आरा,9 मई. ‘जन मुक्ति संघर्ष वाहिनी एवं भोजपुर साक्षरता अभियान (भोर) की संघर्षशील महिला नेत्रा निपाणी का निधन 7 मई को हो गया. वे पिछले चार दिनो से कोमा थी. नेत्रा जी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी महाराष्ट्र की सदस्या थी. वे समाजसेवी और भोर के अध्यक्ष सुशील कुमार की पत्नी थीं. उनकी अंत्येष्टि मंगलवार को गांगी श्मशान घाट में की गई. उनकी अन्तयेष्टि में शहर के कई समाजसेवी, कलाकार और प्रतिष्ठ व्यक्ति शामिल हुए. वही अभिनव एवं एक्ट के कलाकारों ने उन्हें अपने नाटक के लिए पूर्वाभ्यास के दौरान 2 मिनट का मौन रखकर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी. इस श्रद्धाजंलि सभा मे अम्बुज आकाश, शैलेन्द्र सच्चु, सुहानी राज, नवीन प्रकाश शर्मा,अमृत निम्ब्रान, शशांक श्रीवास्तव, सौरभ कुमार, नीतीश सिंह और प्रीतम सिंह शामिल थे.
नेत्रा निपाणी की निधन के बाद बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक एक शोक की लहर है. वैसे तो पूरे देश मे उनके जानने वाले शोक में हैं लेकिन महाराष्ट्र उनका मायका और बिहार ससुराल था जिसकी वजह से ये दोनों स्टेट कुछ खास हैं. उनके देहांत के बाद उनके मित्र ने एक पोस्ट शेयर किया है जिसे हम यहां शेयर कर रहे है.
श्रद्धांजलि
दो दिनों से मन में विषय नेत्रा का ही था. आरा के साथी सुशील के मित्र जितेश जी का दो दिन पहले ही फोन था. नेत्रा अब बहुत दिन नहीं निकलेगी. पैसों की जरुरत है. हमें कुछ करना होगा. आज जब मैं सुबह भोर में टहलने निकला था तब मन में यही सजाता रहा की साथियों को अपील करनी है तो उसका निवेदन कैसे लिखूं? अभी दोपहर को कार्यालय आया और जसवा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्यों को WhatsApp किया. नेत्रा को आर्थिक मदद देने के बारे में! और उतने में जितेश जी का फोन आया… नेत्रा नहीं रही.
नेत्रा निपाणी की ! गुजराती परिवार की ! निपाणी तम्बाखू के लिए मशहूर है. उसके पिताजी तम्बाखू के व्यापारी थे. सधन परिवार की ! सुशिक्षित परिवार की !
वह वाहिनी परिवार में कैसे आयी? इसका जवाब देना मुश्किल है. बहुत पीछे मुड़कर देखता हूँ तो याद आ रहा है की लोकसमिती की मालतीताई चिंचलीकर के घर वह मुझे मिली थी. मुंबई के रेड लाईट इलाके में वह काम करती थी. मुंबई में उसकी मौसी रहती थी. उसी के घर उसका मुकाम रहता था. और फिर वह नागपूर चली गयी. नागपूर में छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी का राष्ट्रीय कार्यालय था. वह वहीं रहती थी. वहां भी वह रेड लाईट एरिया में काम करने लगी थी. अब वह छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी की पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गयी थी. मीटिंगो में उपस्थित रहना, चर्चा में हिस्सा लेना. छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी में उस समय ‘डिस्पोजल’ शब्द प्रचलित था. जो साथी ‘डिस्पोजल’ पर रहता था उसे संयोजक जहां भेजे वहां जाना पड़ता था. नेत्रा घर से निकल चुकी थी. फकीर बन चुकी थी.
मुझे याद है वह संगठन के आदेश पर बुलढाना (महाराष्ट्र का जिला) रह रही थी. वहां जाते ही नेत्रा को पता चला की वहां रोटरी क्लब ने महिलाओं की सौन्दर्य-प्रतियोगिता रखी है. नेत्रा ने तुरन्त सूत्र अपने हाथों में ले लिये और वह भिड गयी. रोटरी क्लबवालों को यह पता नहीं चल रहा था की प्रतियोगिता लेने में उन्होंने कौन-सी गलती की है? वाहिनी जब उनसे टकरायी तब वे होश में आये और प्रतियोगिता रहीत कर दी गयी. जब मैं बुलढाना गया तब साथी सुभाष मजाक-मजाक में मुझसे कहने लगा, “जयंत, तुम्हें पता है क्या? अब रास्ते में लोग मुझसे पूछते है की नेत्रा के घर रहनेवाले तुम ही हो ना!”
नेत्रा में बहुत उर्जा थी. दौड़-धूप करने में वह थकती नहीं थी. तेज चलती थी. उससे कहना पडता था की थोडा धीरे चलो ! नागपूर में लता कामत पर अन्याय हुआ. अन्याय के खिलाफ मोर्चा बना. महिलाओं ने नेतृत्व संभाला. नेत्रा जोशिली थी. जब मोर्चा उस आदमी के दुकान पर गया तो उसकी कॉलर पकड़कर उसे झापड देनेवाली नेत्रा ही थी. उस पर केस भी दर्ज हुई. उसे कोर्ट-कचहरी के फेरे में फंसना भी पड़ा.
जब वाहिनी की बैठक होती, नेत्रा विस्तार से ‘मोहपा’ का रिपोर्टींग करती. जब उसपर रिपोर्ट करने का मौका आता और वह ‘मोहपा’ पर बोलने लगती तो हम लोग उसका मजाक करते. लेकिन असल में नेत्रा की वह हिम्मत दाद देनेवाली थी. मोहपा नागपूर के पास का गाँव है. वहां की लड़की पर बलात्कार हुआ था. उस घटना पर वाहिनी सक्रिय थी. नेत्रा धूनी थी. उसने आगा देखा न पीछा और उसके स्वभाव अनुसार भिड गयी. उस लड़की को वह गाँव से उठा लायी. उसे नर्सिंग कोर्स में डाला. और कोर्स पूरा होने के बाद वाहिनी से जुड़े साथी से उसकी शादी भी करवा दी. आज भी वह लड़की उसे अपनी माँ मानती है.
नागपूर कार्यालय में ही उसकी आरा (बिहार) के साथी सुशील से प्यार हुआ. और उन दोनों ने शादी कर ली. सुशील पूर्णकालिक कार्यकर्ता और नेत्रा भी ! शादी हुई और नेत्रा बिहार के आरा में चली गयी. नया जीवन शुरू हुआ. कार्यकर्ता और वह भी पूर्णकालिक ! आर्थिक दिक्कतों के बीच रास्ता निकलना थका देता है. आपसी अनबन शुरू हो जाती है. नेत्रा निपाणी आयी. छोटी बेटी को लेकर. उससे पहले महाराष्ट्र के रायगड जिले में प्रविण पाटकर की संस्था में काम करती थी. निपाणी में ट्यूशन कर गुजारा चलाती. सुशील आरा में. नेत्रा निपाणी में ! अनबन थी लेकिन दोनों का आपसी संवाद भी था. बेटी सायली की हायस्कूल की पढाई पूरी करने के बाद नेत्रा आरा में आ गयी. अब दोनों शान्ति से पारिवारिक जीवन जीने लगे. कुछ वर्ष नहीं बीतें तो नेत्रा कॅन्सर से पीड़ित हुई. कॅन्सर से भी उसने हिम्मत से सामना किया. उसमें से भी बाहर आयी. लेकिन अब वह नेत्रा नहीं रही जिसे कहना पड़ता थोडा चूप बैठो, इतना तेज मत चलो.
जब वह आखरी बार रूटीन चेक-अप के लिये मुंबई आयी थी तब उसके स्वभाव में फर्क पड़ते हुए दिखायी देता रहा. अगल-बगल की बातों का उसे भान नहीं रहता. वह चुपचाप रहती. मुंबई से लौटने के बाद उसका विस्मरण बढ़ता गया. सुना था की उसकी बेटी की शादी में वह उपस्थित थी लेकिन उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था. मैंने सुशील से कहा था वह समझ पा रही होगी लेकिन अपने आप को व्यक्त नहीं कर पाती है. उससे बातें करते रहना. लेकिन आखिर में उसने अपने सभी इंद्रिय कछुए के समान अंदर खींच लिये. विस्मृति और मौन लिए वह हमसे दूर निकल गयी. आज नेत्रा की कहानी खत्म हो चुकी है. लेकिन वह हमारे स्मृतियों में हमेशा-हमेशा के लिए जिन्दा रहेगी.
उसे मेरा क्रांतिकारी अभिवादन !
प्रस्तुति: ओ पी पांडेय
साभार:-
जयंत दिवाण(मो. ८३५५८८०१८५)