बायो स्टेप की मदद से नदियों तक पहुंचेगा ट्रीटेड सीवेज वाटर

पटना।। पटना में गंगा नदी का जल टोटल कॉलीफार्म तथा फीकल कॉलीफार्म के मानकों के अतिरिक्त सभी पारामीटरों पर खरा उतरता है. इस बारे में बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के सदस्य सचिव एस चन्द्रशेखर ने बताया कि राज्य में निर्माणाधीन सिवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) का निर्माण पूरा होने पर शहरों / नगरों से निकलने वाले मल-जल को उपचारित करने के पश्चात ही नदियों में प्रवाहित किया जायेगा, जिससे नदियों के जल की गुणवत्ता में सुधार आयेगा.

वे “DRDO BIO STP (Zero Electricity, Zero Consumable) with the special referece to the removal of Cliform Bacteria) ” व्याख्यान में संबोधन दे रहे थे.




अपने व्याख्यान में प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए प्रखर बिंदल ने बताया कि BIO-STP भारत सरकार की संस्था डी.आर.डी.ओ. द्वारा विकसित एक ग्रीन तकनीक है. जिससे विभिन्न प्रकार के बैक्टिरिया के समूह का उपयोग कर मल-जल को उपचारित किया जाता है. पूरी प्रक्रिया में किसी प्रकार की उर्जा (बिजली) की खपत नहीं होती है. यह केवल गुरूत्वाकर्षण के आधार पर कार्य करता है. ऐसे बॉयो डायजेस्टर में न तो सेटलिंग टैक होता है, न तो एरोबिक टैंक. यह एक एनोरोबिक डायजेस्टर (Anaerobic digester) होता है, जिससे जीवाणुओं के संघ (Consortium of bacteria) का उपयोग कर जल-मल का शोधन किया जाता है इसी टैंक में एक निश्चित मात्रा में बैक्टिरिया के समूहों को एक बार ही डालना पड़ता है जो स्वयं ही अपनी संख्या बढ़ाते है और सतत् अपने काम में लगे रहते हैं. मल-जल (Sewage) को टैंक में तीन दिन तक रखने पर ये बैक्टिरिया मल-जल को विघटित करते है. यहां से यह शोधित मल-जल पत्थरों के टुकड़ों की एक छन्नी से गुजर कर बाहर आता है एवं एक रीड बेड (Reed bed) में संग्रहित होता है, जहां एक विशिष्ट पौधे की जड़ों में खास प्रकार की बैक्टिरिया की सहायता से पुनः इनका शोधन होता है.

ऐसे बैक्टिरिया अपनी क्रिया के दौरान साफ जल एवं अल्प मात्रा में मिथेन गैस का जनन करते है, जिसका कोई व्यवसायिक उपयोग नहीं किया जा सकता है. 10 किलोलीटर प्रतिदिन (KLD) की क्षमता के बहिःस्रावित जल के शोधन के लिए 30 किलोलीटर क्षमता के बॉयोडाजेस्टर टैंक की आवश्यकता होती है. गर्मियों में रिड बेड के पौधे की पत्तियां सूख सकतीं हैं, लेकिन इनकी जड़ें अपना काम करती रहती हैं.

इस अवसर पर राज्य पर्षद के अध्यक्ष डॉ. डी.के. शुक्ला ने बताया कि बिहार राज्य के लिए इस प्रकार की तकनीक बेहद सामयिक है. राज्य की मुख्य समस्या नदी जल में टोटल कॉलीफार्म तथा फिकल कॉलीफार्म की अधिक संख्या ही है. सामान्यतः जल प्रदूषण के अन्य पारामीटर निर्धारित मानक के अधीन पाये जाते हैं.

pncb

By dnv md

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