप्ति हो सके.
मौके पर संजय सरावगी, विनय कुमार चौधरी, अनिल ईश्वर, ए के आजाद, शकुंतला गुप्ता, अजित कुमार चौधरी, प्रकाश चन्द्र यादव, शिवलोचन झा, दिलीप कुमार झा, दयानाथ झा, दिलीप कुमार चौधरी, अजित कुमार चौधरी, मदन प्रसाद राय, विमलेश कुमार, अंजित चौधरी, सुरेश प्रसाद राय, कुंवरजी झा, अरविंद कुमार पांडेय, प्रेम कुमार मिश्र, रामप्रवेश पासवान, सुनील भारती और मदन मोहन झा उपस्थित थे.गार्ड ऑफ ऑनर लेने के बाद विश्वविद्यालय के संस्थापक महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह की प्रतिमा पर गवर्नर ने माल्यार्पण किया. उसके बाद उन्होंने सीनेट की बैठक में हिस्सा लिया. आगत अतिथियों का स्वागत कुलपति शशिनाथ झा ने किया. सत्र का संचालन प्रभारी कुलसचिव दीनानाथ साह ने किया.