तरंग महोत्सव में गड़बड़ी को लेकर छात्र अड़े, महिला कॉलेज के स्टेज पर अनशन में बैठे छात्र
विजेताओं के नाम घोषित लेकिन फिर भी नही मिला प्रमाण, छात्र आयोजन स्थल पर ही रातभर जमे रहे
आरा,7 नवम्बर. क्या आपने कभी पुरस्कार मिलने के बाद आयोजन के विरोध मे किसी को अनशन करते देखा है? अगर नही तो अचंभित होने की जरूरत नही. आरा के वीर कुंवर सिंह विवि द्वारा आयोजित आयोजित “तरंग 2019 अंतर महाविद्यालय सांस्कृतिक प्रतियोगिता” में यह मामला सामने आया है. महिला कॉलेज में आयोजित इस प्रतियोगिता में लगभग 27 विधाओं में भाग लेने वाले प्रतिभागियों में से मात्र विवि के 6 कॉलेजों ने भाग लिया.
बताते चलें कि VKSU के अंतर्गत कुल 17 सरकारी कॉलेज और 54 अर्द्ध सरकारी कॉलेज हैं. विवि द्वारा आनन-फानन में तो तरंग महोत्सव के लिए दिनाक घोषित कर दिया लेकिन तैयारियां पूरी नही हुई. न तो ढंग का तोरण द्वार बना और न ही मंचीय साज-सज्जा. इतना ही नही छात्रों की माने तो किसी ने प्रतिभागियों के रिफ्रेशमेंट तक की व्यवस्था भी नही की.
इसके बावजूद भी प्रतिभागियों ने अपना परफॉर्मेंस दिया. हद्द तो तब हो गई जब प्रतियोगिता समाप्ति के बाद इनामो की घोषणा की गई तो सिर्फ प्रथम आने वाले विजेताओं के नाम ही घोषित किये गए.
विजेता द्वितीय और तृतीय नामो की घोषणा सुनने के लिए बैठे रहे लेकिन न तो उन नामो की घोषणा हुई और न ही विजेताओं को मेडल या सर्टिफिकेट ही दिया गया. काफी देर तक इंतजार करने के बाद छात्र भड़क उठे और उन्होंने महिला कॉलेज के सभागार में ही जहाँ आयोजन हो रहा था हंगामा मचाना शुरू कर दिया.
हंगामे के बाद प्राचार्या आभा सिंह आयीं और उन्होंने छात्र-छात्राओं को मेडल और सर्टिफिकेट 2-3 दिनों बाद देने की बात कहकर शांत कराना चाहा तो बच्चे और भड़क उठे. आभा सिंह ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि गलती आयोजनकर्ताओं की है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि समयाभाव के कारण किसी तरह आयोजन तो हो गया लेकिन मेडल और सर्टिफिकेट नही बनवाया जा सका.
विजेताओं में सबसे ज्यादा लगभग 27 विधाओं में से 17 विधाओं में महाराजा कॉलेज और लगभग 9 विधाओं में S.B कॉलेज ने पुरस्कार झटके. विजेता टीम आयोजन स्थल पर इस बात को लेकर डटी रही कि जबतक उन्हें जितने विधाओं में जीते हैं उसका लिखित प्रमाण नही मिलता वे आयोजन स्थल पर ही डटे रहेंगे. कॉलेज की प्राचार्या ने अपने कॉलेज के पैड पर लिखित देना उचित नही समझा. इस बात से गुस्साए विजेताओं ने वही पर अनशन करने की ठानी और DSW से लेकर अपने प्राचार्य और VC तक से बात की. VC ने किसी का फोन ही नही उठाया तो DSW ने तानाशाही रवैया अपनाते हुए उनसे मिलने तक जहमत नही उठाया और फोन पर ही यह कह डाला कि “जहाँ मन वहाँ डटे रहो, हम पर प्रेशर मत बनाओ. तुमलोगों के लिए मैं नियम नही बदलने वाला.” फिर क्या था यह बात तो जैसे घी में आग का काम कर गया और बच्चे अनशन के लिए सभागार में ही बैठ गए. सूत्रों की माने तो शाम तक प्राचार्या भी कम्प्यूटर कक्ष में छात्रों से छुपकर बैठी रही और फिर मौका पा धीरे से निकल गयीं. बाकि के कॉलेज स्टाफ और शिक्षकों ने भी यही काम किया लेकिन न तो विजेताओं की कोई सुध लेने आया और न ही पानी तक व्यवस्था उन रुके हुए विजेताओं के लिए करने की जरूरत ही समझा. छात्रों ने साभागर में ही रात गुजारी. विजेताओं के साथ उनका कॉलेज भी खड़ा मिला. कॉलेज के प्राचार्यो का कहना है कि आयोजक को मेडल नही उपलब्ध रहने की स्थिति में अपने महाविद्यालय के पेड पर ही लिख कर देने में क्यो आपत्ति है?
क्या कहते हैं छात्र ?
महाराजा कॉलेज के प्रतिभागी और विजेता छात्र ऋतुराज के अनुसार किसी भी विजेता को प्रमाण तो चाहिए ही और वैसे भी जब आयोजक को विजेताओं को प्रमाण देने में संकोच है तो हम छात्रों को भी महिला कॉलेज के आचरण पर गोलमाल करने का शक है. क्योंकि कॉलेज ने तो द्वितीय और तृतीय विजेताओं का नाम तक नही घोषित किया है. ऐसे में किन लोगों को विजेता घोषित किया जाएगा यह एक सवाल है.
वही दूसरे छात्र सुधांशु मिश्रा का कहना है कि आयोजको द्वारा निर्णायकों का सलेक्शन ही अनप्रोफेशनल तरीके से हुआ है. कोई मनोविज्ञान का शिक्षक पेंटिंग का निर्णय क्या दे सकता है या कोई संस्कृत का शिक्षक शास्त्रीय संगीत का क्या निर्णय दे सकता है? पारदर्शिता बिल्कुल नही रखी गयी है. यह अलग बात है कि निर्णायकों का निर्णय लगा है.
छात्र संघ के अध्यक्ष अमित कुमार सिंह ने छात्रों के इस आंदोलन को सही माना है और वे भी इस आंदोलन में विजेताओं ले साथ डटे हैं. उनकी माने तो तरंग प्रतियोगिता में कुव्यवस्था का आलम है. उन्होंने कहा कि विवि नामांकन के वक्त सभी छात्रों से 12/- की राशि प्रत्येक छात्रों से लेती है फिर भी उसे आयोजन में मेडल और बाकि चीजों की व्यवस्था तक नही हो पाती है? सुदूर गॉंव तक के बच्चे इसमें भाग लें इसके लिए होता है यह प्रतियोगिता. जब उनकी भागीदारी ही नही है तो क्यो करा रहा है विवि. वह छात्रों द्वारा वसूले गए इस पैसे को लौटा दी और यह राशि लेना बंद कर दे नही लेगा कोई भाग इस आयोजन में. यह आयोजन DSW जैसे भ्रस्ट लोगों की जेब भर रहा है. DSW इस्तीफा दें.
बात में तो दम है छात्रों के और वाजिब सवाल भी है. लेकिन एक बात यह भी है कि VKSU विवादों की उपज स्थली ही है. कोई भी काम यहाँ बिना विवाद के नही होता है. अब देखना यह दिलचस्प होगा कि विवाद को विवि प्रशासन सुलझाता है या इसे और भी हंगामेदार बना अपने पुराने ढर्रे पर कायम रहता है.
आरा से ओ पी पांडेय की रिपोर्ट