पटना (वरिष्ठ
पत्रकार अनुभव सिन्हा की कलम से) | बिहार में दो नावों पर राजनीतिक
सवारी का खतरा अपने मुकाम की ओर अग्रसर है. बस समय की प्रतीक्षा की जा रही है. यह
तब है जब एक तरफ नीतीश कुमार को एनडीए का सीएम भी बताया जा रहा है और दूसरी तरफ
उनके रणनीतिकार प्रशांत किशोर अमित शाह को चुनौती दे रहे हैं. घुसपैठ को मुसलमानों
से जोड़कर राजनीति की यह कवायद बंगाल में जोर पकड़ेगी जहां 2021 में चुनाव होने वाले हैं और प्रशांत
किशोर ममता बनर्जी की चुनावी जीत सुनिश्चित करने की रणनीति तैयार कर रहे है.
यह अंदेशा तो पहले से ही था कि नीतीश कुमार अमित शाह के मुकाबले
प्रशांत किशोर को प्रोजेक्ट करने में लगे हुए थे. एनआरसी का दूसरी बार जोरदार
तरीके से विरोध करके जदयू ने इसे सामने ला दिया है. इससे कांग्रेस को या गैर एनडीए
को सियासी खुराक मिलेगी , यह एक बात है जो भाजपा की मुश्किलें बढ़ाने वाली
होंगी. राजनीतिक लाइन यही है. तथ्य अपनी जगह कायम है कि अल्पसंख्यक घुसपैठियों और
पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान
तथा बंगलादेश से प्रताड़ित छह हिन्दू समुदाय के अल्पसंख्यकों को भरतीय नागरिकता
प्रदान करने का भाजपा का इरादा सियासी आग में झुलसेगा या तप कर सामने आएगा यह
देखना बाकी है. घुसपैठ को सही नही ठहराया जा रहा लेकिन मुसलमानों की वजह से उसे
अंतरराष्ट्रीय और मानवाधिकार से जोड़कर बड़ा फलक देने की आधी-अधूरी कोशिश को परवान
चढ़ने की तैयारी जरूर है. हालांकि भारत की मौजूदा अंतरराष्ट्रीय छवि और शाख अपनी
जगह है जिसकी गहराई में गैर भाजपाई शायद न पहुंच पाए लेकिन घर की तैयारी में
उन्हें मुफीद माहौल जरूर नज़र आ रहा है.
(उपरोक्त लेखक के व्यक्तिगत विचार
हैं)