‘मैं तमाशा’ एकल नाटक ने हिजड़ों की व्यथा कथा पर सोचने को किया मजबूर

By pnc Mar 29, 2022




पद्मश्री श्याम शर्मा ने कहा – नाटक में कई चित्र और बिम्ब दिखे जो प्रसंशनीय है
मनोज मानव द्वारा लिखित, निर्देशित एवं अभिनीत एकल प्रस्तुति ‘मैं तमाशा!’ की प्रस्तुति

दबे-कुचले वर्ग के बच्चों को ग्लोबल स्तर पर शिक्षित करने का काम करते है समाजसेवी विनोद

‘कालिदास रंगालय के शकुंतलम प्रेक्षागृह में ‘बिनोद कुमार (समाज-सेवी)’ को कंकडबाग कॉलोनी मोड़ स्थित अपने मॉल(डेली-निड्स) से होने वाले विशुद्ध आमदनी से समाज के दबे-कुचले वर्ग के बच्चों को ग्लोबल स्तर पर शिक्षित करने हेतु मानवता के अनमोल मिशाल के लिए सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था ‘बयार’ द्वारा पद्मश्री ‘श्याम शर्मा’ के हाथों ‘स्व॰ राघव सीता देवी सिंह ‘मातृ-पितृ सम्मान’ 2020-21(द्वितीय) से सम्मानित किया गया है .संस्था ‘बयार’ ने दूसरी बार ‘संघर्ष से सम्मान तक(द्वितीय-अंक) स्मारिका का भी विमोचन किया .संस्था ‘बयार’ ने अपने इस सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजन में मनोज मानव द्वारा लिखित, निर्देशित एवं अभिनीत एकल प्रस्तुति ‘मैं तमाशा!’ की भी प्रस्तुति हुई. इस आयोजन में साहित्यकार रवीद्र भारती, डॉ अजय पांडे(प्राचार्य, काला महाविद्यालय, पटना), फ़िल्मकार अरविंद रंजन दास आदि गणमान्य उपस्थित थे.

समाजसेवी बिनोद कुमार जी के पद्म श्री श्याम शर्मा जी के हाथों स्व. राघव सीता देवी सिंह मातृ पितृ सम्मान से समानित किया देहाल गायिल,श्याम शर्मा,आशुतोष कुमार(आईआरएस) फिल्म निर्देशक अरविंद रंजन दास,डॉ विनय विष्णुपुरी,डॉ विजय कु पांडे,अरविंद रंजन दास,डॉ सुधीर कुमार (पूर्व रजिस्ट्रार, अनुग्रह नारायण सिंह समाज अध्ययन संस्थान, पटना)को  अंगवस्त्र और प्रतिक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया.

कथानक: विम्ब के भाव में एक किन्नर अपनी सुरक्षा एवं संरक्षा का दायित्व ज्योति-गुच्छ एवं दुपट्टा के सहारे समाज के अंदर के शुतुरमुर्ग हिजड़े को धिक्कारता है, चोटिल करता है तो समाज द्वारा उपेक्षित समुदाय(किन्नर) के प्रतिविम्ब के रूप में अभिनेता मनोज मानव की व्यंग्य-यात्रा जो रौशनी के दर्द से लेकर दामिनी की विभत्स मौत जैसी तमाम घटनाएँ समाज में छुपे ऐसे हिजड़ेपन को कथानक के साथ पूरी तरह न्याय करते हुए अपने एकल-अभिनय द्वारा अत्यंत प्रभावकारी तरीके से अंदर तक झकझोर देते हैं, आंदोलित कर देते हैं. नाटक में मंच के माध्यम से विभिन्न चरित्रों को जीते हुए अभिनेता मनोज मानव कहते हैं कि इस देश में सबकुछ है, अगर नहीं है तो औरत या औरत कि तरह दिखने वाली किसी भी चीज़ कि इज्ज़त, उसकी सुरक्षा, उसकी स्वतन्त्रता. समाज, सिस्टम और कानूनी-व्यवस्था पर पुनर्विचार करने की बात करते-करते संवेदनात्मक स्थिति में जब अभिनेता पहुँचता है और कहता है कि मी लॉर्ड! हमारी हिफाजत भजी नहीं और मुझे मेरी मौत मरने कि इजाजत भी नहीं तो कलेजा मुंह के बल आ जाता है. वहीं जब वो धिक्कारता है कि कहाँ हैं वो जिन्हें अपने मनुष्य होने पर बड़ा गर्व है तो सर शर्म से वाकई झुक जाता है.

जहां किन्नर के माध्यम से औरत के दर्द की दास्तान प्रस्तुति के दूरगामी सोच को दर्शाते हुए अपने एकल प्रस्तुति से बतौर अभिनेता मनोज मानव एक बार फिर पूरी तरह मिल के पत्थर साबित हुए. नाट्यकार, परिकल्पना, निर्देशन एवं अभिनय: मनोज मानव की थी जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया.प्रकाश परिकल्पना- उपेंद्र कुमार/ ध्वनि-प्रभाव- जीशान साबिर/ वस्त्र-विन्यास- माधुरी सिंह/ मंच-व्यवस्था एवं सामाग्री- सगार इंडिया एवं धीरज/ प्रचार-सामाग्री सह मीडिया-प्रभारी: अनामिका सिंह एवं गोपाल पांडे, प्रस्तुति-प्रभार सह प्रेक्षागृह-संयोजन: राजीव नयन, हरेन्द्र बहादुर आदि.स्मारिका संपादन टुपी जाह्नवी सिंह तथा संपादक-मण्डल: मनोज मानव एवं अनामिका कुमारी का था.

दर्शक बोलेनंदलाल सिंह

मैं तमाशा ‘ आद्योपान्त देखा . दिल को झकझोर देने वाले संवाद , कसे हुए अभिनय के तार से बंधे संप्रेषण कहीं – कहीं मौन क्रंदन ,  विह्वलता, आतुरता और आक्रोश की  स्थिति में ले गये तो कभी नारी जीवन के पृष्ठ – दर – पृष्ठ क़दमों में चूभते शूल तथा उसके दर -दर चरणबद्ध क्षय का दोषी विद्रूप चेहरा लिए  जिम्मेदार हम सभी अर्ध – मर्दों को ललकारते हुए प्रश्न चिन्ह छोड़ गया . प्रहार सीधे हृदय पर हुआ. मंच परिकल्पना , प्रकाश एवं सामयिक संगीत का बेजोड़ सामंजस्य अनुकरणीय रहा . ध्वनि विस्तारक यंत्र ने आपकी त्रिविमीय जादुई आवाज को सुस्पष्टता से दर्शकों के बोधगम्य जागृत संज्ञान तक पहुंचाया जो इस उत्कृष्ट कोटि के रचित संवाद संप्रेषण के लिए आवश्यक था. मैंने साहित्य को बोलते एवं मंच पर चलते देखा. जिन्हें नाटक, साहित्य, अभिनय, मंचादि विधाओं से सरोकार है , वे रस में सराबोर होते रहे. समाज के स्याह चेहरे पर कुठाराघात जारी रखें. 

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