Political Thought in Indic Civilization’ का लोकार्पण
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दिल्ली में हुआ लोकार्पण
इस पुस्तक से भारत के विषय में नई परिभाषा समझने को मिलेगी-राम बहादुर राय
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इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दिल्ली में प्रो हिमांशु राय द्वारा लिखित-संपादित पुस्तक ‘पॉलिटिकल थॉट इन इंडिक सिविलाइजेशन’ का आज लोकार्पण किया गया. अध्यक्षीय संबोधन में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष सह वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री रामबहादुर राय ने कहा कि इस पुस्तक से भारत के विषय में नई परिभाषा समझने को मिलेगी. ये पुस्तक बदलते हुए जमाने की कहानी है, ये पश्चिम के पिछलग्गू भारतीयों को जवाब भी है.
भारत सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार डॉ. संजीव सान्याल ने लोकार्पण के बाद परिचर्चा में बोलते हुए कहा कि यह पुस्तक हमें भारतीय दृष्टिकोण निर्माण में मदद करेगी. उनके अनुसार ये पुस्तक पश्चिम के नैरेटिव का काउंटर नैरेटिव भी है. उन्होंने इतिहास को अपने दृष्टि से देखने और परिभाषित करने की बात भी कही.
लेखक प्रो हिमांशु राय ने अपने संबोधन में भारत के इतिहास के साथ अंग्रेजों द्वारा किए गए छेड़छाड़ किये जाने की तथ्यपरक व्याख्या की. उन्होंने ऐतिहासिक घटनाओं को प्रमाणिक तरीके से नये संदर्भों के जरिये परिभाषित करने और समझने पर जोर दिया. प्रोफेसर राय ने अंग्रेजों से पहले भारत की स्थिति पर बोलते हुए कहा कि प्री-कोलोनियल इंडिया कई दृष्टिकोण से बेहतर अवस्था में था, भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत थी, व्यापारिक प्रतिष्ठान समृद्ध थे और समुद्रीय परिवहन में भारत को महारत हासिल था, जो समुन्नत भारतीय वैभव का परिचायक है.
ऋषिहुड यूनिवर्सिटी में डीन प्रो. शोभित माथुर ने आधुनिक राज्य व्यवस्था को भारतीय मानस के अनुरूप गढ़ने और समझने की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि यह पुस्तक उसी व्यवस्था को गढ़ने में सहायक साबित होगी. कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने अपने वक्तव्य में पुस्तक के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह भारतीय चिंतन की वर्तमान स्थिति और सोच को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करेगा.
पुस्तक लोकार्पण समारोह और परिचर्चा का आयोजन इंदिरा गांधी कला केंद्र के कलानिधि विभाग ने किया था. कला निधि के डीन प्रो. रमेशचंद्र गौड़ ने पुस्तक को राजनीति और संस्कृति के लिए महत्वपूर्ण माना. कार्यक्रम में दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और शोधार्थियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति कार्यक्रम के अकादमिक महत्व को दर्शाता है.
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