लंबे समय के बाद पटना में लगा सरस मेला हर दिन नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है. हर दिन हजारों की संख्या में लोग सरस मेला घूमने आ रहे हैं. सरस मेला घूमने आए लगभग 28000 लोगों ने एक दिन में ही लगभग 25.5 लाख रुपए की खरीदारी कर डाली.
11 सितम्बर रविवार की शाम बिहार सरस मेला का समापन होगा. सिर्फ पटना ही नहीं बल्कि राज्य के अन्य जिलों से भी आये ग्रामीण शिल्प और कलाकृतियों के कद्रदान सरस मेला में लगे देशी उत्पाद को अपने पसंद एवं जरुरत के हिसाब से खरीद रहे हैं. सरस मेला का आयोजन बिहार के लिए राष्ट्रीय स्तर का एक बड़ा आयोजन है और ग्रामीण उत्पादों को बढ़ावा देने के साथ- साथ उन्हें बाज़ार उपलब्ध करने का एक बड़ा जरिया भी है.
मेला में कैशलेश खरीददारी की भी व्यवस्था है. साथ ही ग्राहक सेवा केंद्र से रुपये की जमा निकासी भी हो रही है.
मेला के आठवें दिन शुक्रवार को भी आगंतुक आये और अपने मनपसंद उत्पादों की खरीददारी की और स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ़ उठाया.
जीविका की राज्य समन्वयक महुआ राय चौधरी ने पटना नाउ को बताया कि 2 सितंबर से जारी सरस मेला के सातवें दिन खरीद बिक्री का आंकड़ा लगभग एक करोड़ 45 लाख रूपया पार कर गया. सातवें दिन गुरुवार को लगभग 28 हजार लोग आये और लगभग साढ़े पच्चीस लाख रुपये की खरीद-बिक्री हुई. उड़ीसा से आई हाजी अली उत्पादक समूह के स्टॉल से सर्वाधिक 85 हजार रुपये की खरीद बिक्री हुई .खरीद-बिक्री का आंकड़ा मेला में आये ग्रामीण उधमियों से लिए गए बिक्री रिपोर्ट पर आधारित होती है.
स्वच्छता एवं बेहतर साज-सज्जा एवं बेहतर बिक्री को बढ़ावा देने के उदेश्य से जीविका द्वारा प्रतिदिन स्टॉल धारकों को सम्मानित भी किया जा रहा है. गुरुवार को स्वच्छता के लिए जागृति स्वयं सहायता समूह , छत्तीसगढ़ के स्टॉल, बेहतर साज-सज्जा के लिए शंकर जीविका स्वयं सहायता समूह, बोधगया, बिहार एवं सबसे ज्यादा उत्पाद की बिक्री के लिए हाजी अली उत्पादक समूह , उड़ीसा के स्टॉल को सम्मानित किया गया.
सरस मेला में आई ग्रामीण शिल्पकारों ने परिवार खुद के बल पर और स्वयं सहायता समूह के संबल से अपने परिवार को गरीबी रेखा से बाहर निकालकर आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सशक्त किया है . उन्ही में से एक हैं दरभंगा के कुशेश्वर स्थान से आई मलही देवी . मलही देवी व्याह के बाद अपने पति के साथ हरियाणा के एक कृत्रिम फूलों की फैक्ट्री में दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करती थी. इस कार्य से उन्हें परदेश में गुजारा करना मुश्किल था . ऐसे में वो अपने पति और एक बेटे के साथ अपने गाँव लौट आई . गाँव लौटकर मलही लक्ष्मी जीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ गई . समूह में उसने कृत्रिम फूल बनाने के अपने हुनर को बताया. समूह की सदस्यों ने उन्हें इस कार्य के लिए प्रोत्साहित किया . मलही ने समूह से तीस हजार रुपये ऋण लेकर व्यवसाय शुरू किया. पानी फल के पत्ते से कृत्रिम फूल बनाकर उन्होंने उसी फैक्ट्री में भेजना शुरू किया जहाँ वो कार्य करती थी.धीरे-धीरे फूलों की मांग बढ़ने लगी.अब उनके द्वारा बनाये गए फूल बिहार के अलावा दिल्ली.
गुजरात, हरियाणा समेत कई राज्यों के हाट में बिकते हैं. वर्ष 2017 में अहमदाबाद में आयोजित सरस मेला में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इनके कार्य को सराहा और प्रोत्साहित किया.सरस मेला में भी इनके फूलों का स्टॉल है. दस रुपये से लेकर 60 रुपये के फूलों के स्टिक उनके स्टॉल पर उपलब्ध है. प्रति दिन 6 से 7 हजार रुपये के कृत्रिम फूलों की बिक्री हो रही है.मलही ने दस महिलाओं को रोजगार भी दिया है .
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