“नदी संवाद केवल एक आयोजन नहीं है, बल्कि एक लम्बे आन्दोलन का हिस्सा’
500 वर्षों में मानव केन्द्रित विकास की अवधारणा के कारण जलवायु परिवर्तन का भीषण संकट
मानव केन्द्रित विकास का विकल्प अब आगे केवल प्रकृति केन्द्रित विकास ही
12 अप्रैल 2022 को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में ‘नदी संवाद” नाम से सम्मलेन
प्रकृति केंद्रित विकास पर बन रही सहमति
नदी संवाद को सफल बनाने में जुटी संस्थाएं
- शामिल होंगे : स्वामी राजेंद्र दास जी (मलूक पीठ), स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज (गीता मनीषी), सरयू राय, राम बहादुर राय, रवि चोपड़ा, विक्रम सोनी, यमुना मिशन के संयोजक प्रदीप बंसल व अन्य
“नदी संवाद केवल एक आयोजन नहीं है, बल्कि एक लम्बे आन्दोलन का हिस्सा है। इस उद्घोषणा के साथ 12 अप्रैल 2022 को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में ‘नदी संवाद” नाम से सम्मलेन आयोजित हो रहा है। कोरोना संकट के लॉकडाउन काल में गोविन्दाचार्य ने अपने सहयोगियों के साथ गंगाजी, नर्मदाजी और यमुना जी की अध्ययन यात्रा की थी 1 सितंबर से 2 अक्टूबर 2020 तक श्री राम तपस्थली ( ऋषिकेश से ऊपर) से गंगासागर तक गंगा यात्रा हुई थी। नर्मदा की यात्रा 19 फरवरी 2021 को अमर कंटक से प्रारंभ होकर 17 मार्च 2021 को अमरकंटक में विसर्जित हुयी थी। यमुना यात्रा विकास नगर (उतराखंड) से 28 अगस्त 2021 को प्रारम्भ होकर 15 सितंबर 2021 को प्रयागराज में विसर्जित हुयी थी। भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाली इन तीन नदियों की यात्रा ने नदियों की वर्तमान दशा को प्रत्यक्ष देखने का अवसर तो प्रदान किया ही, साथ ही इन नदियों के आसपास बसे आम समाज एवं सत समाज से संवाद का अवसर भी प्रदान किया। पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों द्वारा जलवायु परिवर्तन रूपी संकट का जो वर्णन हो रहा है. नदियों की यात्रा में उसका प्रत्यक्ष दर्शन हुआ। पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के संकट को समझने के लिये नदियों की दशा का अध्ययन साधन है. इसका प्रत्यक्ष अनुभव इन यात्राओं ने हमें कराया है।
अनेक वर्षों से गोविन्दाचार्य “प्रकृति केन्द्रित विकास की संकल्पना को सबके सम्मुख रख रहे है। विगत 500 वर्षों में मानव केन्द्रित विकास की अवधारणा पर चलकर जलवायु परिवर्तन” रूपी ऐसा भीषण संकट खड़ा हो गया है, जिसने मानव सहित सम्पूर्ण जीव-जगत सृष्टि के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिहन लगा दिया है। प्रकृति के शोषण एवं विध्वस पर आधारित इस मानव केन्द्रित विकास का विकल्प अब आगे केवल प्रकृति केन्द्रित विकास ही है। नदियों की यात्रा ने हमारे इस विश्वास को अधिक पुष्ट ही किया है।
भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाली इन तीन नदियों की यात्रा ने नदियों की वर्तमान दशा को प्रत्यक्ष रूप से देखने का अवसर दिया, तो इन नदियों के आसपास बसे आम समाज एवं संत समाज से संवाद का अवसर भी प्रदान किया. पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों द्वारा ‘जलवायु परिवर्तन’ रूपी संकट का जो वर्णन हो रहा है, नदियों की यात्रा में उसका प्रत्यक्ष दर्शन हुआ. पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के संकट को समझने के लिए ‘नदियों की दशा का अध्ययन’ साधन है, इसका प्रत्यक्ष अनुभव इन यात्राओं ने हमें कराया है.
नदियों की वर्तमान दशा को देखकर सभी संवेदनशील और विवेकशील लोग ‘जलवायु परिवर्तन’ रूपी संकट और ‘प्रकृति केंद्रित विकास’ रूपी समाधान पर एकमत हो रहे हैं. उस सहमति को धरातल पर उतारने के लिए समान विचार वाले व्यक्तियों और संस्थाओं के सम्मलेन का नाम है – ‘नदी संवाद’. नदी संवाद में पारित होने वाले प्रस्ताव इस समिति की भावी दिशा तय करेंगे.
राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के इस सम्मलेन को सफल बनाने में अनेक संगठन, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग कर रहे हैं. इनमें यमुना मिशन, शाश्वत हिंदू प्रतिष्ठान, भारत विकास संगम, उज्ज्वल भारत, राष्ट्र जागरण अभियान, छठ समितियां आदि शामिल भी हैं. नदियों को पुनर्जीवित करने में प्रयत्नशील अनेक सामाजिक नेताओं, पूज्य संतों और पर्यावरणविदों की सहभागिता इस सम्मलेन में होने जा रही है. नदी संवाद में जो लोग भाग लेंगे, उनमें स्वामी राजेंद्र दास जी (मलूक पीठ), स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज (गीता मनीषी), सरयू राय, राम बहादुर राय, रवि चोपड़ा, विक्रम सोनी, यमुना मिशन के संयोजक प्रदीप बंसल व अन्य शामिल हैं.
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