बिहार राज्य फिल्म डेवलपमेंट वित्त निगम लिमिटेड द्वारा आयोजित रीजनल फिल्म फेस्टिवल 2016 के पांचवें दिन मराठी फिल्मों का प्रदर्शन हुआ. दिन की शुरूआत राज्य में रह रहे मराठी समाज के लोगों के द्वारा एक मराठी लोकगीत से हुई. इसके बाद पहली फिल्म के रूप में मराठी सिनेमा को 50 साल बाद नेशनल अवार्ड दिलाने वाली फिल्म ‘श्वास’ का प्रदर्शन हुआ. इस फिल्म के निर्देशक संदीप सावंत हैं. वहीं, दूसरी फिल्म के रूप में निर्देशक परेश मोकाशी की ‘हरिशचंद्राची की फैक्ट्री’ दिखाई गई. वहीं तीसरी और अंतिम सिनेमा के रूप में अविनाश अरूण की फिल्म ‘किल्ला’ का प्रदर्शन हुआ. इस दौरान बिहार राज्य फिल्म डेवलपमेंट वित्त निगम लिमिटेड के एमडी गंगा कुमार, संदीप सावंत(निर्देशक), परेश मोकाशी(निर्देशक), नंदू माधव( अभिनेता), खगडि़या के जिला अधिकारी कपिल अशोक, सिटी एसपी सियाली धूरत, शुभदा कुलकर्णी, रविराज पटेल, फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम, कमल नोपाणी,, मीडिया प्रभारी रंजन सिन्हा, सर्वेश कश्यप आदि लोग मौजूद रहे है. वहीं, खगडि़या के जिला अधिकारी कपिल अशोक और सिटी एसपी सियाली धूरत ने सभी आगंतुकों को बुके, शॉल और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया.
इससे पहले ओपेन हाउस डिस्कशन सत्र में महाराष्ट्र से आए संदीप सावंत(निर्देशक), परेश मोकाशी(निर्देशक) और नंदू माधव( अभिनेता) फिल्मों और मराठा कल्चर को लेकर चर्चा की. इस दौरान उन्होंने लोगों के सवाल का भी जवाब दिया. अपनी फिल्म ‘श्वास’ पर चर्चा करते हुए परेश मोकाशी (निर्देशक) ने कहा कि कोई भी उद्योग वेदना से अछूता नहीं है. मगर प्रयत्न करने वाला व्यक्ति वेदना को मजबूर कर अपने लक्ष्य को हासिल करता है. ऐसे ही लोग दादा साहब फाल्के, अंबेडकर, गांधी होते हैं. जो वेदना और पीड़ा से परे जा कर इनका निजात ढूंढ लाते हैं. सामान्य लोग ऐसे नहीं होते. वे अपनी समस्याओं से ही निकल नहीं पाते और भावनाओं में फंस कर रह जाते हैं. जबकि ऐसे विरले लोग बिना भावना फंसे काम करने में लग जाते हैंं. इसके लिए मानसिक शक्ति और समझ की जरूरत होती है.
वहीं, संदीप सावंत(निर्देशक) ने एक सवाल का जवाब में कहा कि कोई भी बेहतर फिल्म को बनाने की लिए बहुत सारी फिल्मों को देखने, सोचने और समझने की जरूरत होती है. तभी कोई अच्छी फिल्म निकल कर सामने आती है. ऐसा करने से अलग – अलग फिल्मों के कंटेट और भाषा तकनीक को जानने का मौका मिलता है, जिससे बेहतर फिल्म बनाने की कला विकास होता है. विभिन्न भाषाओं की फिल्में देखनी चाहिए. उसको समझना चाहिए और फिर एक फिल्म बनाने की हिम्मत करनी चाहिए. नंदू माधव( अभिनेता) ने बताया कि अपनी मिट्टी की फिल्में आज लोगों को काफी पसंद आती है. इसके सबसे बडा उदाहरण है अभी हाल में आई फिल्म सैराट. इस फिल्म को हिंदी फिल्मों से भी ज्यादा लोगों का अटेंशन मिला. इसलिए मिट्टी से जुड़ी फिल्मों का आज भी महत्व है.
खगडि़या के जिला अधिकारी कपिल अशोक और बिहार राज्य फिल्म डेवलपमेंट वित्त निगम लिमिटेड के एमडी गंगा कुमार ने कैरियर ब्यूरोक्रेट द्वारा कला क्षेत्र में योगदान के सवाल पर भी चर्चा की. उन्होंने कहा कि अगर किसी में संवदेनशीलता है तो वो कला प्रेमी होगा. वो कला का सम्मान देते हैं और उसेे अपने कार्यक्षेत्र में नहीं होने के बाद भी किसी न किसी रूप में बढ़ावा देते हैं. कला के विकास में अपना योगदान करते हैं. ऐसे ब्यूरोक्रेट बिना विभागीय जुड़ाव के भी कला एवं संस्कृति को बढ़ावा देने का हरसंभव प्रयास करते हैं.