आरा, 25 मई. भारत विविधताओं का देश है. यहाँ विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के बाद भी लोगों के जीवन के कई रंग जिस आपसी प्रेम में सराबोर रहते हैं वही इसे औरों से अलग बनाता है. इस देश में जहाँ होली, छठ, ईद, पोंगल, और लोहरी जैसे लोक-पर्वों में लोग अपने जन्म-स्थली पहुँच उस पर्व के लिए आतुर और समर्पित रहते हैं वैसा ही एक और पर्व है भारत का, जिसके लिए भारत के हर प्रदेश के लोग वैसे ही समर्पित रहते हैं क्योंकि यह वह महापर्व है जो विश्व में भारत को सबसे अलग और इकलौता बनाता है. जी हाँ हम बात कर रहे हैं लोकतंत्र के महापर्व मतदान का. इस महापर्व की चर्चा तब और खास हो जाती है जब चुनाव का मौसम आ जाता है क्योंकि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है. ऐसे में इस महापर्व की चर्चा न हो तो बात बेमानी लगती है.
लोकतंत्र के इस महा पर्व पर देश की मायानगरी मुंबई में अपने प्रदेश से जा वहां अपनी पहचान बनाने वाले अभिनेता,लेखक व निर्देशक ओम कश्यप(ओ पी कश्यप), संगीत निर्देशक पप्पू श्रीवास्तव के साथ पत्रकार व निर्देशक ओ पी पांडेय शनिवार को अपने होम टाउन आरा पहुँचे. वे लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में होने वाले 1 जून को अपना मतदान करेंगे. यह उनलोगों के लिए एक विशेष खबर है जो लोकतंत्र के ढाँचे वाले सर्वश्रेष्ठ देश में रहने के बाद भी अपने मत का महत्व नही समझते हैं. मतदान ही मजबूत लोकतंत्र का आधार है जितना अधिक मतदान होगा लोगों की व्यपकता उतनी सटीक होगी जो सरकार चुनने में उन्हें एक दृढ़ता देगी. क्योंकि कमजोर सरकार बनने के बाद सबसे ज्यादा कमजोर लोक ही होगा. इस साल चुनाव में वोट डालने के लिए न सिर्फ देश के विभिन्न हिस्सों से लोग अपने क्षेत्र में पहुँच रहे हैं बल्कि विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय भी अपना मतदान करने के लिए भारत आ रहे हैं. इन सभी का मतदान के लिए आना निश्चय तौर पर उन लोगों और नई पीढ़ी के लिए एक जागरूकता है जो चुनाव में अपने मत के महत्व को नजरअंदाज करते हैं.
पहले लोक-पर्वों पर अमूमन बाहर कमाने वाले अपने घरों में वापस लौटते थे ताकि परिवार के साथ लोक-पारम्परिक पर्व को धूमधाम से मना सकें और आगे की पीढ़ी तक वह परम्परा जिंदा रहे लेकिन लोकतंत्र के इस महा पर्व पर भी लोग अपने घरों को लौट रहे ताकि वे वोट देकर इस महापर्व को मजबूती दे सकें और अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य का निर्वहन कर सकें. लोकतंत्र में लोक जबतक मजबूत नही होगा तंत्र बिखर जाएगा क्योंकि लोक ही अपने लिए सेवक तय करता है क्योंकि लोकतंत्र में लोक राजा होता है और राजा अपने कार्यों के लिए जिसे चुनता है वह उसका सेवक होता है तभी तो देश के प्रधानमंत्री भी अपने आप को प्रधान सेवक कहते हैं. लोकतंत्र को यह मजबूती अब नई पीढ़ी से मिलना शुरू हो गया है और ऐसे ही सजग लोग इसे निरन्तर मजबूती दे रहे हैं.
आरा से सत्य प्रकाश सिंह की रिपोर्ट