‘नए भारत का सामवेद’ पुस्तक का लोकार्पण हुए आईजीएनसीए में
संविधान को लोगों तक पहुंचाया है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेः मीनाक्षी लेखी
नरेन्द्र मोदी संविधान को बनवास से वापस लाए हैं: पद्मश्री रामबहादुर राय
संविधान को किताब से बाहर निकालकर जमीन पर उतारने का काम किया हैः मीनाक्षी लेखी
नई दिल्ली, 7 दिसंबर,
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के समवेत ऑडिटोरियम में प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संविधान से जुड़े उद्बोधनों के संकलन ‘नए भारत का सामवेद’ का लोकार्पण किया गया. इस लोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द और विशिष्ट अतिथि केन्द्रीय संस्कृति एवं विदेश राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी थीं. कार्यक्रम की अध्यक्षता आईजीएनसीए न्यास के अध्यक्ष व वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री रामबहादुर राय ने की और स्वागत भाषण सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने किया. ‘नए भारत का सामवेद’ पुस्तक का पुरोवाक् रामबहादुर राय ने लिखा है और संयोजन डॉ. प्रभात ओझा ने किया है. इस अवसर पर पुस्तक के प्रकाशक प्रभात कुमार भी उपस्थित थे.
इस पुस्तक में प्रधानमंत्री के संविधान से जुड़े भाषणों का संकलन है. इसमें पहला भाषण 24 जनवरी, 2010 का है, जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने संविधान के 60 वर्ष पूरे होने पर ‘संविधान गौरव यात्रा’ निकाली थी और उस यात्रा के समापन पर यह भाषण गुजरात के सुरेंद्रनगर में दिया था. संविधान पर संभवतः यह उनका पहला भाषण था. इससे पता चलता है कि वह संविधान को लेकर प्रारंभ से कितने संवेदनशील और जागरूक रहे हैं.
मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने ‘नए भारत का सामवेद’ के लोकार्पण का अवसर देने के लिए आईजीएनसीए और प्रभात प्रकाशन को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा कि पुस्तक में संकलित भाषण हमारे संविधान के सार को सहजता, सरलता से प्रस्तुत करते हैं. कोविन्द ने कहा कि वर्तमान में संविधान को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की संविधान को लेकर यह दृष्टि थी कि संविधान लोगों की आकांक्षाओं के अनुरूप होना चाहिए. उन्होंने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म करने को संविधान की मूल भावनाओं के अनुरूप बताया. उन्होंने कहा कि भारत का संविधान एक जागृत संविधान है, यह कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका सहित सभी नागरिकों का सही दिशा में मार्गदर्शन करता है. उन्होंने संविधान के बारे में जनता में चेतना जगाने का श्रेय पीएम नरेंद्र मोदी को दिया.
विशिष्ट अतिथि मीनाक्षी लेखी ने कहा कि पुस्तक का नाम ‘नए भारत का सामवेद’ ही भारतीय संविधान के बारे में बहुत कुछ कह देता है. उन्होंने कहा कि 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का जो लक्ष्य है, उसके लिए हम सब संकल्पित हैं और इस लक्ष्य के प्रणेता कोई और नहीं, बल्कि भारत के प्रधानमंत्री हैं. उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने संविधान को जमीन पर उतारने का काम किया है. श्रीमती लेखी ने कहा, बाबासाहेब आम्बेडकर संविधान की आत्मा थे और आजादी के बाद से संविधान की आत्मा का अनादर किया गया. उन्होंने सवाल उठाया कि जब बाबासाहेब जीवित थे, तो उस समय की सरकार उनके साथ क्या किया? बाबासाहेब बराबरी की बात करते थे. महिलाओं को बराबरी का अधिकार, वंचितों को अधिकार, सबको समता का अधिकार देने का कार्य बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने लड़-झगड़ कर किया. आजादी के 67 साल बाद संविधान की आत्मा बाबासाहेब भीमराव आम्बेडकर को सम्मान देने का काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया. उन्होंने बाबासाहेब से जुड़े ‘पंचतीर्थ’ का निर्माण किया, जिसमें उनकी जन्मभूमि महू; शिक्षाभूमि लंदन; चैत्यभूमि इंदु मिल, मुंबई; दीक्षाभूमि नागपुर और महापरिनिर्वाण भूमि दिल्ली में उनके स्मारक शामिल हैं. उन्होंने कहा कि अमृतकाल में हम सबको अपने कर्तव्य का बोध कराने का कार्य भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने किया. संविधान का मान-सम्मान करते हुए भारत के विकास यात्रा में हम सब शामिल हो, यही इस पुस्तक का मूल है. जो लोग अफवाह पैदा करना चाह रहे हैं, भ्रम का वातावरण पैदा करना चाहते है, भ्रमित करने वाली राजनीति करते हैं, यह किताब उनको जवाब है.
पद्मश्री रामबहादुर राय ने कहा, जिस पुस्तक का लोकार्पण हुआ है, उसको मैं नागरिक चेतना का परिणाम मानता हूं. मेरी दृष्टि में पीएम नरेन्द्र मोदी ने संविधान के संबंध में एक मौलिक कार्य किया है. यही बात इस किताब में मिलती है. उन्होंने कहा, संविधान वही है, जो पहले था, लेकिन उसको देखने की दिशा बदल गई है, उसके बारे में सोचने की दिशा बदल गई है. यह बदलाव 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने की घोषणा से हुआ है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मननशील प्रधानमंत्री है, क्योंकि एक मननशील प्रधानमंत्री ही संविधान दिवस की घोषणा कर सकता है. पहले वाले प्रधानमंत्री भी ये घोषणा कर सकते थे, लेकिन नहीं किया. संविधान दिवस मनाने से संविधान के प्रति चेतना पैदा हुई है. उन्होंने कहा, मैं कहना चाहता हूं कि संविधान वनवास में था, बाबासाहेब भी बनवास में थे, उनकी वापसी प्रधानमंत्री ने कराई है. उनका संदेश है- उठो, जागो, संविधान को जानो और उसको मानो, उसको समझो. उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग आज कहते हैं कि संविधान खतरे में है, दरअसल संविधान नहीं, वही लोग खतरे में हैं.
डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा, वर्तमान परिस्थिति में जिस तरह से देश को लोगों, विशेषकर युवा पीढ़ी को संविधान के संबंध में मार्गदर्शन दिए जाने की आवश्यकता है, उसके लिए हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दृढ़प्रतिज्ञ हैं और लगातार प्रयत्नशील भी हैं. हम सबको ज्ञात हैं कि आज से कुछ वर्ष पहले संविधान दिवस मनाने की परिकल्पना को उन्होंने जब मूर्तरूप दिया था, तो तो वैसे बहुत सारे लोग थे, जिन्हें आश्चर्य हुआ और विस्मय भी कि इतने दिनों बाद संविधान दिवस मनाने की क्या प्रासंगिकता है. लेकिन जब से संविधान दिवस मनाया जाने लगा है, संविधान के विषय में सोच और जागृति की दिशा बदली है. विशेष रूप से युवाओं में संविधान को लेकर रुचि पैदा हुई है, विश्वास बढ़ा है. उन्होंने कहा कि यह किताब इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि इस किताब में संविधान पर प्रधानमंत्री के जो भी भाषण संकलित हैं, उनमें कोई भी संपादन नहीं किया गया है. कार्यक्रम के अंत में, पुस्तक के संयोजनकर्ता डॉ. प्रभात ओझा ने सभी अतिथियों और आगंतुकों के प्रति अभार व्यक्त किया.
पुखराज ,नई दिल्ली