प्रेमचन्द के सपनों का समाज और देश का यथार्थ : परिचर्चा का हुआ आयोजन

By om prakash pandey Aug 2, 2018

मौका प्रेमचन्द जयंती आयोजन का

आज प्रलेस, जलेस, जसम, युवानीति, कला कम्यून और इप्टा की ओर से प्रेमचंद जयंती के अवसर पर आरा के महावीर टोला स्थित साईं इंटरनेशनल स्कूल में “प्रेमचंद के सपनों का समाज और देश तथा आज का यथार्थ” विषय पर बहस आयोजित की गयी। कार्यक्रम में बहस के विषय को खोलते हुए प्रो. रवींद्रनाथ राय ने प्रेमचंद के कहानियों, उपन्यासोंऔर उनके वैचारिक लेखों का हवाला देकर आज के सामाजिक और आर्थिक सवालों को श्रोताओं के सामने रखा। उन्होंने देश में धार्मिक मान्यताओं को आडंबर में तब्दील करके देश की स्थिति को विकराल बनाने वालों को निशाने पर लिया। इसके बाद रामनाथ ठाकुर ने समाज के बिगड़ते हुए हालत के लिए शिक्षकों को जिम्मेदार बताया। शिक्षक और कला कम्यून के  प्रसिद्ध चित्रकार राकेश दिवाकर ने कहा कि शिक्षकों को शिक्षा से इतर कई कार्यों में लगा दिया जाता है, जिससे उनके मुख्य कार्य बाधित हो जाते हैंl  नेता अजित कुशवाहा ने प्रेमचंद की रचनाओं में मौजूद सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और वैचारिक सवालों को आज के समय में अर्थपूर्ण विश्लेषण करने की बात कही। कवि सुमन कुमार सिंह ने आज की समसामयिक चुनौतियों के संदर्भ में कहा कि ये लंबे समय से पैर फैलाते हुए सामने आयी हैं। कुछ व्यक्ति धर्म के ठेकेदार हो जा रहे हैं। कोई निजी स्कूल शिक्षा का मानक तय करने लगती है। और इन पर बोलना और कुछ कहना खतरे से खाली नहीं है। कवि ओमप्रकाश मिश्र ने प्रेमचंद के साहित्य को साहित्यकारों और समाज के लिए प्रकाश स्तंभ बताया। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद एक ऐसे लेखक हैं जिनके लेखन में देश और उसके सामाजिक, आर्थिक, परिवारिक संघर्ष को हम देखते-समझते हैं। प्रो. किरण कुमारी ने अपने वक्तव्य में कहा कि देश के लोगों की नैतिकता में ह्रास आया है। समाज यौन पिपासु बनता जा रहा है।




कैसा था प्रेमचन्द के सपनों का समाज

कथाकार प्रो. नीरज सिंह ने कहा कि आज देश के सामने कई समस्याएं हैं। उन पर वस्तुपरक तरीके से बात होनी चाहिए। प्रो. सिंह ने कहा प्रेमचंद के साहित्य में चेतना के दो बिंदुओं को देखा जाना चाहिए। एक देशभक्ति और दूसरी समाज की समरसता को बिगाड़ने वाला धार्मिक पाखंड। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद के साथ ढेर सारे साहित्यकारों ने इन तत्वों को चिन्हित किया।

कवि-आलोचक जितेंद्र कुमार ने कहा कि प्रेमचंद के साहित्य में भारतीय स्त्री के सम्मान के सवाल को उठाया गया है। उनकी परनिर्भरता के आर्थिक, सामाजिक और जातीय कारकों के कई  ठोस उदाहरण उन्होंने प्रस्तुत किये। उन्होंने आगे कहा कि स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास कांग्रेस का इतिहास नहीं है।  उसके समान्तर कई तरह की धाराएँ समाज में थीं और अलग-अलग मोर्चे पर विभिन्न विचारधारा के लोग नेतृत्व कर रहे थे। प्रेमचंद के साहित्य में मध्यवर्गीय जीवन का अंतर्विरोध भी देखने को मिलते हैं।

आलोचक रामनिहाल गुंजन ने गोयनका द्वारा किए गए प्रेमचंद के मूल्यांकन पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि गोयनका प्रेमचंद को प्रगतिशील लेखक मानता ही नहीं है। उन्हें यथास्थितिवादी करार देने में लगा रहता है। कार्यक्रम के प्रारम्भ में संचालक ने पांच प्रस्ताव रखे गये वे हैं मुजफ्फरपुर में आश्रय गृह बलात्कार काण्ड की जांच और दोषियों को दण्डित करना, शाहजहांपुर में ‘औरंगजेब’ नाटक का मंचन रोकने की निंदा, पत्रकार संजीत उपाध्याय के मौत की जांच और उचित मुआवजे की मांग, मोब लिंचिंग जैसे जघन्य अपराध का विरोध और संस्कृतिकर्मी कृष्णेंदु जी के पुत्र अमन आर्यन के असमय मौत पर संवेदना प्रगट की गयी l

धन्यवाद ज्ञापन संस्कृतिकर्मी अंजनी शर्मा ने किया और कार्यक्रम के अंत में प्रभात खबर से जुड़े पत्रकार संजीत उपाध्याय तथा आरा प्रमुख रंगकर्मी कृष्णेदु जी के पुत्र अमन आर्या के असामयिक निधन पर एक मिनट का मौन रखकर शोक व्यक्त किया गया। इस अवसर पर युवा कवयित्री नेहा नूपुर, कवि सिद्धार्थ बल्लभ,पत्रकार भीम सिंह भवेश, आयकर विभाग के सुप्रसिद्ध अधिवक्ता शालीन कुँअर, VKSU छात्र राजद अध्यक्ष भीम कुमार, रजनीश कुमार, इप्टा से जुड़े नागेंद्र पांडेय, रवि प्रकाश सूरज, धनंजय सिंह, अभिनेता विवेक दीप पाठक, आनंद पाण्डेय, ऋषिकेश पांडेय, रविशंकर सिंह उर्फ मंटू जी, निर्देशक और अभिनेता श्रीधर शर्मा, कवि जनार्दन मिश्र सहित इलाके के कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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