संयुक्त परिवार के टूटने की कहानी है “भाई-बिरोध”
पटना नाउ की विशेष रिपोर्ट
आरा, 18 जून. कला एक ऐसा माध्यम है जो अपने प्रभाव से समाज मे एक संदेश छोड़ने में कामयाब हो जाता है और यह माध्यम और सशक्त तब हो जाता है जब नाट्यकला के जरिये इसे प्रस्तुत किया जाता है. इस नाट्यकला का प्रभाव 10 गुना तब और बढ़ जाता है जब भोजपुरी के शेक्सपीयर कहलाने वाले भिखारी ठाकुर की कोई रचना हो. भिखारी ठाकुर की रचना को दर्शकों ने अपने पलकों पर जगह दी है. कारण, उनके रचना में सामाजिक कुरीतियों और जटिलताओं की प्रस्तुति लोगों को काफी इंटरैक्ट करती थी लेकिन भिखारी के वे विशाल दर्शक उनके नही रहने के बाद कम हो गए. लेकिन कई संस्थाओ ने जब-जब उनकी रचनाओं को प्रस्तुत किया तो फिर से कई दर्शक वर्ग तैयार हुए.
लेकिन भिखारी ठाकुर की रचना को आम दर्शकों तक लाने का जो काम प्रभाव क्रिएटिव सोसायटी ने किया है वह अपने आप मे ऐतिहासिक है. एक लंबे अवधि तक नुक्कड़ पर दर्शकों को बाँधना साबित करता है कि प्रभाव की हिम्मत वाली जिगर के साथ कलाकार की जिगर वाले अभिनेता भी इस संस्था में हैं जिनके अभिनय के विशेष प्रभाव से लेकर गायन तक ने दर्शकों पर ऐसा जादू किया कि नाटक के अंत तक बैठने पर मजबूर हो गए. बताते चलें कि प्रभाव हर रविवार को पिछले 60 हफ्तों से उनके नुक्कड़ के लिए सहयोग करने वाली वो संस्था है जिसने आरा रंगमंच के कलाकारों को सींचने का काम किया है. इन 60 हफ़्तों में गबर घिचोर और भाई विरोध को नुक्कड़ पर करने के लिए इस साहसिक कदम को हमेशा याद रखा जाएगा.
प्रभाव क्रिएटिव सोसाइटी द्वारा ‘नुक्कड़ पर भिखारी ठाकुर’ श्रृंखला के तहत गुरुवार को ,स्टेडियम गेट, रमना मैदान में भिखारी ठाकुर लिखित “भाई – बिरोध”(नाटक) की प्रस्तुति की गई. नाटक की परिकल्पना व निर्देशन डॉ पंकज भट्ट – अनिल तिवारी ‘दीपू’ ने किया. कार्यक्रम का उद्घाटन जितेन्द्र कुमार, डॉ नीरज सिंह, अजितेश कुमार, विनित कुमार, विष्णु शंकर ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया.
अपने संबोधन में जितेन्द्र कुमार ने कहा कि प्रभाव क्रिएटिव और डॉ पंकज – दीपू पिछले कई सालों से भोजपुरी लोक संस्कृति पर लगातार काम कर रहे है. नुक्कड़ पर भिखारी ठाकुर के नाटको को लाना एक अनुठा और प्रशंसनीय कार्य है. निर्देशक डॉ पंकज भट्ट ने कहा कि पश्चमि संस्कृति से आकर्षित होती आज की युवा पीढ़ी को भिखारी ठाकुर के नाटकों से परिचय कराना आवश्यक है. क्योकि भिखारी ठाकुर के नाटकों में भोजपुरी लोक संस्कृति की पुरी संसार है. संस्था के सचिव और प्रसिद्ध चित्रकार कमलेश कुंदन ने कहा कि संस्था अपनी लोक संस्कृति पर लगातार काम करती आ रही है, और यह प्रयास अनवरत जारी रहेगा.
मनोशारीरिक और प्रायोगिक शिल्प में प्रस्तुत “भाई-बिरोध ” नाटक संयुक्त परिवार के बिखराव की कहानी है.
सिर्फ दुपट्टे के प्रयोग से जिस सहजता से पुरुष कलाकारों ने स्त्री पात्रों को नुक्कड़ पर दर्शकों के बीच प्रस्तुत किया वह काबिले तारीफ है. टेलीविजन और इंटरनेट पर नित नई कई छोटी कहानियों को फिल्मो की तरह देखने वाले दर्शकों पर यदि कोई पुरुष पात्र का अभिनय स्त्री चरित्र के रूप में बांध देता है तो फिर कहने की जरूरत नही कि उसमें कौन सा तत्व है. भाई बिरोध नाटक में बड़ा भाई – उपकार, पत्नी – उपकारी बहू, मंझला भाई-उपदर, पत्नी उपदर बहू, और छोटा नाबालिग भाई -उजागर जैसे पात्र है. उपदर बहू गांव के ही एक कुटनी बुढ़िया के बात में आकर अपने पति को परिवार से अलग होने के लिए बाध्य कर देती है. बटवारा होता है. छोटा भाई उजागर मंझले भाई के ही साथ रहता है. लेकिन बात यही खत्म नही होती. उपदर बहू फिर से उस कुटनी बुढ़िया की बातों में पड़ धन के लालच में अपने पति उपदर से छोटे भाई उजागर की हत्या करवा देती है. पुलिस उपदर को गिरफ्तार कर लेती है. उपदर की पत्नी भी उपदर का साथ छोड़ देती है. अंत में उपदर को अपनी गलती का एहसास होता है.
नाटक में नुक्कड़ पर प्रभाव के क्रिएटिव कागज के मुखौटे जो घड़े नुमा आकृति पर बने थे वह काफी प्रभावित कर रहा था. गायन मंडली की एक तरह की टोपियां भी काफी प्रभावशाली थीं. नाटक की मुख्य भुमिकाओं में बटवारे के दृश्य में सुधीर शर्मा (उपकारी) नें दर्शकों को भाव विभोर कर दिया. कुटनी बुढ़िया के चरित्र में अनिल तिवारी दिपू पुरे नाटक में छाए रहे. उपदर के किरदार में विरेन्द्र ओझा ‘बम’ नें जान डाल दी. कलही पत्नी की भुमिका में डॉ पंकज भट्ट दर्शकों की पसंद बन गए वही उपकारी बहु की भूमिका में निशिकांत नें दर्शकों को प्रभावित किया. निशिकांत के हाव-भाव और छाव बिल्कुल जेठानी के जैसे थे. अन्य भुमिकाओं में साहेब अमन (सूत्रधार), भरत आर्य (पंच), बिक्कू राज(उजागर),सलमान मेहबूब(दारोगा),लड्डू भोपाली(सिपाही), मास्टर अद्दभूत-उत्कर्ष (पुत्र) रहे.
संगीत प्रधान इस नाटक में संगीत श्याम शर्मिला का था वही संगीत परिकल्पना नागेन्द्र पाण्डेय की थी. समाजी में निराला, अंजनी, दीन दयाल, शुभ, अमृत, संतोष तिवारी रहे. कार्यक्रम प्रभारी लड्डू भोपाली व सहयोग में रूपेश, राम बाबू, अमित आदि रहे. संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी अशोक मानव ने और धन्यवाद ज्ञापन कमलेश कुंदन ने किया.
आरा से ओ पी पांडेय की रिपोर्ट