‘जाणता राजा’नाटक के मंचन से भाव विभोर हुए दर्शक

नाटक में दिखा औरंगजेब से युद्ध और शिवाजी का राज्याभिषेक




पुणे से आए 200 से अधिक कलाकारों ने अपने बेहतरीन अभिनय से वहां मौजूद 10 हजार से अधिक लोगों को बांधे रखा.

17वीं सदी के दृश्यों का संयोजन भी बड़े ही अच्छे ढंग से किया गया

350 वर्षों बाद छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन का प्रत्यक्ष साकार जाणता राजा महानाट्य के माध्यम से हुआ

वाराणसी. छत्रपति शिवाजी के जीवन पर आधारित महानाट्य जाणता राजा का मंगलवार को शुभारंभ हुआ. सिद्ध पीठ हथियामठ पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर भवानी नंदन यति महाराज ने सिक्किम के राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य, केंद्रीय मंत्री डॉ.महेंद्र पांडेय की मौजूदगी में महानाट्य का उद्घाटन किया. पुणे से आए 200 से अधिक कलाकारों ने अपने बेहतरीन अभिनय से वहां मौजूद 10 हजार से अधिक लोगों को बांधे रखा.

तीन घंटे तक चले नाटक के बीच में तुलजा भवानी की जय के साथ ही हर हर महादेव की गूंज गूंजती रही. नाटक के माध्यम से कलाकारों ने हिंद स्वराज की स्थापना के लिए किए जाने वाले संघर्षों का मंचन किया. आसमान से गिरती ओस की बूंदों से ठंड का अहसास तो लोगों को हो रहा था, लेकिन कलाकारों ने अपनी कला से लोगों को ऐसे बांधे रखा कि लोग आयोजन स्थल को छोड़ नहीं पा रहे थे.

बीएचयू के एंफीथिएटर मैदान में सेवा भारती काशी प्रांत की ओर से 21 से 25 नवंबर तक होने वाले महानाट्य के शुभारंभ पर महामंडलेश्वर भवानीनंदन ने कहा कि ऐसे आयोजनों से शिवाजी महाराज के हिंदवी साम्राज्य के संकल्प की रोशनी समूचे संसार में फैलेगी. इस समय भारत में उस उत्साह के लहर की सुनामी आ चुकी है, जहां हिंदू समाज भगवान राम और शिवाजी के हिंदवी साम्राज्य से प्रेरणा लेकर गर्व से कहने लगा है कि हम हिंदू हैं. कहा कि 350 वर्षों बाद छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन का प्रत्यक्ष सरकार जाणता राजा महानाट्य के माध्यम से हो रहा है. इस दौरान जाणता राजा काशी प्रांत आयोजन समिति के अध्यक्ष अभय सिंह, काशी प्रांत सेवा भारती प्रांत अध्यक्ष राहुल सिंह, अनिल किंजवेकर, योगेश, डॉ. ज्ञान प्रकाश मिश्र, मुरली पाल, भास्करादित्य त्रिपाठी सहित वाराणसी, आसपास के जिले के विधायक, सांसद सहित अन्य लोग मौजूद रहे.

सिक्किम के राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य ने कहा कि जाणता राजा का यह आयोजन भारतीय संस्कृति का उद्घोष करने वाला है. हिंदवी साम्राज्य की स्थापना के 350 वर्ष पूरे होने और स्वतंत्रता के अमृतकाल के अवसर पर छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन पर आधारित महानाट्य देश को एक राष्ट्र बनाने की सोच को साकार करने में सहायक होगा.जाणता राजा के मंचन की शुरूआत वैदिक मंत्रोच्चार, मंगलाचरण के बीच दीप प्रज्वलन के साथ हुआ. इसके बाद काशी विश्वनाथ मंदिर के अर्चक श्रीकांत मिश्रा और काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के सदस्य के वेंकटरमन घनपाठी ने मंगलाचरण की प्रस्तुति की. इस दौरान मां तुलजा भवानी की आयोजन समिति से जुड़े पदाधिकारियों ने आरती उतारी.

महानाट्य में औरंगजेब से शिवाजी की सेना का युद्ध और फिर महाराज शिवाजी के राज्याभिषेक का दृश्य दिखाया गया. कलाकारों ने मंच पर अपनी उम्दा प्रदर्शन से सभी के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी. नाटक के शुरूआत में पठानों द्वारा महाराष्ट्र पर आक्रमण को दिखाया गया. इसके बाद जीजा बाई द्वारा शिवाजी के जन्म पर पूरे महाराष्ट्र में उत्सव जैसा माहौल होता है. हर तरफ बधाई गीत, नाचते झूमते लोग महारानी को बधाई देने पहुंचते हैं. युद्ध से पहले छत्रपति शिवाजी की माता जीजाबाई ने मुगल शासक के खिलाफ लड़ाई के अपने बेटे शिवा को भेजा. इसके बाद शिवाजी की सेना मुगलों की सेना पर धावा बोल देती है.

रायगढ़ किले पर हुआ मंचन

एंफीथिएटर मैदान में रायगढ़ किले को बनाया गया है. इसी किले के बीच में मंच बनाया गया है, जहां कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया. महाराज शिवाजी युग को फिर से जीवंत बनाने के लिए बनाए गए भव्य किले पर नाटक के मंचन में पालकी और घोड़े, हाथी के साथ ही तलवार, युद्ध में प्रयोग होने वाले अस्त्र-शस्त्र का भी इस्तेमाल करते दिखा गया है. शानदार आतिशबाजी, 17वीं सदी के दृश्यों का संयोजन भी बड़े ही अच्छे ढंग से किया गया. इसमें शिवाजी महाराज के जन्म से पहले का युग, उनका जन्म, मुकदमा चलाने की उनकी शैली, अफजल खान की हत्या, आगरा से भागना और रोमांचकारी राज्याभिषेक समारोह इस नाटक का महत्वपूर्ण दृश्य रहा.

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By pnc

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