सरकार जवाब देने में अब तक है असफल
सुप्रीम कोर्ट में शहाबुद्दीन के मामले में दूसरी बार कड़ी फटकार से बिहार सरकार की जमकर किरकिरी हुई है. सरकार के वकील शहाबुद्दीन से जुड़े सवालों पर कोई जवाब नहीं दे पाए. सरकार ने यह भी स्वीकारा है कि हाईकोर्ट में वह ठीक से तथ्यों को नहीं रख पाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी के साथ पूछा है-‘ राज्य सरकार ने 45 मामलों में शहाबुद्दीन को जमानत दिए जाने को चुनौती क्यों नहीं दी? शहाबुद्दीन को जमानत मिलने तक सरकार सोई क्यों रही ? शहाबुद्दीन की रिहाई के बाद अदालत का दरवाजा क्यों खटखटाया गया ? किसके इशारे पर कोताही बरती गई और इसके पीछे कौन है? एक राज्य पंगु कैसे हो गया ? ये सवाल बीजेपी नेता सुशील मोदी ने भी उठाते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से स्थिति को स्पष्ट करने की मांग की है.
उन्होंने कहा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्वीकारा है कि शहाबुद्दीन जेल में रह कर भी न केवल आपराधिक घटनाओं को अंजाम दिलाता है बल्कि गवाहों को धमकाता भी है. ऐसे में क्या शहाबुद्दीन के जेल से बाहर और बिहार में रहते उसके मामलों की निष्पक्ष ट्रायल संभव है? क्या प्रशांत भूषण की तरह बिहार सरकार भी सुप्रीम कोर्ट से शहाबुद्दीन को बिहार से बाहर रखने और उसके सभी मामलों की सुनवाई अन्य राज्यों में करवाने की अपील करेगी ? सरकार के वकील तो इन सारे सवालों के जवाब उच्च न्यायालय में नहीं दे पाए, मुख्यमंत्री जी, क्या आपमें में बिहार की जनता को इन सवालों के जवाब देने की हिम्मत है ? क्या आप खुलासा करेंगे कि सरकार किसके इशारे पर शहाबुद्दीन को संरक्षण दे रही है ? क्या सुप्रीम कोर्ट की दूसरी बार कड़ी फटकार के बाद नीतीश कुमार शहाबुद्दीन को तिहाड़ जेल में रखने और उसे जुड़े सभी मामलों की ट्रायल बिहार से बाहर कराने के लिए तैयार है?