पटना (वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की रिपोर्ट) | लोकसभा चुनावों को लेकर एनडीए के घटक दलों के बीच सीटों का बंटवारा 11 दिसम्बर के बाद ही होने की उम्मीद जताई जा रही है जब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम आ चुके रहेंगे. लेकिन तबतक मगजमारी हो रही है और नए समीकरण बनने के संकेत भी मिल रहे हैं. यह नया समीकरण आकार ले ले तो बिहार में लोकसभा चुनाव त्रिकोणीय हो सकते हैं. इस सम्भावना पर खासकर खटास के साथ एनडीए से अलग हो सकने वाले रालोसपा अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ज्यादा सक्रिय हैं.
इस सम्भावना की कई वजहें हैं. यह नया समीकरण उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ए रालोसपा से कुछ समय पूर्व अलग गुट बनाने वाले जहानाबाद के सीटिंग सांसद डा0 अरूण सिंह और वरिष्ठ समाजवादी शरद यादव की लोकतांत्रिक जनता दल से मिलकर तैयार हो सकता है. पिछले चार नवम्बर को गांधी मैदान को भर देने का दावा करने वाले मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी यानि वीआईपी भी शामिल हो सकती है. मुकेश सहनी ने अपना जनाधार दिखाया था और उसी के आधार पर वह एनडीए और महागठबंधन दोनो से सम्मानजनक सीट मिलने पर साथ देने की घोषणा की थी.
एनडीए में सीटों के बंटवारे के मसले पर पिछले दिनों उपेन्द्र कुशवाहा ने मजाक में एक बात कही थी. उनके तेवर थोड़े तल्ख भी थे. उन्होंने कहा था कि बराबर-बराबर सीटों पर लड़ने की बात अगर है तब भाजपा-जदयू पांच-पांच सीटों पर लड़ लें और उनकी तथा रामविलास पासवान जी की लोजपा 15-15 सीटों पर चुनाव लड़ लेंगे. हालांकि यह बात सिर्फ अपनी दावेदारी के नाते ही उन्होंने कही थी लेकिन जोर इस बात पर भी था कि 2014 के लोकसभा चुनावों में शतण्प्रतिशत परिणाम देने के बाद रालोसपा ने राज्य में अपना जनाधार बढ़ाया है और आज की तारीख में वह ज्यादा संगठित और मजबूत है.
जहानाबाद सांसद डा0 अरूण सिंह का ऐसा कोई दावा कभी नहीं रहा लेकिन वह अपने जुझारूपन के लिए जाने जाते हैं. नई बात यह है कि पूर्व में उपेन्द्र कुशवाहा से उनके मतभेद अब पुराने दिनों की बातें हो गई हैं और वह खुलकर कुशवाहा के समर्थन में आ गए हैं. इसका एक मतलब यह भी है कि एनडीए में उनकी बात नहीं बनी जिसके कारण उन्होंने इस विकल्प का सहारा लिया है. लेकिन वरिष्ठ समाजवादी नेता और कई बार सांसद रह चुके शरद यादव की नई पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का कोई जनाधार नहीं है. फिर भी यदि यह समीकरण एक स्वरूप अख्तियार करता है तो इसकी एक बड़ी खासियत यह होगी कि तीनों नेता बेदाग हैं और नई जमीन की तलाश में हैं। राजद और कांग्रेस पार्टी के भ्रष्टाचार जैसे आरोपों से यह मुक्त होगा.
इन तीनों नेताओं से मिलकर बनने वाले इस समीकरण की विशेषता यह होगी कि रालोसपा ए लोजद और डा0 अरूण सिंह के पास सीट बंटवारे को लेकर पूरा स्पेस होगा और वह चुनाव को त्रिकोणीय बना सकते हैं. सूत्र बताते हैं कि शरद यादव के पुत्र को टिकट देने के मसले पर राजद से उन्हें स्वाभाविक रेस्पांस नहीं मिला है। दूसरी बात यह कि 2013 तक एनडीए का कंवेनर रहने के दौरान उनका महत्व कदण्काठी के समान था. लेकिन उसके बाद उन्हें बुरे दिन देखने पड़े हैं. उपेन्द्र कुशवाहा के पास भी भ्रष्टाचार ए शिक्षा में सुधार और न्यायपालिका में आरक्षण जैसे मुद्दे हैं जिन्हें वह और प्रभावी तरीके से उठा सकने की स्थिति में आ सकते हैं. भ्रष्टाचार में डूबी पार्टी के साथ रहने का आरोप भी उनपर नहीं लगेगा.