रीजनल फिल्म फेस्टिवल का तीसरा दिन
बिहार राज्य फिल्म डेवलपमेंट वित्त निगम लिमिटेड द्वारा आयोजित रीजनल फिल्म फेस्टिवल 2016 का तीसरा दिन राजस्थान के राजपुताना और मारवाड़ी कल्चर के नाम रहा. दिन की शुरूआत मारवाड़ी महिला मंच के द्वारा राजस्थानी लोकगीत की भव्य प्रस्तुति के साथ हुई. इस दौरान बिहार राज्य फिल्म डेवलपमेंट वित्त निगम लिमिटेड के एमडी गंगा कुमार, स्क्रीप्ट राइटर राम कुमार सिंह, निर्देशक सीमा कपूर, निर्देशक गजेंद्र क्षेत्रिय, पूर्व आईएएस आर एन दास, रविराज पटेल, फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम, कमल नोपाणी, राजेश बजाज, मीडिया प्रभारी रंजन सिन्हा, आर आर पटेल, सर्वेश कश्यप आदि लोग मौजूद रहे है. वहीं, निगम के एमडी गंगा कुमार ने सभी आगंतुकों को बुके देकर सम्मानित किया.
फिल्म फेस्टिवल के तीसरे दिन फिल्मों का सिलसिला निर्देशक गजेंद्र क्षेत्रिय की फिल्म ‘भोभर’ से शुरू हुई. इस फिल्म की पटकथा राम कुमार सिंह ने लिखी है. दूसरी फिल्म दिव्या दत्ता स्टारर और सीमा कपूर निर्देशित ‘हाट : द विकली’ का प्रदर्शन हुअा. इस फिल्म की कहानी समाज में औरतों की हालत को केंद्र में रखकर बुनी गई है. अंत में मोहन सिंह राठौर के निर्देशन में बनी फिल्म ‘बाई चली सासरिये’ का प्रदर्शन हुआ. वहीं, अतिथियों से बातचीत सत्र में पहली बार बिहार आए राजस्थानी निर्देशक सीमा कपूर व गजेंद्र क्षेत्रिय ओर लेखक राम कुमार सिंह ने दर्शकों से संवाद किया. इस दौरान उन्होंने फिल्म और फिल्म बनाने की तकनीक पर लोगों से सवाल – जवाब किया. उन्होंने कहा कि सिनेमा खुद में एक भाषा है. हर समुदाय की अपनी कहानी होती है, जो दर्शकों से खुद – खुद जोड़ लेती है.
सीमा कपूर (निर्देशक : हाट) – सिनेमा साहित्य की तरह है. जैसे साहित्य की रचना के बाद लोगों के पास जाती है, उसी तरह सिनेमा बनने के बाद दर्शकों के सामने प्रदर्शित की जाती है. फिर दौर आता है पसंद – नापसंद का. हिट और फ्लॉप का. हालांकि फिल्म के पाठक नहीं, दर्शक होते हैं. उन्होंने कहा कि ईश्वर के बाद लेखक ही सृजन करते हैं और वे बेचारे होते हैं. अपनी फिल्म के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि हाट राजस्थानी समाज में एक कुप्रथा पर बेस्ड फिल्म है, जिसमें औरतों को अपने पति से अलग होने का अधिकार नहीं है. अगर वे ऐसा करना चाहें भी तो पंचयात मर्दों को इसके बदले मुआवजा महिलाओं से दिलवाती है. ऐसा नहीं करने पर उस महिला केे बाल काट, कालिख पोत नग्न अवस्था में गांव में घूमाया जाता है. कहानी महिलाओं पर शोषण के खिलाफ जागरूकता के लिए तैयार की गई है.
गजेंद्र क्षेत्रिय (निर्देशक : भोभर) – सिनेमा इंडस्ट्री में सफलता ही एकमात्र क्रेडिबल होता है. यहां एक हिट देने के बाद आगे कुछ समय तक के लिए कम से कम सफल होने का लाइसेंस मिल जाता है. उन्होंने राजस्थानी सिनेमा पर चर्चा करते हुए कहा कि राजस्थानी सिनेमा आज बुरे दौर से गुजर रहा है. अब यहांं की फिल्मों को ऑडियंस कम मिलती है, बावजूद इसके आज भी फिल्में बन रही हैं. उन्होंने कहा कि राजस्थानी सिनेमा में आज भी राजे रजवाड़े, महलों को लेकर कहानियां बनाते हैं. अब जरूरत है थोड़ा उनसे बाहर निकल कर दूसरे अन्य विषयों पर भी कहानी बने.
राम कुमार सिंह (स्क्रीप्ट राइटर : भोभर) – सबसे पहले बिहार सरकार और आयोजकों को धन्यवाद. हिंदुस्तान में कई राज्यों में सिनेमा का प्रदर्शन होता है. लेकिन बिहार में जिस तरह से सिनेमा को देखने की शुरूआत हुई है, वह काबिले तारीफ है. सिनेमा पर चर्चा करते हुए कहा कि रीजनल सिनेमा केे प्रति लोगों का रूझान कमर्सियल सिनेमा की तरह नहीं है. इसकी वजह है कि क्षेत्रिय सिनेमा में कॉमर्सियल फिल्मों से चीजों को कॉपी कर बनाया जाता है. इस वजह सेे रीजनल फिल्मों केे प्रति लोगों में रूचि कम रही है. क्षेत्रीय सिनेमा को बढ़ावा देने के लिए जरूर है कि फिल्म मेकर अपनी कहानी कहें.
18 नवंबर 2016 का कार्यक्रम (ओडिया थीम)
विश्वप्रकाश (1999) : 10:30 AM
आदिम विचार (2014) : 01:15 PM
क्रांतिधारा (2016) : 05:20 PM
मुख्य अतिथि
डॉ सब्या साची मोहापात्रा (निर्देशक)
सुसांत मिसरा (निर्देशक)
हिमांशु कटुआ (निर्देशक)
अटल बिहारी पांडा (अभिनेता)