तीन तलाक पर ऐतिहासिक फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर लैंडमार्क जजमेंट सुनाया है. कोर्ट ने निजता ( राइट टू प्राइवेसी) को मौलिक अधिकार माना है. 9 जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से ये फैसला लिया है. ये जजमेंट सीधे-सीधे आधार कार्ड की अनिवार्यता से जुड़ा है, जिसपर केन्द्र सरकार का पूरा जोर है. इसलिए इसे बेहद अहम माना जा रहा है.
बता दें कि नौ जजों की संवैधानिक पीठ ने इस मसले पर 6 दिनों तक मैराथन सुनवाई की थी. जिसके बाद 2 अगस्त को पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. पीठ की अध्यक्षता चीफ जस्टिस जेएस खेहर कर रहे हैं. इस मामले में याचिकाकर्ता और मशहूर वकील प्रशांत भूषण ने बताया कि कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है और कहा है कि ये अनुच्छेद 21 के तहत आता है.
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने इस मसले पर सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखा था. केंद्र का पक्ष रखते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि आज का दौर डिजिटल है, जिसमें राइट टू प्राइवेसी जैसा कुछ नहीं बचा है. तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को ये बताया था कि आम लोगों के डेटा प्रोटेक्शन को लेकर कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज बीएन श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में दस लोगों की कमेटी का गठन किया है जिसमें UIDAI के सीईओ को भी रखा गया है.
आम लोगों के लिये ये फैसला महत्वपूर्ण क्यों-
विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले के बाद अगर किसी व्यक्ति से ट्रेन, एयरलाइन जैसे रिजर्वेशन के लिए जानकारी मांगी जाती है, तो ऐसी स्थिति में नागरिक अपने अधिकार के तहत उससे इनकार कर सकेगा. आधार कार्ड की जहां तक बात है तो इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अभी कुछ नहीं कहा है. आधार कार्ड के मामले में अब छोटी खंडपीठ सुनवाई करेगी. यानि इस फैसले के बाद अब एक अलग बेंच गठित की जाएगी. ये बेंच आधार कार्ड और सोशल मीडिया में दर्ज निजी जानकारियों के डेटा बैंक के बारे में फैसला लेगी.
फिलहाल इसे केन्द्र सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है क्योंकि केन्द्र सरकार प्राइवेसी(निजता) को मौलिक अधिकार मानने को तैयार नहीं थी.