स्व.प्रो० श्याम मोहन अस्थाना की पहली पुण्यतिथि पर नमन
ये नाम ही काफी है अपनी पहचान के लिए..
अपने लिखे नाटकों और मृदुल स्वभाव केकारण सदा याद रहेंगे
मेरा नाम मथुरा है बुद्धम शरणम् गच्छामि है उनकी प्रसिद्ध कृति
बिहार या बिहार के बाहर भी प्रो श्याम मोहन अस्थाना का नाम रेडियो नाटककार, कवि ,नाटककार और साहित्यकार के रूप में सदा याद रखा जाएगा .देश के किसी भी हिस्से में नाट्य आयोजन हो लोग उन्हें सम्मान पूर्वक बुलाते और वे उन नाट्य महोत्सवों में जरुर जाते और अपने लिखे नाटकों से लोगों को समाज में व्याप्त कुरीतियों से अवगत कराते .आज जग प्रसिद्द नाटककार के हमारे बीच से गए एक साल हो गए .उनकी याद हमारे दिलों में है और एक ना भूलने वाली उनके जाने की टीस भी . उनकी पहली पूण्यतिथि पर पटना नाउ की ओर से श्रद्धांजलि .
नाम एंव टाईटल अपनें परिजनों के मार्फत पाया हो पर इस नाम ने पुरा हिन्दुस्तान समेट लिया अपने अंदर.यूं तो प्रो०एस०एम०अस्थाना,बेनियाबाग,वाराणसी (ऊ०प्र०) के रहने वाले थे परन्तु काम की तलाश में घुमते-घामते अंतोत्वोगत्वा आरा,(भोजपुर),बिहार के होकर रह गये और अपने जीवन की शतकीय पारी खेलने वाले प्रो० साहेब आरा की पहचान बन गये.
उच्च शिक्षा प्राप्त प्रो० साहब की पकड़ तो विषयानुरुप राजनीति शास्त्र में रही और नेपाल में स्थित कालेज से व्याख्याता पद से पदत्याग के बाद मगधविश्वविद्यालय, बोधगया के अंतर्गत महाराजा कालेज,आरा के राजनीति विभाग में योगदानोपरान्त वहीं से विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त भी हुए.
अपने पसंदीदा विषय राजनीतिशास्त्र से इत्तर उनका असली पैसन साहित्य की ओर रहा और ,साहित्य में भी हिन्दी नाटकों के प्रति उनकी गहरी मंचानुभूति उन्हें श्रेष्ठ नाटककार की श्रेणी में खड़ा करती है.
शुरुआती दिनों में काव्यरचना के साथ लघुनाटकों के प्रति दिवानगी से भारतेन्दु की परम्परा के वाहक बनते हुए सैकड़ो रेडियो नाटक की रचना की जिसे ऑल इण्डिया रेडियो ने अपनें हवामहल कार्यक्रम में प्रसारित किया और पहचान दिलाई. रात के साढ़े नौ बजे रात को हवामहल कार्यक्रम के दौरान प्रो०साहब का नाम ही गुदगुदाने के लिए काफी हुआ करता था.
इसके पश्चात उनका रुझान पहले से ही समृद्ध आरा के रंगमंच की ओर हुआ और उनके द्वारा हजारों मंचिय नाटक का भी सृजन किया जिसमें ” बुद्धम् शरणम् गच्छामि “, ” नो मेन्स लैण्ड “, “मेरा नाम मथुरा है “, “अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरोवा “, “तुफान ” , ” बुधुआ की शादी “, एंव , ” सपना खरीदोगे “.दुसरी सृष्टि आदि नाटकों ने तो देश में झंडे गाड़ दिए और लघु नाटकों के मंचन में एक नयी दिशा दी.
एक समय ऐसा था कि आरा रंगमंच दो ध्रुवों जैन कालेज व महाराजा काँलेज में बटने के बाद महाराजा कालेज का प्रतिनिधित्व करते हुए भी दोनों ध्रुवों को पाटनें का काम किया और आरा रंगमंच को एक नयी ऊचाई प्रदान की. पूरे बिहार में उन्होंने अपने लेखन एवं रंगमंचीय गतिविधियों के माध्यम से बुद्धिजीवियों के बीच एक विशिष्ट पहचान कायम की थी.स्व० जयप्रकाश नारायण के अनुयायी रहे प्रो० साहब ने अपने जीवन भर उनके विचारों को आत्मसात करते रहे और अपने अनुयायियों को भी आत्मसात करने की सलाह दी.इसके लिए वे जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन में जेल भी गए .यह महान विभूति भी आखिर कार शतकिय पारी खेलते हुए अपनी जीवन की जंग 24दिसम्बर 2015 की दोपहर में हार गया.इस महान आत्मा के मुक्त आत्मा को नमन करते हुए दिल का भर आना लाजमी है.24-12-201 को उनसे बिछड़े आरा रंगमंच को एक साल हो जाएंगे.भिखारी ठाकुर शोधसंस्थान, आरा भोजपुर, ने भी उन्हे 18-12-2016 को मरणोपरान्त “भिखारी ठाकुर सम्मान – 2016″ से सम्मानित किया.
महान विभुति को पुन: सलाम
चन्द्रभूषण
उनके द्वारा प्रस्तुत नाटको के कुछ तस्वीरे
उन्होंने लगभग पांच दशकों तक नाटकों का लेखन और निर्देशन किया। ‘मेरा नाम मथुरा है’ उनका चर्चित नाटक था। उन्होंने पौराणिक कथानकों पर कई नाटक लिखे। ‘बुद्धं शरणमं गच्छामि’ उनका ऐसा ही एक नाटक है. उनके नाटक ‘पूरब और पश्चिम’ का भी आरा में मंचन हो चुका है, जिसे आरा के वरिष्ठ साहित्यकार संस्कृतिकर्मी आज भी याद करते हैं. आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी उनके नाटकों का प्रसारण होते रहा है. उन्होंने करीब डेढ़-दो दर्जन नाटक एवं एकांकी लिखे उनके नाटकों की सराहना राष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध नाटककार एवं आलोचक डा. राम कुमार वर्मा ने की थी. अपनी संस्था ‘कामायनी’ के जरिये उन्होंने हिंदी रंगमंच की कई पीढि़यों को निर्मित किया. नाटकों के अतिरिक्त उन्होंने कविताएं एवं निबंध भी लिखे.