राजधानी पटना स्थित कालिदास रंगालय में सरगम आर्टस पटना की प्रस्तुति रक्तबीज में हर युग में उपेक्षित रही नारी का दर्द का मंचन किया गया. हेमचंद्र ताम्हनकार निर्देशित नाटक रक्तबीज में इतिहास के कालखंड से हो रही नारी की उपेक्षा और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उनकी दशा को दिखाया गया. आज जब महिलाएं पुरूषों से किसी भी मामले में कम नहीं है, वो कंधे से कंधे मिलाकर पुरूषों के लिए चुनौति पेश कर रही हैं. फिर भी पुरूषवादी समाज में उन्हें बराबरी का दर्जा नहीं मिल पाया है. कहीं, न कहीं आज भी दुनियां भर में सबसे ज्यादा शोषण महिलाओं का ही होता रहा है.
बढ़ता भौतिकवाद, जिंदगी की जद्दोजहद और अनंत अवश्यकताओं के बीच उपजे द्वन्द का नाम है ‘रक्तबीज’, जिसके नायक शर्मा जी काबिल होने बाद भी पिछड़ जाते हैं और आरक्षण की संजीवनी मिलने के बाद बहुत आगे निकल जाते हैं. इसके साथ ही उनकी महत्वाकांक्षा अति का शिकार हो जाती है और शर्मा जी एक षडयंत्र रच डालते हैं. अपनी अतिमहत्वाकांक्षी षडयंत्र में वे पत्नी का इस्तेमाल करने से भी कोई गुरेज नहीं करते. वहीं, सुजाता शर्मा जो एक मध्यमवर्गीय संस्कारी स्त्री है, अपने पति की इच्छापूर्ति के लिए न चाहते हुए भी उनके षडयंत्र का हिस्सा बन जाती है. सुजाता पति की खुशी के लिए माथुर की भेंट चढ़ जाती है और बदले उसके पति को तरक्की का तोहफा मिलता है.
रक्तबीज के जरिए लेखक डॉ शंकर शेष ने आज की चकाचौंध वाले परिवेश में स्त्रियों की दशा को मंच के जरिए लोगों के सामने लाने की कोशिश की. वहीं, नाटक में शर्मा जी की भूमिका में सुमित आशीवाल, सुजाता की भूमिका में अराशिया परवीन, माथुर की भूमिका में हेमचंद्र ताम्हनकर थे. प्रस्तुति नियंत्रण अर्चना सोनी ने किया. मंच परिकल्पना सुनिधि रॉय और निधि, मंच व्यवस्था अर्पणा कुमारी और सुनिधि रॉय ने किया. ध्वनि प्रभाव कुशल प्रकश का था.