कला प्रदर्शनी सह कला दर्शन कार्यक्रम का आगाज
सिख धर्म के दसवें तीर्थंकर श्री गुरू गोविंद सिंह जी महाराज के 350वें प्रकाशोत्सव के अवसर पर कला प्रदर्शनी सह कला दर्शन कार्यक्रम का आगाज आज बहुद्देशीय सांस्कृतिक परसिर, फ्रेजर रोड, पटना स्थित बिहार ललित कला अकादमी में कला, संस्कृति एवं युवा विभाग बिहार और बिहार ललित कला अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में हुआ. इसमें प्रथम दर्शक के रूप में कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के मंत्री शिवचंद्र राम शामिल हुए. इस दौरान मंत्री शिवचन्द्र राम ने कहा कि श्री गुरू गोविंद सिंह जी महाराज के 3 50वें जन्मदिवस पर प्रकाशोत्सव के बहाने इस कला प्रदर्शनी सह कला दर्शन कार्यक्रम के जरिए बिहार की प्रतिभाओं की कला का प्रदर्शन हो रहा है. गौरतलब है कि इस प्रदर्शनी में राज्य के ख्याति प्राप्त कलाकारों के साथ – साथ युवा, छात्र एवं लोक कला के कलाकारों की कलाकृतियां को बिक्री के लिए प्रदर्शित की गई है.
इसमें समसामयिक कला चित्र, मूर्ति, ड्राइंग, ग्राफिक एवं फोटोग्राफी बिहार के लोकचित्र और शिल्पों को रखा गया है. प्रदर्शनी में बिहार ललित कला अकादमी में संग्रहित कलाकृतियों में चुनिंदा कलाकृतियों को भी दर्शकों के अवलोकन के लिए प्रदर्शित किया गया. प्रदर्शनी में अकादमी अध्यक्ष आनंदी प्रसाद बादल, उपाध्यक्ष मिलना दास, सदस्य कलाकार बी के जैन, बिरेंद्र कुमार सिंह, शैलेंद्र कुमार, अमरेश कुमार, श्याम शर्मा, रजत घोष, मनोज कुमार, बच्चन प्रमोद प्रकाश, सन्यासी रेड जैसे वरिष्ठ कलाकारों की कलाकृतियां प्रदर्शित की गई. पांच जनवरी तक चलने वाली इस प्रदर्शनी में कला प्रेमियों के मनपंसद कलाकृतियों की खरीदारी भी कर सकते हैं. इस दौरान कला संस्कृति एवं युवा विभाग के प्रधान सचिव चैतन्य प्रसाद, बिहार ललित कला अकादमी के अध्यक्ष ए पी बादल, सचिव सत्य प्रकाश मिश्र, आनंद कुमार, राजकुमार झा, संजय कुमार सिंह, राज कुमार लाल, अर्चना सिन्हा, प्रमोद प्रकाश, दिनेश कुमार, अतुल वर्मा, संजय कुमार, राजकुमार झा, अरविंद महाजन, विभा सिन्हा,शरद कुमार और मीडिया प्रभारी रंजन सिन्हा उपस्थित रहे.
वहीं, श्री गुरू गोविंद सिंह जी महाराज के 350वें प्रकाशोत्सव के अवसर पर कला संस्कृति एवं युवा विभाग बिहार के द्वारा शहर के विभिन्न स्थान पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों का शानदार आयोजन किया गया है, जिसमें गुरू गोविंद सिंह जी के जीवन और उनकी शिक्षाओं को कलात्मक माध्यम से प्रदर्शित किया जा रहा है. श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में रविशंकर उपाध्याय ने पखावज की प्रस्तुति दी. डॉ अजीत प्रधान ने राग कथा गुलदस्ता ऑफ गुरू गोविंद सिंह और निरंजन कौर खालसा ने गुरू गोबिंद सिंह कॉल टू लाइव एज वॉरियर संत का पाठ हुआ. उस्ताद आशीष खान ने सरोद, डॉ कुलवंत सिंह ग्रेवाल ने काव्य पाठ और भाई बलजीत सिंह नामधारी के ख्याल – गुरूबानी संगीत से सबको मंत्र मुग्ध कर दिया.
वहीं, भारतीय नृत्य कला मंदिर, फ्रेजर रोड पटना में भारत – भारती के अंतर्गत पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, कोलकाता द्वारा प्रह्लाद नाटकम (उड़ीसा), नौटंकी (उत्तर प्रदेश) और घुबकुडू (उड़ीसा) का मंचन किया गया. तो प्रेमचंद रंगशाला में रंग – ए – बिहार कार्यक्रम के अंतर्गत नृत्य (फ्युजन) कथक नृत्य, पटना की प्रस्तुति हुई. इसके बाद राजीव रंजन द्वारा कथक नृत्य, पमरिया नृत्य – इजराइल पमरिया लोक नृत्य मधुबनी और लोकनृत्य संगीतम की भी प्रस्तुति हुई. इसके अलावा बिहार संग्राहलय में पंजाब डिजिटल लाइब्रेरी के सहयोग से चित्र प्रदर्शनी और बिहार विरासत विकास समिति के तख्त श्री हर मंदिर साहब से गुरू का बाग कंगन घाट तक यात्रा निकाली गई.
उधर रविंद्र भवन में आयोजित सांस्कृति कार्यक्रम का भी उद्घाटन कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के मंत्री शिवचंद्र राम ने किया. इस दौरान विभाग के प्रधान सचिव चैतन्य प्रसाद, के डी भाई आदि लोग उपस्थित थे. इसके बाद उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र इलाहाबाद के शब्द गायन से कार्यक्रम की विधिवत शुरूआत हुई, जिसमें गुरू गोविंद सिंह जी महाराज के प्रति जाप सत नाम वाहे गुरू, सत नाम वाहे गुरू, सदगुरू होय दयाल तों सरदा पूरिये और वाहो वाहो गुरू गोविंद सिंह आपै अरूचेला की प्रस्तुति हुई. यह प्रस्तुति गुरू गोविंद सिंह जी की शौर्य परंपरा को समर्पित है, जिसके कार्यक्रम अधिकारी कल्पना सहाय और संचालन संजय पुरूषार्थी ने किया.
इसके अलावा उत्तर प्रदेश के पंकज तिवारी ने आल्हा गायन, गुजरात के दया भाई नाकुम ने बेड़ा रास, उत्तर प्रदेश के लखन लाल यादव ने दीवारी/पाईडंडा, करेल के शहादुद्दीन (शिवा) ने कलरियापयट्टू, पंजाब के गगनदीप सिंह ने गतका और पटना के अभय सिन्हा ने स्थानीय नृत्य दल के साथ एक ऐतिहासिक प्रस्तुति दी. कलरियापयट्टू भारत के दक्षिण राज्य केरल से जन्मी एक युद्ध कला है. संभवतत: यह सबसे पुरानी अस्तित्ववान युद्ध कला में से एक है. यह केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक आदि में काफी प्रचलित है. इसका अभ्यास मुख्य रूप से केरल की योद्धा जातियों जैसे नायर द्वारा किया जाता है. नर्तक और नर्तकियों के साथ ही इसे प्रस्तुत किया जाता है.