पटना- सरस मेला का क्रेज दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है l यहाँ आकर क्रेता और विक्रेता दोनों खुश हो जाते हैं l खुश होने की वजह यह है कि क्रेताओं को उनका मनपसंद उत्पाद एवं व्यंजन मील जाता है वहीँ क्रेताओं को उसकी वाजिब कीमत l इसके साथ ही ग्रामीण शिल्प, लोककला, हुनर, परंपरा एवं संस्कृति को उचित सम्मान भी सरस मेला के माध्यम से मिल रहा है l यहाँ तक कि बिहार परिभ्रमण पर आये विदेशी सैलानी भी बिहार सरस मेला के आयोजन एवं कुशल व्यवस्था की तारीफ कर रहे हैं.
लन्दन से आये एलन दंपत्ति ने भी सरस मेला परिभ्रमण के दौरान बताया कि सरस मेला काफी रंग-बिरंगा है l काफी सुंदर सजावट है l ग्रामीण शिल्प एवं हस्तकला का क्रेज बिहार से बाहर निकलकर राष्ट्रीय और अब अन्तराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रहा है l ग्रामीण महिला उद्धमियों एवं स्वरोजगारियों द्वारा हस्तनिर्मित शिल्प एवं उत्पाद की सरस मेला में खूब खरीद-बिक्री हो रही है l वहीँ शुद्ध , स्वादिष्ट एवं पौष्टिक देशी व्यंजन भी फ़ूड जोन में लोगों की पसंद बने हुए हैं . जीविका दीदियों द्वारा संचालित दीदी की रसोई स्टॉल पर पारंपरिक एवं देशी व्यंजन का स्वाद लोग ले रहे हैं .
बिहार सरस मेला का आयोजन वर्ष 2014 से बिहार ग्रामीण जीविकोपार्जन प्रोत्साहन समिति, जीविका द्वारा किया जा रहा है . तब से निरंतर सरस मेला में खरीद-बिक्री का आंकड़ा अपने पूर्व के रिकार्ड को तोड़ते हुए आगे बढ़ रहा है l महज 5 दिनों में खरीद-बिक्री का आंकड़ा लगभग 4 करोड़ 15 लाख रूपया रहा . सोमवार को 85 लाख 45 हजार रुपये के उत्पादों एवं व्यंजनों की खरीद-बिक्री हुई . खरीद-बिक्री का यह आंकड़ा स्टॉल धारकों से लिए गए आकंड़ो पर आधारित होता है . मंगलवार को 70 हजार से ज्यादा मेला के कद्रदान आये .
सरस मेला कई मायने में खास है. ग्रामीण शिल्प, हुनर एवं उत्पाद और व्यंजन को प्रोत्साहन एवं बड़ा बाज़ार मिला है जहा. पूरानी एवं देशी उत्पाद भी पुनर्जीवित हो गए हैं . रोहतास जिला अंतर्गत अकोढ़ी गोला गाँव से कौशल्या देवी अपने पति के साथ देशी कम्बल एवं दरी लेकर बिक्री के लिए आई हैं . 58 वर्षीय कौशल्या देवी लक्ष्मी जीविका स्वयं सहायता समूह से जुडी हैं और समूह के संबल से ही देशी कम्बल एवं दर निर्माण का निर्माण अपने हाथों से करती हैं . जीविका ने इन्हें कम्बल निर्माण का प्रशिक्षण एवं फिर उत्पादन के लिए 50 हजार रूपया ऋण भी दिया है. ये निर्माण कार्य में लगी रहती हैं और इनके पति श्री राम नगीना जी उसे बाज़ार में ले जाकर बेचते हैं. कौशल्या भेड़ के उन को चरखा पर काटकर धागा बनती हैं और फिर मशीन से कम्बल का निर्माण करती हैं. भेड़ का बाल वो उत्तर प्रदेश के भदोही और बनारस से खरीदती हैं l कौशल्या पहली बार सरस मेला में आई हैं l और महज पांच दिनों में 30 हजार रुपये की देशी कम्बल एवं दरी की बिक्री की हैं. कौशल्या बताती हैं कि सरस मेला से उन्हें काफी फ़ायदा दिख रहा है . वो अगली बार भी सरस मेला में जरुर आएँगी . कौशल्या जैसे सैकड़ो ग्रामीण महिलायें सरस मेला में महिला सशक्तिकरण की झलक प्रदर्शित कर रही हैं .
स्वयं सहायता समूह से जुडी महिला उद्धमियों एवं स्वरोजगारियों के स्टॉल्स पर आचार-पापड़ , रोहतास का सोनाचुर चावल और भागलपुर के कतरनी चावल लोगो द्वारा बहुत पसंद किये जा रहे हैं. आयुर्वेदिक पाचक, पापड़, मिठाई , मुरब्बे, बक्सर की सोन पापड़ी, रोहतास की गुड़ की मिठाई, खादी के परिधान, अगरबत्ती, लाह की चूड़ियां, सीप और मोती से बने श्रृगार की वस्तुएं , घर- बाहर के सजावट के सामान, खिलौने के अलावा मधुबनी पेंटिंग पर आधारित मनमोहक कलाकृतियाँ, कपड़े , कालीन, पावदान, आसाम और झारखण्ड से आई बांस और ताड़-खजूर के पत्ते से बनी कलाकृतियाँ गाँव की हुनर को प्रदर्शित करते हुए लोगों को मुग्ध कर रही हैं . कृत्रिम फूल और बचपन के पारंपरिक खिलौने खूब बिक रहे हैं l सहारनपुर के लकड़ी के फर्नीचर, झूले और साज-सज्जा के उत्पादों की खूब मांग है .
ग्रामीण शिल्प, हुनर, उत्पाद एवं देशी व्यंजनों को प्रोत्साहन एवं बाज़ार देने के साथ ही जीविका लोक कलाकारों को भी अपने प्रदेश –गाँव की लोककलाओं, लोक गीत एवं नृत्य के प्रदर्शन के लिए भी मंच प्रदान कर रहा है l प्रतिदिन सांस्कृतिक कार्यक्रम अंतर्गत मुख्य मंच पर लोक गीत लोक नृत्य, गजल एवं सूफी गायन की प्रस्तुति हो रही है l मंगलवार की संध्या सांस्कृतिक कार्यक्रम अंतर्गत मुस्कान सांस्कृतिक मंच द्वारा लोक गीत, गजल एवं सूफी अंदाज में गीतों की प्रस्तुति की गई l राकेश कुमार ने चंडी जैसा रंग है तेरा , शिवम् ने सूफी गायन शैली के तहत मोरे सायें तो हैं परदेश में तथा ममता सरगम में राहों पर नजर रखना , आ जाए कोई शायद दरवाजा खुला रखना गजल पर दर्शकों को झुमाया l वाद्य यंत्रो पर अनुज, काली राज एवं राजन ने सुमधुर संगीत से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया l इससे पहले दोपहर में महिला बाल विकास निगम के तत्वाधान में विद्या केंद्र के कलाकारों द्वारा “दहेज़ से करो परहेज” लघु नाटक की प्रस्तुति की गई .
सेमिनार हॉल में बिहार सरकार द्वारा जीविका के माध्यम से संचालित सतत जीविकोपार्जन योजना अंतर्गत लाभुकों की स्थिति एवं उनके जीवन में आये बदलाव पर चर्चा की गई l इस कार्यक्रम में राज्य भर से आई सतत जीविकोपार्जन योजना की कैडर ने शिरकत की l साथ ही श्री अजित रंजन, राज्य परियोजना प्रबंधक, जीविका, श्री रतीश मोहन, परियोजना प्रबंधक, जीविका, सुधांशु पाठक, नितीश कुमार , राजेंद्र घोषाल , मनीष एवं परिधि ने कैडरों को सतत जीविकोपार्जन योजना के सफल संचालन के गुर बताये और उनके तरफ से आये सवालों का जवाब भी दिया .
सरस मेला में डिजिटल ट्रांजैक्शन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है l सभी 489 स्टॉल पर डिजिटल ट्रांजैक्शन की व्यवस्था है l इसके साथ ही मेला परिसर में में 5 ग्राहक सेवा केंद्र क्रेताओं और विक्रेताओं के सुविधा के लिए स्थापित किये गया हैं l इन स्टॉल पर हजार रुपये से लाख रुपये की जमा निकासी हो रही है l फन जोन, पालना घर और बाइस्कोप आकर्षण के खास केंद्र बने हुए हैं l मेला पूर्णत: प्लास्टिक मुक्त है l
बिहार समेत मध्य प्रदेश, आसाम, गुजरात, उत्तराखंड,जम्मू कश्मीर, झारखंड, महाराष्ट्र, तेलंगाना, उड़ीसा, केरला, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, एवम हरियाणा की स्वयं सहायता समूह और स्वरोजगारी अपने शिल्प, कला एवं उत्पाद को लेकर उपस्थित हैं। बिहार सरस मेला 15 दिसंबर से प्रारंभ हुआ है जो 29 दिसंबर तक चलेगा l समय सुबह 10 बजे से संध्या 8 बजे तक है l प्रवेश निःशुल्क है .
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