आज तक कई अनुसन्धान बाकी हैं
नहीं हुई दोषियों पर कार्रवाई
जब-जब रेल दुर्घटना हुआ, देश में कोहराम मचा है. बात चाहे आज अहले सुबह कानपुर में पटरी से उतरी पटना-इंदौर एक्सप्रेस की हो या फिर बंगाल में चार साल पहले हुए ज्ञानेष्वरी एक्सप्रेस की. दुर्घटना के पीछे कारण चाहे जो भी हो लेकिन आरोप-प्रत्यारोप में खत्म हो जाती है असली कारणों की तहकीकात और अपने नीयत चाल से पटरियों पर दौड़ पड़ती है रेल. सवारियों की जान-जोखिम में डाल पटरी पर दौड़ती रेलवे प्रशासन क्या इस बार अपनी मुंह खोलेगा और मामले की सही तहकीकात कर दोषियों पर कोई कार्रवाई होगी?
सवाल इसलिये कि आज से करीब 12 साल पहले हावडा-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस के दो बोगी मगध के लाल गलियारे स्थित रफीगंज स्टेशन के समीप मदार नदी में गिर गयी थी. सितंबर का महीना था और नदी में बाढ़ आयी हुई थी. देश की वीआईपी गाड़ियों में शुमार राजधानी एक्सप्रेस के मदार नदी में गिरने से करीब 150 यात्रियों की मौत हो गयी थी और 500 से अधिक गंभीर रूप से घायल थे. तब बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद थे और महज संयोग था कि रेल मंत्री थे नीतीश कुमार. जो इस समय बिहार के मुख्यमंत्री हैं. रात्री के करीब 11 बज रहे थे और अधिकांश यात्री गहरी निद्रा में थे. घटना से उत्पन्न हालात बेकाबू हो गये थे. हालांकि उस वक्त बिहारियों की सेवा को देश ने सराहा था. घायलों को रफीगंज जैसे छोटे जगह में समुचित इलाज नहीं हो पा रहा था. चूकि यह इलाका माओवादियों का गढ़ माना जाता था इसलिये भी प्रशासन फूंक-फूंक कर कदम रख रही थी.
बहरहाल, घटनास्थल पर दोपहर बाद पहुंचे तत्कालीन रेलमंत्री नीतीश कुमार मुदार्बाद के नारे लगे थे. वहीं रेलमंत्री ने इस घटना के लिये बिहार सरकार को लताड़ते हुए सुरक्षा में चूक बताया था. जबकि अहले सुबह रफीगंज पहुंचे तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद इस बड़ी घटना के लिये मदार नदी पर सौ साल पहले बने रेल पुल को कमजोर बताया था. कारण चाहे जो भी हो. लेकिन देश की यह बड़ी घटना भी सियासी भेंट चढ़ गया. अबतक न तो बिहार पुलिस इस मामले में किसी नतीजे पर पहुंची और न ही रेलवे प्रशासन.
बताते चले कि इस घटना के पहले कभी भी माओवादियों पर यह तोहमत नहीं लगा कि माओवादी सनसनी फैलाने या फिर रेलवे पैसेंजर को लुटने के ख्याल से पैसेंजर गाड़ियों पर हमला किये हों. हां जब कभी माओवादी पुलिस से हथियार लूटने के ख्याल से रेलवे को निशाना बनाते रहे हैं. बहरहाल, सच्चाई चाहे जो भी हो सियासी भेंट चढ़ चुके राजधानी एक्सप्रेस कांड का अनुसंधान अब भी पुलिस फाइल में चल रहा है. इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि आरोप-प्रत्यारोप के इस सियासी दौर में सरकारें चाहें जो करें लेकिन माओवादियों ने उस वक्त इस मामले को गंभीरता से लिया था और इलाके के कई चोर गिरोहों को खुलेआम जनअदालत लगाकर मार दिया था. उसके बाद से दूसरी बार जब बंगाल में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हुई. इस घटना में भी सौ से अधिक यात्रियों की मौत हुई थी. घायलों की संख्या सैंकडों थी. तब भी रेलवे प्रशासन ने इस घटना के लिये राज्य सरकार को दोषी माना था वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसे माओवादी नेता किशन जी की चाल बतायी थी. हालांकि माओवादी इस घटना के लिये सीपीएम को जिम्मेवार बताते हुए अपना पल्ला झाड लिया था. आरोप-प्रत्यारोप के इस दौर में एक बार फिर आशंका है कि कानपुर में हुए पटना-इंदौर एक्सप्रेस की जांच कागजों में दब कर रह जाएगी.
लेखक श्याम सुन्दर पत्रकार और जन अधिकार पार्टी [लो] के राज्य प्रवक्ता हैं.