रावण के सबक से आप भी बन सकते है विद्वान
रावण के ही प्रसंग में श्रीकृष्ण जुगनू का अभिमत है लंकापति रावण पर विजय का पर्व अकसर यह याद दिलाता है कि रावण की सभा बौद्धिक संपदा के संरक्षण की केंद्र थी. उस काल में जितने भी श्रेष्ठजन थे, बुद्धिजीवी और कौशलकर्ता थे, रावण ने उनको अपने आश्रय में रखा था. रावण ने सीता के सामने अपना जो परिचय दिया, वह उसके इसी वैभव का विवेचन है. अरण्यकाण्ड का 48वां सर्ग इस प्रसंग में द्रष्टव्य है.
उस काल का श्रेष्ठ शिल्पी मय, जिसने स्वयं को विश्वकर्मा भी कहा, उसके दरबार में रहा. उसकाल की श्रेष्ठ पुरियों में रावण की राजधानी लंका की गणना होती थी – यथेन्द्रस्यामरावती. मय के साथ रावण ने वैवाहिक संबंध भी स्थापित किया. मय को विमान रचना का भी ज्ञान था. कुशल आयुर्वेदशास्त्री सुषेण उसके ही दरबार में था जो युद्धजन्य मूर्च्छा के उपचार में दक्ष था और भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली सभी ओषधियों को उनके गुणधर्म तथा उपलब्धि स्थान सहित जानता था. शिशु रोग निवारण के लिए उसने पुख्ता प्रबंध किया था. स्वयं इस विषय पर ग्रंथों का प्रणयन भी किया.
श्रेष्ठ वृक्षायुर्वेद शास्त्री उसके यहां थे जो समस्त कामनाओं को पूरी करने वाली पर्यावरण की जनक वाटिकाओं का संरक्षण करते थे – सर्वकाफलैर्वृक्षै: संकुलोद्यान भूषिता. इस कार्य पर स्वयं उसने अपने पुत्र को तैनात किया था. उसके यहां रत्न के रूप में श्रेष्ठ गुप्तचर, श्रेष्ठ परामर्शद और कुलश संगीतज्ञ भी तैनात थे. अंतपुर में सैकड़ों औरतें भी वाद्यों से स्नेह रखती थीं.
उसके यहां श्रेष्ठ सड़क प्रबंधन था और इस कार्य पर दक्ष लोग तैनात थे तथा हाथी, घोड़े, रथों के संचालन को नियमित करते थे. वह प्रथमत: भोगों, संसाधनों के संग्रह और उनके प्रबंधन पर ध्यान देता था. इसी कारण नरवाहन कुबेर को कैलास की शरण लेनी पड़ी थी. उसका पुष्पक नामक विमान रावण के अधिकार में था और इसी कारण वह वायु या आकाशमार्ग उसकी सत्ता में था :
यस्य तत् पुष्पकं नाम विमानं कामगं शुभम्. वीर्यावर्जितं भद्रे येन यामि विहायसम्.
उसने जल प्रबंधन पर पूरा ध्यान दिया, वह जहां भी जाता, नदियों के पानी को बांधने के उपक्रम में लगा रहता था : नद्यश्च स्तिमतोदका:, भवन्ति यत्र तत्राहं तिष्ठामि चरामि च. कैलास पर्वतोत्थान के उसके बल के प्रदर्शन का परिचायक है, वह ‘माउंट लिफ्ट’ प्रणाली का कदाचित प्रथम उदाहरण है. भारतीय मूर्तिकला में उसका यह स्वरूप बहुत लोकप्रिय रहा है. बस…. उसका अभिमान ही उसके पतन का कारण बना. वरना नीतिज्ञ ऐसा कि राम ने लक्ष्मण को उसके पास नीति ग्रहण के लिए भेजा था, विष्णुधर्मोत्तरपुराण में इसके संदर्भ विद्यमान हैं.
हर शख्स के भीतर बुराईयों और अच्छाईयों का समागम होता है. जब बुराईयां हावी होने लगती हैं तो इंसान दानव और अच्छाईयों के बहुतायत पर देवता हो जाता है. कई बार बुरे विचार जेहन में आते हैं लेकिन हम उन पर काबू पाने की पुरजोर कोशिश करते हैं. यही चीजें हमें गलत और सही के दायरे में लाती है. इस तरह देखा जाए तो रावण के भीतर भी कई कमियां थीं. इसके बावजूद वह प्रकाण्ड विद्वान था. अपने साम्राज्य की जनता के लिए एक कुशल प्रशासक था. कहते हैं कि रावण की मौत से ठीक पहले राम ने भ्राता लक्ष्मण को रावण के पास ज्ञानार्जन के लिए भेजा था. आप भी जान लें कि रावण ने लक्ष्मण को क्या-क्या सीख दी.
1. अपने सारथी, दरबान, खानसामे और भाई से दुश्मनी मोल मत लीजिए. वे कभी भी नुकसान पहुंचा सकते हैं.
2. खुद को हमेशा विजेता मानने की गलती मत कीजिए, भले ही हर बार तुम्हारी जीत हो.
3. हमेशा उस मंत्री या साथी पर भरोसा कीजिए जो तुम्हारी आलोचना करती हो.
4. अपने दुश्मन को कभी कमजोर या छोटा मत समझिए, जैसा कि हनुमान के मामले में भूल हूई.
5. यह गुमान कभी मत पालिए कि आप किस्मत को हरा सकते हैं. भाग्य में जो लिखा होगा उसे तो भोगना ही पड़ेगा.
6. ईश्वर से प्रेम कीजिए या नफरत, लेकिन जो भी कीजिए , पूरी मजबूती और समर्पण के साथ.
7. जो राजा जीतना चाहता है, उसे लालच से दूर रहना सीखना होगा, वर्ना जीत मुमकिन नहीं.
8. राजा को बिना टाल-मटोल किए दूसरों की भलाई करने के लिए मिलने वाले छोटे से छोटे मौके को हाथ से नहीं निकलने देना चाहिए.
रावण के माता- पिता का नाम कैकसी और विश्वश्रवा था. रावण ‘दस मुख’ या ‘दशानन’ के नाम से भी जाना जाता था. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण राक्षसों का राजा था जिसके 10 सिर और 20 हाथ थे. रावण के छह भाई और दो बहने थीं. जिनके नाम भगवान कुबेर, विभीषण, कुंभकरण, राजा कारा, राजा अहिरावण, कुम्भिनी और शूर्पणखा था.
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवाणाय, धन धन्याधिपतये धन धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा॥
रामायण के अनुसार रावण ने भगवान राम के साथ लड़ाई कर अपना सब कुछ खो दिया था. यह लड़ाई इसलिए लड़ी गई थी क्योंकि रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था. उनको वास्तुकला, शास्त्रों में ज्ञान और ज्योतिष की अच्छी तरह से जानकरी थी, इसलिए कहा जाता है कि उनके दस सिर इसी कारण से थे. वे तंत्र शास्त्र और ज्योतिष पर किताब लिख चुके हैं जिसका नाम रावण संहिता है जिसे ज्योतिष की सबसे बेहतरीन किताब माना जाता है. इस वजह से उनमें बहुत अधिक आत्मविश्वास और अहंकार आ गया था. इसी का परिणाम था कि भगवान राम ने उन्हें लड़ाई के दौरान मार डाला था.
रावण से संबंधित 10 अज्ञात बातें जो आप नहीं जानते
1. क्या आप जानते हैं कि रावण को यह नाम शिव से मिला था?
यह तब हुआ जब रावण शिव को कैलाश से लंका में स्थानांतरित करना चाहता था, जिसके लिए उसने पर्वत उठा लिया था. लेकिन शिव ने पर्वत पर अपना पैर रख दिया और अपनी एक पैर की अंगुली से रावण की अंगुली कुचल दी. रावण दर्द से दहाड़ा, लेकिन वो शिव की शक्ति को जानता था इसीलिए उसने शिव तांडव स्त्रोतम् प्रदर्शन शुरू कर दिया. और ये कहा जाता है कि रावण ने अपने 10 में से 1 सिर को वीणा की तुम्बी के रूप में, अपने एक हाथ को धरनी के रूप में और स्ट्रिंग के रूप में अपनी तंत्रिकाओं के उपयोग से एक वीणा को रूपांकित किया जो रूद्र-वीणा के नाम से जानी जाती है . इससे शिव प्रभावित हो गए और उसे ‘रावण’, जो व्यक्ति जोर से दहाड़ता है, का नाम दिया गया.
2. यह आश्चर्यजनक बात है कि रावण ने राम के लिए एक यज्ञ का प्रदर्शन किया था और जब वह मर रहा था तब उसने लक्ष्मण को बहुमूल्य ज्ञान प्रदान किया था.रामायण के अनुसार, यह कहा जाता है कि राम की सेना को लंका जाने के लिए पुल का निर्माण करना था जिसके लिए शिव का आशीर्वाद चाहिए था. इसके लिए उन्होंने यज्ञ की स्थापना की, और उस समय की सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि रावण पूरी दुनिया में शिव का सबसे बड़ा भक्त था और वह आधा ब्राह्मण भी था, इसीलिए यज्ञ को स्थापित करने के लिए वह सबसे उचित व्यक्ति था. रावण ने यज्ञ का प्रदर्शन किया और राम को अपना आशीर्वाद दिया.इसके आलावा, हम सब जानते हैं की रावण अभी तक के सबसे विद्वान व्यक्ति रहे हैं. इसीलिए जब रावण मर रहा था तो राम ने लक्ष्मण को शासन कला और कूटनीति में महत्वपूर्ण सबक सीखने के लिए रावण के बगल में बैठने को कहा था.
3. पुष्पक विमान एक ऐसा हवाई जहाज था जिसे केवल कुछ ही लोग नियंत्रित कर सकते थे और रावण ने अपने दम पर इसे नियंत्रित करना सीख लिया था. रावण के पास इस तरह के कई हवाई जहाज थे और उन्हें उतारने के लिए हवाई अड्डे भी थे.महियांगना में वैरागनटोटा और गुरुलुपोथा, होर्टन मैदानों में थतूपोल कांदा, कुरुनेगाला में वारियापोला, कुछ ऐसे जगहें हैं लंका में जिन्हें आज भी हवाई अड्डे के रूप में देखा जाता हैं जिसे रावण ने उपयोग किया था. इसके अलावा, रावण एक असाधारण वीणा वादक भी था और ऐसा माना जाता है कि उनको संगीत में गहरी रूचि थी.
4. रावण एक असीम गति का आदमी था . उन्होंने किसी से भी तेज होने की तकनीक में महारथ हासिल कर ली थी और इसीलिए वह किसी की भी कैद के हर प्रयास से बच जाता था. वह इतना शक्तिशाली था कि वह ग्रहों की स्थिति को भी बदल सकता था .अपने बेटे मेघनाद के जन्म के दौरान, रावण ने सभी ग्रहों को अपने बेटे के ग्यारहवें घर में रहने का निर्देश दिया था परंतु शनि या शनि गृह ने ऐसा करने से इंकार कर दिया और वे बारहवें घर में स्थापित रहे. शनि देव के इस व्यवहार के कारण, रावण ने उन्हें गिरफ्तार कर कारावास में डाल दिया था.
5. क्या आप जानते हैं की कुम्भकरण और रावण विष्णु के द्वार रक्षक (द्वारपाल) के अवतार थे?
जय और विजय भगवान विष्णु के स्वर्गीय निवास, वैकुंठ के द्वार रक्षक (द्वारपाल) थे. एक बार भगवान ब्रह्मा के चार कुमार भगवन विष्णु से वैकुंठ मिलने गए. इन चारों कुमारों ने ब्रह्मचर्य (कुंवारापन) का पथ चुना और अपने दिव्य पिता से अनुरोध किया कि वह उनको सदा पांच वर्ष के रहने का वरदान प्रदान करें.यह सोच कर की वह शरारती बच्चे हैं, जय और विजय ने उन्हें वैकुण्ठ के भीतर जाने से यह कह कर रोक दिया की विष्णु अभी आराम कर रहे हैं और इसलिए इस वक़्त नहीं मिल सकते. इससे नाराज़, कुमारों ने उनसे कहा कि विष्णु भगवान हमेशा अपने भक्तों के लिए उपलब्ध रहते हैं, चाहे वह किसी भी समय उन्हें बुलाएँ.फिर उन्होंने जय और विजय को श्राप दिया कि वह अपने भगवान से अलग हो जायेंगे. जब उन्होंने माफ़ी मांगी, तब कुमारों ने कहा कि या तो वह सात जन्मों तक धरती पर विष्णु के अवतार के सहयोगी दलों के रूप में रहें या फिर तीन जन्म उनके दुश्मन के रूप में व्यतीत कर सकते हैं. उन्होंने बाद वाला विकल्प चुना. उन तीन जन्मों में से एक जन्म में वह रावण और कुम्भकरण के रूप में आये.
6. हम जानते हैं कि रावण ने सीता का अपहरण किया, अजीब और आश्चर्यजनक बात ये है की ‘रामायण’ जैन मूलपाठ के अनुसार, रावण सीता का पिता था और जातिवाद के विरुद्ध भी था.दोनों राम और रावण जैनियों के भक्त थे . रावण जादुई शक्तियों का विद्याधर राजा था . इसके अलावा जैनियो के विचार के अनुसार यह भी कहा जाता है कि रावण को राम ने नहीं अपितू लक्ष्मण ने मारा था. यह घटनाएँ 20 वे तीर्थंकर मुनिसुव्रत के समय की कही जाती है.
7. रावण से सीखने के लिए बहुत सारी चीज़ें हैं, भले ही वह बुराई का प्रतीक है. उन्होंने बहुत से तांत्रिक उपाय बताए है, जिनमें से एक है, कैसे हम अचानक से अमीर बन सकते हैं. इस उपाय को करने के लिए, कोई भी शुभ दिन पर सुबह जल्दी उठकर दिनचर्या को पूरा करके पवित्र नदी या जलाशय जाएँ. किसी भी एक पेड़ के नीचे शांत और एकांत स्थान को देखे और एक चमड़े की सीट को फैला ले .फिर किसी बैठक पर बैठकर 21 दिनों के लिए इस धन मंत्र का जाप करें . और इस जप के लिए रुद्राक्ष मोतियों का इस्तेमाल करें. 21 दिनों के बाद अचानक धन की आय से आप आश्चर्यचकित हो जायेंगे.
8. क्या आप रावण की मौत के पीछे की कहानी को जानते हैं?
अनर्नेय रघुवंश में एक निरपेक्ष प्रतापी राजा था. रावण जब पूरे संसार पर कब्ज़ा करने के लिए निकले तब अनर्नेय से मिले, और उनके बीच घमासान युद्ध हुआ. राजा अनर्नेय उस युद्ध में अपनी जान गवां बैठे परंतु मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि उसको मारने वाला अनर्नेय के वंश की पीढ़ी में से कोई होगा. बाद में, भगवान राम ने अनर्नेय के वंश में जन्म ले कर रावण का वध किया.
9. अजीब परंतु आश्चर्यजनक बात यह है कि रावण को महसूस होने लगा था कि उसकी बसाई हुई दुनिया का अंत होने वाला है.वह अपनी किस्मत जानता था कि उसकी मौत विष्णु के अवतार से होगी, और इससे मोक्ष प्राप्त होगा और राक्षस की योनी से मुक्ति मिलेगी.
10. रावण के 10 सिरों के पीछे की कहानी जो की बहुत अद्भुत है.
रामायण के कुछ संस्करणों के अनुसार, रावण के दस सिर थे ही नहीं बल्कि ऐसा प्रतीत होता था, जो रावण की माँ ने रावण को नौ मोतियों के हार के रूप में दिया था इससे किसी भी देखने वाले को एक ऑप्टिकल भ्रम पैदा हो जाता था. और कुछ अन्य संस्करणों में यह कहा गया है की शिव को खुश करने के लिए, रावण ने अपने सिर के टुकड़े कर दिए थे, इतनी भक्ति देख कर शिव ने हर एक टुकड़े को एक नए सिर में पिरो दिया. उसके दस सर थे काम (हवस), क्रोध (गुस्सा) मोह (भ्रम), लोभ (लालच), मादा (गौरव), विद्वेष (ईर्ष्या), मानस (मन), बुद्धि (ज्ञान), चित्त (इच्छापत्र), और अहंकार (अहंकार) – यह सब दस सिर बनाते हैं. और इसीलिए रावण के पास ये सब गुण थे.
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