स्पेशल ट्रेन के नाम पर यात्रियों के साथ मजाक क्यों?

स्पेशल ट्रेन यानि कम से कम 12 से 15 घंटे लेट. अब जरा सोचिए. छठ स्पेशल ट्रेन अगर छठ के बाद अपनी मंजिल पर पहुंचे तो फिर क्या मतलब है ऐसी ट्रेन का. सबसे बड़ा मजाक तो यही है कि बिहार के लिए कई ट्रेनें सिर्फ छठ स्पेशल के तौर पर चलाई जा रही हैं, लेकिन इससे घिनौना मजाक क्या हो सकता है कि ये ट्रेनें पूरे पैसे लेकर यात्रियों के साथ छल कर रही हैं.




दिल्ली, मुंबई या फिर किसी अन्य मेट्रो सिटी से छुट्टी लेकर छठ के घर आने वाले कई यात्रियों से patnanow की टीम ने बात की. सबका एक सुर में कहना था कि रेलवे कहने को तो महापर्व में सुविधा के नाम पर स्पेशल ट्रेन चलाता है जिसमें पूरे पैसे देकर यात्री किसी तरह पर्व में घर पहुंचना चाहते हैं. लेकिन इन ट्रेनों में सुविधा के नाम पर कुछ नहीं होता. ना तो पैंट्री कार होती है, ना पीने का पानी मिलता है और सबसे बड़ी बात ये कि स्पेशल ट्रेनों को पूरे रास्ते जहां-तहां रोककर दूसरी ट्रेनों को क्रॉस कराया जाता है.

नतीजा ये होता है कि स्पेशल ट्रेन अपनी मंजिल पर इतनी देर से पहुंचती हैं कि उन ट्रेनों को चलाने के मकसद पर ही सवालिया निशान लग जाता है. यही कारण है कि ज्यादातर लोग बड़ी ट्रेनों में ही सफर करना पसंद करते हैं ताकि समय पर घर पहुंच सकें. स्पेशल ट्रेनों को लेकर ये शिकायत कोई नहीं है. हर साल ये समस्या देखने को मिलती है. हर बार होली, दीवाली और छठ पर लोग ऐसे ही भेड़-बकरियों की तरह प्लेटफॉर्म पर बड़ी ट्रेनों के लिए लाइन में खड़े और बोगियों पर टूटते नजर आते हैं जबकि स्पेशल ट्रेनों के नाम पर केवल खानापूर्ति ही होती है. अब देखना है कि नए रेल मंत्री के लिए ये समस्या कितनी अहम है और वे इसे कैसे सुलझाते हैं.

दिल्ली से आशुतोष की रिपोर्ट

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