“कठकरेज” में मध्यमवर्गीय परिवार में रिश्तों के ताने -बाने को प्रस्तुत करता है
गंगा स्नान में ” वृद्धजनों ” की उपेक्षा को मार्मिक ढंग से उकेरा गया
रंग सुगंध आंचलिक भाषाओं का नाट्य समारोह के पहले दिन 19 जुलाई 2023 को पटना के प्रेमचंद रंगशाला में दो नाटकों का मंचन हुआ “कठकरेज” और “गंगा स्नान”का मंचन किया गया.अमित रोशन द्वारा निर्देशित पहली प्रस्तुति कठकरेज में दिखाया गया है कि आज के भाग दौड़ वाली जिंदगी में लोग मतलबी होते जा रहे हैं. आधुनिकता में इंसान रिश्तों की कदर करना भूलकर भौतिकतावादी जिंदगी अपना रहा है. पैसे कमाने की होड़ में खून के रिश्ते झुठकर साबित हो रहे हैं.
श्रवणकुमार गोस्वामी द्वारा लिखित कहानी कठकरेज एक मध्यमवर्गीय परिवार में रिश्तों के ताने -बाने को प्रस्तुत करता है जहाँ अपने पराये हो जाते हैं और पराये अपने हो जाते हैं. गंगा बाबू ने तीनो बेटों की अच्छी परवरिश की उसे पढ़ाया लिखाया काबिल बनाकर अच्छे मुकाम पर पहुँचाया. पर इनमें से दो बेटों ने ख़ून के रिश्तों को दरकिनार कर चका चौध की ओर रुख कर लिया. वहीं तीसरा बेटा जो सगा बेटा ना होकर भी बेटे का फर्ज़ अदा करता है. यह कहानी आपकी भी हो सकती है. नहीं तो एक बार सोचने पर ज़रुर विवश करेगी. बाकी नाटक आप देखें और तय करें कि मैं आपको कहाँ तक झकझोर पाया.
गंगा बाबू:- मोहित मोहन,कांति:- कविता कुमारी,सुत्रधार:- सचिन कुमार/ अरुण कुमार, भारती रज्जन की पत्नी: कृष्णा कुमारी,ग्रामीण:- सचिन कुमार, मनोज महतो, नंदकिशार मालाकार, बिटटू कुमार ने अपने अभिनय से दर्शकों को मन्त्र मुग्ध कर दिया. नाटक में संगीत:- सूरज कुमार, वादन:- नंदकिशोर मालाकार,प्रकाश :- रोशन कुमार,कॉस्ट्यूम :- सचिन कुमार,सेट:- कुणाल भारती,प्रोपॅटी:- मोहित मोहन,मेकअप:- सचिन कुमार,सहयोग:- बिटटू एवं बिष्णु कुमार का था वहीं इस नाटक के लेखक है श्रवण गोस्वामी और निर्देशक है अमित रौशन और प्रस्तुति थी समूहः- आशीर्वाद- रंगमंडल, बेगूसराय (बिहार)
दूसरी प्रस्तुति : गंगा स्नान
भिखारी ठाकुर लिखित और मनोज कुमार सिंह निर्देशित नाटक गंगा स्नान दूसरी प्रस्तुति थी इस नाटक के माध्यम से वृद्धजनों की उपेक्षा को मार्मिक ढंग से उकेरा गया है ,गंगा पूजनीय तो वृद्ध भी पूजनीय बनें , उन्हें वृद्धाश्रम मत पहुंचाओ जैसे सन्देश देता नाटक को दर्शकों ने सराहा. नाटक गंगा स्नान की कहानी में मलेछु की शादी को सात साल हो गए हैं पर वह अबतक निःसंतन है. वह गांव के लोगों के साथ सपरिवार गंगा स्नान करने जाना चाहता है. उसके साथ बूढ़ी मां भी जाना चाहती है जिसके लिए मलेछु की पत्नी तैयार नहीं है. वह इस शर्त पर तैयार होती है की मां उसकी भी गठरी ढोएगी. भीड़ भाड़ और मेला के कारण गठरी उससे गिर जाती है, उसमे रखा कपड़ा और सामान खराब हो जाता है. गुस्से में पति – पत्नी मिलकर मां को मार – पीटकर भगा देते हैं. मेला में उसे एक ठग मिलता है जो साधु के भेष में है. साधु मलेछू बहु का सारा सामान गहना आदि छीन लेता है . उन दोनो को पछतावा होता है. वे मां को मेला में ढूंढकर लाते हैं और उसे “गंगा स्नान” करा घर लौटते हैं. इस नाटक में गंगा और उसके घाटों के आस – पास की संस्कृति तो है ही , आज के समय की सबसे बड़ी समस्या ” वृद्धजनों ” की उपेक्षा को मार्मिक ढंग से उकेरा गया है , “गंगा पूजनीय तो वृद्ध भी पूजनीय बनें , उन्हें वृद्धाश्रम मत पहुंचाओ.”
साहेब लाल यादव,लड्डू भोपाली,कृष्णा प्रजापति,गोकुल गुलशन,राजा,सुंदरम ने अपने अभिनय से प्रस्तुति को जीवंत बनाए रखा अन्य भूमिकाओं में तांत्रिक – लव कुश सिंह,माँ – आशा पांडेय,अटपट – मनोज कुमार सिंह,अटपट बहु – ऋतु पांडेय,मलेछु – पंकज भट्ट,मलेछु बहु – साधना श्रीवास्तव,संगीत – श्याम बाबू कुमार ,गायन – राजा बसंत , मेहंदी राज,झाल – शशिकांत निराला, वादन – अभय ओझा (तबला) , हरिशंकर निराला (ढोलक) दल संयोजक सह रूप सज्जा एवं वस्त्र विन्यास – तिरुपतिनाथ परिकल्पना व निर्देशन – मनोज कुमार सिंह
इस अवसर पर प्रमोद पवार, अखिल भारतीय नाट्य विधा संयोजक,संस्कार भारती,पदमश्री श्याम शर्मा, अध्यक्ष, संस्कार भारती बिहार प्रदेश,संजय उपाध्याय, वरिष्ठ नाट्य निर्देशक रोशन , कार्यकारी अध्यक्ष, संस्कार भारती बिहार, रोहित त्रिपाठी, रंग निर्देशक,नई दिल्ली,वेद प्रकाश जी, संगठन मंत्री , संस्कार भारती बिहार प्रदेश उपस्थित थे .मंच संचालन राजीव रंजन श्रीवास्तव ने किया, मीडिया प्रभारी थे मनीष महिवाल.
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