देश को सावरकर के बहुमुखी व्यक्तित्व पर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता
सावरकर ने कविता, नाटक, साहित्य, चिंतनशील लेखन जैसे साहित्य के विभिन्न आयामों में अपनी महान प्रतिभा का परिचय दिया
“मैं अनादि हूँ, अनंत हूँ और अमर भी हूँ ऐसा कोई दुश्मन नहीं जन्मा है जो मुझे मार सके
महिलाओं के प्रति सावरकर का दृष्टिकोण और दर्शन उदार और प्रगतिशील
एक प्रखर देशभक्त, वैज्ञानिक समाज सुधारक, बुद्धिमान कवि, इतिहासकार, दार्शनिक जैसे अनगिनत विशेषणों से विभूषित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विनायक दामोदर सावरकर जैसे महापुरुष पर राजनीतिक स्वार्थ के चलते कीचड़ उछालने वाले राहुल गांधी को खुद अपने परिवार की तीन पीढ़ियों से आगे के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का बिल्कुल ज्ञान नहीं है . भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े ने तीखी सलाह दी कि सावरकर से नफरत करने वाले राहुल गांधी को पहले इंदिरा गांधी, मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी जैसे कांग्रेस नेताओं के सावरकर पर विचारों का अध्ययन करना चाहिए.
अपने लंबे भाषण में तावड़े ने स्वतंत्रता सेनानी सावरकर की देशभक्ति के कई उदाहरण देते हुए उनके साहित्यिक पहलुओं की विस्तृत चर्चा की. दुर्भाग्य से आज राहुल गांधी और कांग्रेस के कई नेता ओछी राजनीति के लिए स्वतंत्रता सेनानी सावरकर के विचारों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की मुहिम में जुटे हुए हैं. ऐसे समय देश को सावरकर के बहुमुखी व्यक्तित्व पर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने स्वतंत्रता सेनानी सावरकर पर पहला डाक टिकट जारी किया जबकि खुद डॉ. मनमोहन सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम में सावरकर के महान योगदान को स्वीकार किया था. तावड़े ने आगे कहा कि लेकिन कांग्रेस के स्वयंभू नेता बनने वाली सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी को इतिहास के इस पहलू को भी जानना चाहिए.
स्वतंत्रता संग्राम के नायक सावरकर न केवल एक उत्साही देशभक्त थे बल्कि वह एक सशस्त्र क्रांतिकारी और एक कालजयी साहित्यकार भी थे. सावरकर ने कविता, नाटक, साहित्य, चिंतनशील लेखन जैसे साहित्य के विभिन्न आयामों में अपनी महान प्रतिभा का परिचय दिया, तावड़े ने सावरकर के असाधारण काव्य प्रतिभा का जिक्र करते हुए सावरकर की अमर कृतियों की सारगर्भित विवरण दर्शकों के सामने पेश किया. तावड़े ने आगे कहा कि सावरकर की सामाजिक चेतना और प्रखर राष्ट्रवाद की झलक उनकी गोमांतक, सप्तर्षि, रानफुले, कमला, अग्निजा, अग्निनृत्य, कुसुमसंचय जैसी कालजयी रचनाओ में भी मिलती है. तावड़े ने अपने उद्बोधन में सावरकर की महाकाव्य कविता ‘स्वतंत्रता स्तोत्र’ के महत्व को बहुत ही रसपूर्ण एवं सारगर्भित भाषा में विशद व्याख्या की. उन्होंने कहा कि अपने तरुणाई के वर्षो में रचित सावरकर की इन कविताओं को मराठी साहित्य का गहना कहा जा सकता है, क्योंकि इनमें सावरकर की असाधारण साहित्यिक प्रतिभा और स्वतंत्रता की उनकी उत्कट इच्छा अद्भुत ढंग से प्रतिबिंब होती है.
सावरकर को लगा, इस देश में सरस्वती की पूजा होती थी, लक्ष्मी की पूजा होती थी, दुर्गामाता की पूजा होती थी, लेकिन सावरकर को लगा कि स्वतंत्रता की देवी की भी पूजा की होनी चाहिए. इस देश के पास बुद्धि है, पैसा है, शक्ति है, पर स्वतंत्रता न होने के कारण यह सब वस्तुएँ इस शत्रु के लिए उपयोगी हो जाती हैं. लिहाजा, शत्रु हमारी शक्ति, हमारी बुद्धि और हमारे पैसे पर हमला करता है. इसलिए अब स्वतंत्रता की देवी की पूजा करनी चाहिए. यह पूजा आसान नहीं है. इस पूजा के लिए समय-समय पर प्राणों की आहुति देनी पड़ती है. सावरकर की कविताओं की व्याख्या करते हुए तावड़े ने कहा कि सावरकर ने अंग्रेजों की इस चतुराई को पढ़ लिया था, इसलिए उनकी इस कालजयी कविता में हम उनकी दिव्य दृष्टि और प्रतिभा को सहज देख सकते हैं. उन्होंने सावरकर की अस असाधारण कविता की विशद व्याख्ता करते हुए बिना लागलपेट के कहा कि स्वतंत्रता की देवी की पूजा करने वाले कवि सावरकर की यह कविता कालांतर में एक शाश्वत गीत बन गई है जो हर देशभक्त और भारतीय के मन पर आज भी हावी है.
मार्सिले में नाव से कूदने के बाद अंग्रेजों ने उनके मंतव्य को भले सफल नहीं होने दिया लेकिन उनकी छलांग दुनिया भर में प्रसिद्ध हुई. पूरी दुनिया का ध्यान उस ओर गया. उसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें पहले से भी ज्यादा प्रताड़ित करना शुरू कर दिया, लेकिन सावरकर ने तब भी हार नहीं मानी. इसके विपरीत उन्होंने “मैं अनादि हूँ, अनंत हूँ और अमर भी हूँ ऐसा कोई दुश्मन नहीं जन्मा है जो मुझे मार सके.” लिखकर अंग्रेजों को चुनौती दी थी और आने वाली पीढ़ियों के सामने अदम्य साहस का आदर्श स्थापित किया. तावड़े ने सावरकर की आत्मभक्ति के पहलू को भी दर्शकों के सामने प्रकट करते हुए कहा कि जिस तरह से शिव शंकर ने समुद्र मंथन के बाद निकले विष को पी लिया था, उसी तरह सावरकर ने अंग्रेजों द्वारा दी गई प्रताड़ना रूपी विष को पीते हुए कहा कि आप मुझे कितना भी प्रताड़ित करें, मैं सब सह लूंगा, लेकिन कभी समर्पण नहीं करूंगा.
तावड़े ने कहा कि मुंबई में एक प्रतियोगिता में सावरकर द्वारा पढ़ी गई सावरकर की कविता ‘बालविधवा दुस्थिती कथन” यह दर्शाती है कि महिलाओं के प्रति सावरकर का दृष्टिकोण और दर्शन कितना उदार और प्रगतिशील था. इस कविता में सावरकर ने उस समय की विधवाओं को दूसरी शादी से वंचित करने वाली सामाजिक व्यवस्था पर बहुत ही संवेदनशील तरीके से सवाल खड़े किए थे और यह कविता निश्चित रूप से एक प्रगतिशील विचार प्रस्तुत करती है कि विधवाओं के साथ हुए अन्याय को दूर करके विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति दी जानी चाहिए.
इंग्लैंड में गिरफ्तार होने के बाद भाभी और पत्नी की मुलाकात होगी या नहीं कि परिस्थिति में सावरकर की कलम से निकली एक और शानदार कविता मृत्युपत्र है. इस कविता में वह कहते हैं कि “मैंने अपना समस्त जीवन और अपना संपूर्ण परिवार भारत माता के चरणों में अर्पित कर दिया है.” इस कविता में वे यही कहते हैं, लेकिन साथ ही उन्हें यह एहसास होता है कि क्या वह मातृभूमि के लिए किए गए बलिदानों को सूचीबद्ध करना चाहते हैं, और तब कहते हैं, “यह क्या बड़ी बात है, यदि हम सात भाई भी होते, हे मातृभूमि! तुझ पर हम सातों अपने प्राण न्योछावर कर दिए होते.”. तावड़े ने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि कि आजकल राजनीतिक स्वार्थ के लिए देश और देशभक्तों की आलोचना करना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है.
तावड़े ने अपने भाषण में कहा कि कालांतर में दुर्भाग्य ने सावरकर पर बहुत करारा प्रहार किया. पुत्र समान प्रभाकर की मौत हो गई. बड़े भाई बाबाराव सावरकर को अंडमान की जेल में काले पानी की सजा हुई थी. मदनलाल ढींगरा को फाँसी दे दी गई. इससे विचलित होकर, फ्रांस ने ब्राइटन समुद्र तट पर उनके मुख से मराठी भाषा में महाकाव्य ‘सागर प्राण तलमलला’ का उच्चारण किया.
इस अवसर पर दर्शकों को संबोधित करते हुए तावड़े ने सावरकर समेते स्वतंत्रता सेनानियों की बहादुरी और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने की उनकी उत्सुकता के कई उदाहरण प्रस्तुत किए. उन्होंने कहा कि सावरकर जन्मजात देशभक्त थे. पंद्रह साल की उम्र में उन्होंने स्वदेशी पर कथा लिखीं. चापेकर बंधुओं ने 22 जून, 1897 को पुणे में रैंड की हत्या कर दी और उस समय चापेकर के पराक्रम का वर्णन करते हुए सावरकर ने एक कविता लिखी. इस कविता में रैंड के अत्याचारों और चापेकर भाइयों के कारनामों का विस्तार से और जोश से वर्णन किया गया है. इस अवधि के दौरान, सावरकर ने 1902 में शिवाजी महाराज की आरती भी लिख डाली . उस समय, सावरकर पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में छात्र के रूप में पढ़ रहे थे और वे चाहते थे कि सभी छात्र एक साथ आकर हम सभी के आराध्य शिवाजी महाराज की आरती करें. उन्होंने कहा कि यह शिवाजी महाराज के प्रति सावरकर के सम्मान और अपने साथियों के मन में देशभक्ति जगाने की उनकी इच्छा को दर्शाता है.
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