बात पुरानी है लेकिन बहुत दिलचस्प है. चंद्रशेखर सिंह बिहार के थे. उन्हीं दिनों पटना में जनता पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन होना तय हुआ था. कंकड़बाग कॉलोनी में सरकार का हाउसिंग बोर्ड आवास बना रहा था. कॉलोनी लगभग तैयार थी. थोड़ा बहुत काम बाक़ी था. फ़्लैट वग़ैरह अभी ख़ाली थे. बाहर से आने वाले प्रतिनिधियों के ठहरने की समस्या का वहाँ आसानी से समाधान हो जाता था. इसलिए तय हुआ कि सम्मेलन के लिए सबसे उपयुक्त स्थल यही होगा. लेकिन सड़क और पानी का थोड़ा बहुत काम बाक़ी था. संभवतः सच्चिदा बाबू स्वागत समिति के अध्यक्ष थे. 77 में वे कर्पूरी जी के मंत्रिमंडल में सिंचाई मंत्री थे. उनकी सोहरत थी. बहुत साफ और बेलौस बोलते थे.
सम्मेलन का समय पास आ रहा था. लेकिन सम्मेलन स्थल यानी कॉलोनी का बचाखुचा काम पूरा करने में अफ़सर तत्परता नहीं दिखा रहे थे. तय हुआ कि मुख्यमंत्री से मिला जाए. उनसे अनुरोध किया जाए कि वे बाक़ी बचे हुए काम को समय सीमा के अंदर पूरा करा देने के लिए अधिकारियों को सक्रिय करें.
मुख्यमंत्री से मुलाक़ात का समय लिया गया. वशिष्ठ भाई (वशिष्ठ नारायण सिंह, सांसद) भी सच्चिदा बाबू के साथ थे. उन्होंने ही यह क़िस्सा सुनाया था.
जब ये लोग सीएम चैंबर में दाखिल हुए तो देखा कि मुख्यमंत्री जी फ़ाइल देखने में मशगूल हैं. उन्होंने इन लोगों की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा. जबकि समय लेकर उनसे मिलने ये लोग गए थे.
सच्चिदा बाबू इस उपेक्षा को कहाँ बर्दाश्त करने वाले थे ! उन्होंने चंद्रशेखर बाबू को सुनाने के लिए वशिष्ठ भाई से कहा ‘जानते हो वशिष्ठ, यह जो कुर्सी है, है तो अस्थायी. लेकिन इस पर बैठने वाले को ग़लतफ़हमी हो जाती है कि यह स्थायी है’. सच्चिदा बाबू की यह बात चंद्रशेखर बाबू को करेंट की तरह लगी. तुरंत कुर्सी से उठ कर खड़े हुए. इन लोगों को बैठाया. समस्या पूछी. विभाग के संबंधित पदाधिकारियों को बुलाकर सारी समस्याओं का तय सीमा के अंदर समाधान का निर्देश दिया.
इस प्रकार जनता पार्टी का वह राष्ट्रीय सम्मेलन बहुत बढ़िया से संपन्न हो गया.. लेकिन सच्चिदा बाबू ने कुर्सी को लेकर जो बात कही थी वह तो लगभग शाश्वत है. पता नहीं वशिष्ठ भाई ने यह कहानी कभी नीतीश को सुनाई है या नहीं !
शिवानन्द तिवारी