माता सती से जुड़े बिहार में कई शक्तिपीठ
सबसे जुड़ी हैं अलग-अलग मान्यताएं
बिहार में मां दुर्गा के कई प्रसिद्ध शक्तिपीठ मंदिर हैं और सबों से अलग-अलग मान्यताएं जुड़ी हैं. दुर्गा सप्तशती के अनुसार जब माता सती ने अपना प्राण हवन कुंड में त्याग दिए थे, तब भगवान शिव सती के शरीर को कंधे पर लेकर तांडव करने लगे थे. भगवान शिव को ऐसे करने से रोकने के लिए भगवान विष्णु ने चक्र चलाकर देवी सती के कई टुकड़े कर दिए. जिन स्थानों पर माता सती के अंग और आभूषण गिरे, वे ही शक्तिपीठ कहलाए. माता सती के कुछ अंग और आभूषण बिहार में भी हैं.
बड़ी व छोटी पटनदेवी (पटना)
सबसे पहले बात बिहार की राजधानी पटना की. पटना के महाराजगंज में बड़ी पटनदेवी शक्तिपीठ स्थित है. मान्यता है कि इस जगह सती के शरीर से दाहिनी जंघा गिरी थी. पटना के ही हाजीगंज क्षेत्र में छोटी पटनदेवी शक्तिपीठ है. मान्यता है कि यहां देवी सती के पट और वस्त्र गिरे थे. बिहार की राजधानी पटना में स्थित है पटन देवी मंदिर जो 51 शक्तिपीठों में शुमार होता है. क्या आपको यह पता है कि कई ऐसे शहर हैं जिनके नाम अमुक ऐतिहासिक और पौराणिक मंदिर के नाम पर पड़े हैं.
ठीक इसी तरह बिहार की राजधानी पटना में एक पौराणिक और ऐतिहासिक मंदिर स्थित है जिसके नाम पर बिहार की राजधानी का नाम रखा गया. कई इतिहासकार यह बताते हैं कि पटना को पहले मगध के नाम से जाना जाता था. मगर 1912 में इसका नाम मगध से बदलकर पटना रख दिया गया था. इसका प्राचीन नाम पाटलिपुत्र भी था. पटना में पटन देवी मंदिर स्थित है जिसे 51 शक्तिपीठों में शुमार किया जाता है. पटन देवी को बड़ी पटन देवी मंदिर,पाटन देवी मंदिर के नाम से भी जानते हैं.
मां शीतला मंदिर (नालंदा)
बिहारशरीफ से पश्चिम एकंगरसराय पथ पर मघरा गांव में प्राचीन शीतला मंदिर शक्तिपीठ है. यहां सती के हाथ से कंगन गिरा था. बिहारशरीफ मुख्यालय से महज कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित है मघड़ा गांव. इस गांव की पहचान सिद्धपीठ के रूप में की जाती है.
शीतला माता मंदिर के प्रति लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. यह मंदिर प्राचीन काल से ही आस्था का केंद्र रहा है. यहां कभी गुप्त काल के शासक चंद्रगुप्त द्वितीय के समय चीनी यात्री फाह्यान ने पूजा की थी. उन्होंने अपनी रचना में भी शीतला माता मंदिर की चर्चा की है.
मां मंगला गौरी मंदिर (गया)
गया-बोधगया मार्ग पर भस्मकुट पर्वत है, जहां मां मंगला गौरी शक्तिपीठ है. माना जाता है कि यहां देवी सती का स्तन गिरा था. पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, भगवान भोले शंकर जब अपनी पत्नी सती का जला हुआ शरीर लेकर तीनों लोकों में उद्विग्न होकर घूम रहे थे तो सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने मां सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से काटा था.
इसी क्रम में मां सती के शरीर के टुकड़े देश के विभिन्न स्थानों पर गिरे थे, जिसे बाद में शक्तिपीठ के रूप में जाना गया. इन्हीं स्थानों पर गिरे हुए टुकड़े में स्तन का एक टुकड़ा गया के भस्मकूट पर्वत पर गिरा था.
चामुंडा मंदिर (नवादा)
नवादा-रोह-कौआकोल मार्ग पर रुपौ गांव में चामुंडा शक्तिपीठ है. कहा जाता है कि यहां देवी सती का सिर गिरा था. नवादा-रोह-कौआकोल मार्ग पर रूपौ गांव में स्थित चामुंडा मंदिर एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है. इस मंदिर में देवी चामुंडा की एक पुरानी मूर्ति है. हर मंगलवार को यहां भारी भीड़ उमड़ती है. चामुंडा मंदिर से पश्चिम-दक्षिण एक प्राचीन गढ़ पर स्थित शिव मंदिर में प्राचीन शिवलिंग स्थापित है. मार्कंडेय पुराण के अनुसार चण्ड-मुण्ड के वध के बाद देवी दुर्गा ही चामुंडा कहलाईं.
मां चंडिका स्थान (मुंगेर)
मुंगेर में गंगा तट पर मां चंडिका देवी के मंदिर को शक्तिपीठ का दर्जा प्राप्त है. कहते हैं कि यहां माता सती की दांयीं आंख गिरी थी. चंडिका स्थान भारत के बिहार राज्य के मुंगेर में स्थित एक हिंदू मंदिर है. यह इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है , देवी शक्ति के लिए समर्पित पूजा स्थल .
मुंगेर के पूर्वोत्तर कोने पर, चंडिका स्थान, मुंगेर शहर से सिर्फ दो किलोमीटर दूर है. सिद्धि-पीठ होने के नाते, चंडिका स्थान को सबसे पवित्र और पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है, जो गुवाहाटी के पास कामाक्ष्य मंदिर जितना ही महत्वपूर्ण है. यहां सती की बाईं आंख गिरी थी और ऐसा माना जाता है कि यहां पूजा करने वालों को नेत्र पीड़ा से छुटकारा मिलता है. यह बिहार के अंग प्रदेश क्षेत्र में प्रमुख हिंदू तीर्थस्थलों में से एक है.
उग्रतारा स्थान (सहरसा)
सहरसा से 17 किमी दूर महिषी में उग्रतारा शक्तिपीठ है. मान्यता है यहां देवी सती की बायीं आंख गिरी थी. श्री उग्रतारा मंदिर सहरसा के महिषी प्रखंड के महिषी गांव में सहरसा स्टेशन के करीब 18 किलोमीटर दूर स्थित है. इस प्राचीन मंदिर में, भगवती तारा की मूर्ति बहुत पुरानी है और दूर-दूर से भक्तों को आकर्षित करती है. मुख्य देवता के दोनों तरफ, दो छोटे देवी देवता हैं जिन्हें लोगों द्वारा एकजटा और नील सरस्वती के रूप में पूजा की जाती है.
धीमेश्वर स्थान (पूर्णिया)
पूर्णिया के बनमनखी प्रखंड के धीमेश्वर स्थान में छिन्नमस्ता देवी का मंदिर है. यह शक्तिपीठों में शुमार है. एक ही प्रतिमा में महाविद्या, मां काली, मां दुर्गा, मां छिन्नमस्तिका, त्रिपुर सुंदरी, बग्ला देवी, तारा देवी, धूआंबती, माता लक्ष्मी, मां सरस्वती समेत 10 देवियां मौजूद हैं. इस कारण इन्हें पूर्ण देवी कहा गया. इन्हीं के नाम पर पूर्णिया का नामकरण पड़ा. वहीं मंदिर के बुजुर्ग पुजारी पंडित परमानंद मिश्र और सुबोध मिश्र ने कहा कि माता पुरण देवी की महिमा अपरंपार है. यहां एक साथ दसों महाविद्याओं की पूजा अर्चना होती है. एक ही प्रतिमा में दसों महाविद्याएं विराजमान हैं. यह आपरूपी प्रतिमा है. बाबा हठीनाथ ने 500 साल पहले माता के प्रतिमा को बगल के तालाब से निकलकर विधि विधान के साथ स्थापित किया था.
अंबिका भवानी (सारण)
छपरा- पटना मुख्य मार्ग पर आमी स्थित अंबिका भवानी मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता हैं. जिले के आमी गांव स्थित मां अंबिका भवानी आस्था, भक्ति एवं विश्वास की असीमित सत्ता को समेटे हुए हैं. मां भवानी की यह शक्तिपीठ बिहार, उत्तर प्रदेश व पड़ोसी देश नेपाल के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. चैत्र और आश्विन नवरात्र पर यहां विशेष पूजन होने की वजह से नौ दिन का मेला लगता है. अष्टमी के दिन का विशेष निशा पूजा मुख्य आकर्षण है. इस स्थान की ख्याती अवधूत भगवान राम, तांत्रिक बाबा गंगा राम समेत अन्य सिद्ध साधकों की तपोस्थली के रूप में भी है. संतान, दीर्घ आयु व सुखमय जीवन के लिए नवविवाहित दंपती यहां चुनरी व प्रसाद चढ़ाने आते हैं.
मां ताराचंडी (रोहतास)
सासाराम से करीब छह किमी दूर कैमूर पहाड़ी की गुफा में मां ताराचंडी मंदिर है, जो देश के 51 शक्तिपीठों में एक माना जाता है. 51 शक्तिपीठों में से एक मां ताराचंडी मंदिर सासाराम से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर कैमूर पहाड़ी की गुफा में स्थित है. मनमोहक प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर इस मंदिर के पास पहाड़, झरने व अन्य जल स्त्रोत हैं. इस पीठ के बारे में किवदंती है कि सती के तीन नेत्रों में से श्री विष्णु के चक्र से खंडित होकर दायां नेत्र यहीं पर गिरा था, जो तारा शक्तिपीठ के नाम से विख्यात हुआ. पुराणों, तंत्र शास्त्रों व प्रतिमा विज्ञान में मां तारा व चंडी का जैसा रूप वर्णित है, उसी अनुसार सासाराम में दस महाविद्याओं में दूसरी मां तारा अवस्थित हैं. मां तारा की प्रतिमा प्रत्यालीढ़ मुद्रा में, बायां पैर आगे शव पर आरूढ़ है. कद में अपेक्षाकृत नाटी हैं, लंबोदर हैं व उनका वर्ण नील है. देवी के चार हाथ हैं. दाहिने हाथ में खड्ग व कैंची है. जबकि बाएं में मुंड व कमल है. कटि में व्याघ्रचर्म लिपटा है. मां तारा की मूर्ति कैमूर पहाड़ी की प्राकृतिक गुफा में अवस्थित है, जो पत्थर पर उत्कीर्ण है. गुफा के बाहर आधुनिक काल में मंदिर का स्वरूप दिया गया है. गुफा की ऊंचाई लगभग चार फीट है. गुफा के अंदर व बाहर की मूर्तियां पूर्व मध्यकालीन हैं.
रवीन्द्र भारती