एक महान शिल्पर्षि फणीभूषण विश्वास के 86वें जन्मदिन पर विशेष
भारत के शिल्प और शिल्पकार यहां की लोक एवं शास्त्रीय परंपरा का अभिन्न अंग हैं. यह ऐतिहासिक समांगीकरण कई हजार वर्षों से विद्यमान है. हाथों से बनाई गई वस्तुएं शिल्प की दृष्टि से भारत की सांस्कृतिक परंपरा को दर्शाती हैं. शिल्पकारों के कौशल को सांस्कृतिक और धार्मिक आवश्यकताओं द्वारा प्रोत्साहित किया गया एवं स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा इसे गति प्रदान की गई लेकिन बिहार में शिल्पियों का कोई पुरसाहाल लेने वाला नहीं है. ऐसे ही एक शिल्पर्षि हैं फणीभूषण विश्वास जिन्हें बच्चा या बड़ा सब कोई जानता है उन्हें .उनकी कारीगरी के फन के हर कोई दीवाना है यहाँ तक की राज्य के मुखिया भी.दर्जनों सम्मान उन्हें मिल चुके हैं. लेकिन कह जाता है कि अगर आप कलाकार है तो आपको अपने घर में वो सम्मान नहीं मिल पाता है जिसके आप अधिकारी हैं.
जीवन के 86 बसंत देख चुके शिल्पर्षि फणीभूषण विश्वास चित्रकला,मूर्तिकला और शिल्पकला के क्षेत्र में बचपन से ही साधनारत है जिसके फलस्वरूप देश के श्रेष्ठ शिल्पी उपेन्द्र महारथी ने 1967 में कला सम्मान से नवाजा गया.देश के कोने कोने में उनके हाथों की बारीकियों से तैयार कलाकृतियों कोलोगों ने पसंद किया .राज्य के कला प्रदर्शनी ,फोटोग्राफी, मूर्तिकला के विशेष आयोजनों में उन्हें बुला कर सम्मानित किया गया .उन्होंने लज्जा रूपी आभूषनों की संस्कृति में सिमटी सोडषी का निर्माण १९९० में किया जिसके बाद उनकी कला को देश- विदेश में ख्याति मिली. वैशाली महोत्सव ,राजगीर महोत्सव में पर्यटन सम्मान से सम्मानित भी किया गया.वर्ष २०१३ में नितीश कुमार ने सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन परिसर में उनके द्वारा बने गई आदमकद प्रतिमा का अनावरण भी किया गया .
शिल्पर्षि फणीभूषण विश्वास कहते है की कला सृजन का मेरा उदेश्य अपनी कार्य सफलता में नहीं बल्कि उसके स्थायित्व की प्राप्ति में हैं ,ऐसे रचना की सतत तलाश जिसकी अभिव्यक्ति के लिए भाषा न मिले शब्द सहमता दिखे.ब्रश तुलिका से निर्मित रचनाओं में ही नहीं,वरण मुझे प्रकृति प्रदत्त हर रचनाओं में कला का अद्भुत समावेश दृष्टिगत है और मेरी अतृप्त चेतना स्वतः मेरी कलाओं से संतृप्त होती है.ऐसे महान कलाकार के अन्दर किसी प्रकार की भूख दिखती है तो सिर्फ कला की शिल्प की. आकाशवाणी और दूरदर्शन में उन पर आधारित कार्यक्रम भी बनये गए है.
उनकी पुत्री पल्लवी विश्वास कहती है कि एक कलाकार अपने जीवन के महत्वपूर्ण समय कलाकृतियों को गढ़ने में लगा देता है लेकिन उसे मिलता है क्या.लेकिन शिल्पकार के सामने होता है उसका अपना कर्म जो उसे करना जानता है वह. इसका जीता जागत नमूना देखना हो तो सीतामढ़ी में देखिए. सिर्फ सादगी भरी भारतीय मुस्कान जिसे “सद्यस्नाता घटधारिणी” की संज्ञा प्राप्त है. इसके रचयिता हैं शिल्पर्षि फणीभूषण विश्वास. सीतामढ़ी जैसे कस्बाई शहर में एकलव्य -सी तत्परता से ख़ुद को गढ़नेवाले 86 वर्षीय कलाकार. जिन्होंने अपनी एक अनन्यकृति “जानकी उद्भव” को सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन परिसर में बड़े आकार में स्थापित कर इस पावन धरा के धार्मिक पर्यटन मूल्य को रेखांकित किया हैं.
अब सोच में मत पड़ जाइएगा कि इस एवज में मिली अकूत राशि का इन कलाकार ने क्या किया होगा क्योंकि राष्ट्रपति के विशेष आदेश पर आवंटित इस जगह को मुहैया कराकर रेलवे ने और धार्मिक न्यासबोर्ड से मूर्ति बनाने का खर्च निकलवा कर बिहार पर्यटन विभाग ने और मुख्यमंत्री बिहार नीतीश कुमार ने अपने हाथो इस लाइफसाइज़ कृति को सीतामढ़ी -मां जानकी की अवतरण भूमि में “लोकार्पित” कर इतने प्रकार से इन प्राप्तवय शिल्पी फणी भूषण विश्वास जी को एहसानों से लाद दिया है कि उसके बाद न तो किसी प्रकार की मानदेय राशि भेंट करने की ज़रूरत समझी गई,न किसी पद्म या अन्य पुरस्कार के उपयुक्त मान अलग से धनराशि या सम्मान देने की ज़रूरत समझी गयी. रही बात अकादमियों के फेलो- फॉलोशिप की तो सीधा सा जवाब कि इन्होंनें कोई फॉर्मल ट्रेनिंग थोड़े ही ली है.