कई विभागों के नहीं बन पाए हैं स्टॉल
लोग मेले से मायूस होकर लौट रहे हैं
सरकारी उदासीनता का उदाहरण दिख रहा मेला में
नोटबंदी का असर भी पड़ा है सोनपुर मेला में
किसानों को नहीं मिला रहा है कोई लाभ
सोनपुर मेला जिसे विश्व प्रसिद्ध पशु मेला कहा जाता है आज वह मेला प्रशासनिक लापरवाही के कारण अपना मूल स्वरूप खोता जा रहा है.इस मेले में दुर दराज से लोग पशुओं की बिक्री ,कृषि की नई तकनीक ,उपकरण और बीजों की जानकारी के लिए हजारों की संख्या में किसान आते है पर इस साल विभागों की उदासीनता देखनी हो तो सोनपुर मेला आइये.मेले के उद्घाटन के पांचवे दिन भी मुक्कमल तैयारी नहीं हो पाने से लोगों में भारी निराशा है.इस मेले में खरीद बिक्री के अलावे सरकार के कई विभाग के स्टॉल लगाए जाते है जहाँ लोगों को कई प्रकार की जानकारियां दी जाती है.
युवाओं को रोजगार महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधा जैसी जानकारियाँ इस मेले में मिलती है पर इस बार विभागों के अधिकारियों के अकर्मण्यता के कारण टेंडर ही सही समय पर नहीं मिला जिसके कारण पांच दिनों बाद भी उनके स्टॉल नहीं लग पाए हैं .पर्यटन विभाग ने सांकृतिक कार्यक्रमों को छोड़ लोगों में किसी भी प्रकार की दिलचस्पी नहीं दिख रही है ऐसा लगता है कि बिना किसी मास्टर प्लान के आनन फानन में मेले का आयोजन कर लिया गया है. कृषि और पशु मेला की उपयोगिता के मद्देनजर ही कालांतर में इस मेले की शुरुआत हुई थी पर अब इस मेले से लोगों का रुझान कम होने लगा है,किसान आ रहे है लौट के चले जा रहे है उनके लिए नया कुछ है ही नहीं. सरकार के विभिन्न विभागों की ओर से करोड़ों रुपये खर्च किये जाते है इस आयोजन में , पर समय से शुरू नहीं हो पाने में लोगों को जो फायदा मिलना चाहिए वो नहीं मिल पाता है.
विदेशी पर्यटकों को रिझाने के लिए पर्यटन विभाग ने करोड़ों रुपये खर्च कर उनके रहने खाने पीने का इंतजाम करती है पर जितने पर्यटक आने चाहिए वो नहीं आ पाते. एक माह तक चलने वाले मेले में अभी आस पास के लोग ही आ पा रहे है .दूर दराज के लोग शिरकत नहीं कर पा रहे हैं.बच्चों के लिए झूले और खिलौने मिल रहे है वहीँ युवाओं को थियेटर के नाम पर अश्लील नृत्य ही देखने को मिल रहे है. स्थानीय लोग कहते हैं कि भगवान् ही मालिक है अब सोनपुर मेला का .