प्रशांत किशोर ने जमीन सर्वे को लेकर समाज में असंतोष पैदा होने की पहले ही जताई थी आशंका
अब बिहार सरकार जमीन सर्वे को टालने पर कर रही विचार
पटना,10 जुलाई. बिहार के न्यायालयों में सबसे ज्यादा भूमि विवाद सम्बंधी केस लंबित पड़े हैं. ऐसे कुल केसों में 70 फीसदी सिर्फ भूमि विवाद से जुड़े केस हैं. सरकार ने भले ही इसे सुलझाने के लिए विधान सभा चुनाव के पहले सर्वे का निर्णय लिया हो लेकिन इस बारे में पहले से ही मांगे उठती आयी हैं. जमीन के मुद्दे पर PK पहले से ही बोलते आये हैं. लेकिन सरकार द्वारा देर से इसपर निर्णय लेना कहीं उसे ही भारी न पड़ जाए ऐसा प्रतीत हो रहा है.
जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर की जमीन सर्वे पर की गयी भविष्यवाणी सच होती दिखाई दे रही हैं. जमीन सर्वे को लेकर बिहार के लोगों में व्यापक तौर पर गुस्सा दिखाई दे रहा है. इसी ज़मीनी हकीकत को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि बिहार सरकार जल्द ही जमीनों के सर्वे को टाल सकती है. मीडिया में इसको लेकर चर्चा चल रही है.
प्रशांत किशोर ने शुरुआत से ही बिहार सरकार द्वारा शुरू किये गए ज़मीन सर्वे के तरीके पर सवाल उठाया है. उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा है कि जिस तरह से इसको लागू किया जा रहा है उससे अगले 6 महीने में हर घर, हर गांव- पंचायत में जमीन के मालिकाना हक के लिए झगड़े होंगे. इस सर्वेक्षण को बिना किसी तरह की तैयारी और संसाधन की व्यवस्था किए शुरू किया गया है.
यह ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि कुछ दिन पहले बिहार में ज़मीन रिकॉर्ड का डिज़िटाइज़ेशन किया गया, जो बिना किसी तैयारी के बाहरी एजेंसी के द्वारा करा दिया गया था, जिसमें यह तय हुआ कि जो ज्यादा डिज़िटाइज़ेशन करेगा, उसे उतना ही ज्यादा पैसा मिलेगा. इसी के चलते हड़बड़ी में किसी की ज़मीन किसी के भाई के नाम और भाई की ज़मीन भतीजे के नाम पर कर दी गयी, जिससे गाँवो के स्तर पर कोहराम मच गया. इसलिए फिर से हड़बड़ी में बिना किसी तैयारी के ज़मीन सर्वे लाया गया जो की आने वाले समय में ज़मीन से संबंधित झगड़ो का सबसे बड़ा कारण बनने वाला है.