मनोज मानव के अभिनय ने अमिट छाप छोड़ी
पटना: संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से बयार की नाट्य प्रस्तुति मनोज मानव द्वारा लिखित निर्देशित ‘उस धत्त में’का मंचन किया गया.
कालिदास रंगालय में नाटक ‘उस धत में ‘ में का मंचन पटना वासियों के लिए गम्भीर और विचारोत्तेजक नाटक रहा .जिसमें निर्देशक ने इतिहास की महत्वपूर्ण कड़ियों को जोड़ते हुए कई सवाल किया है जिनका जवाब सरलनहीं है लेकिन विचार के रूप लोगों के जेहन में हमेशा याद रहेगा .निर्देशक ने प्रायोगिक शिल्प के जरिये कई बिंदुओं पर दर्शकों का ध्यान खींचने में कामयाब दिखते हैं । इंसान और भगवान के बीच की कड़ी को तलाशने में इंसान खुद वैसा क्यों नहीं कर पाते जैसा भगवान ने सोच कर इंसान को बनाया, क्यों उन मूल्यों का अनुसरण नहीं कर पाते . हमारे लिए कितना आसान होता है उसे भगवान, खुदा या गॉड बना देना। भगवान इंसान बनाने का दावा करता है तो इंसान खुद भी वैसा क्यों नहीं बन सकता? बयार द्वारा प्रस्तुत नाटक ‘उस धत् में !’
भारतीय वैदिक संस्कृति और विभिन्न उपनिवेश द्वारा इसे खंडित करने की दास्ताँ ही नहीं बल्कि विदेशी आक्रांता द्वारा फैलाये गये साम्राज्यवाद की पड़ताल है। साम्राज्यवाद की आड़ में हमारा धर्म, संस्कृति पर योजनाबद्ध हमला और उसकी परिणती धर्मान्तरण भी इस नाटक की केन्द्र बिंदु . किस तरह एक साजिश के तहत हमारी सर्वसम्पन्न संस्कृति को बैकवर्ड कहकर हमारी संस्कृति और संसाधनों को ही परिष्कृत कर हमें बाजार में तब्दील कर दिया गया।
आज हमारी भारतीय वैदिक संस्कृति को राजनीति के केन्द्र में लाकर उसकी अच्छाईयों को भी धूमिल कर दिया गया है। कुछ आक्रामक, जंगली वहशी, लूट की संस्कृति के पोषकों द्वारा भारत के आविष्कार और इसके निर्माण का दावा कितना हास्यास्पद है।
निर्देशक ने गुलेरी जी ,ललित सिंह पोखरिया एवं राजीव नयन की कविताओं को भी नाट्य प्रस्तुति में बड़े ही रोचक तरीके से रखने की कोशिश की है।कट्टर होने की दिशा में लोग मनुष्य और मानवता को भूल गए हैं धर्म के नाम पर लूट की खुली छूट है दुनिया इसी में पिस रही है मैं ही महान हूँ इसी में सब आगे बढ़ रहे है ।ईश्वर को जीतने के अभियान पर । क्लेश उग्र और समय तीन पात्रों की बीच के सम्वाद में पूरे विश्व की ताजा हालातों पर धर्म के आतंक पर करारा प्रहार किया गया है । अनैतिक राजनीति को बढ़ावा देने वाले लोग ,राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के कारण लोगों की हत्याएं हो रही है संस्कृति से सब खत्म हो रहा है ।निर्देशक और लेखक मनोज मानव ने एक अभिनेता के तौर पर भी नाटक के केंद्र में थे जिन्होंने अपने से अभिनय से दर्शकों के अंत तक बाँधने में सफल रहे।
सह निर्देशक राजीव नयन,प्रकाश परिकल्पना एवं रूप सज्जा उपेंद्र कुमार और संगीत परिकल्पना जीशान साबिर की थी.वस्त्र विन्यास माधुरी सिंह,मंच निर्माण जिशान साबिर एवं सुनील शर्मा ,मंच प्रबंधन अजित गुज्जर एवं राजेश्वर पाण्डेय का था। प्रस्तुति में पार्श्व ध्वनि अनामिका कुमारी और मनोज मानव की थी। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर कलाकारों ने उन्हें श्रद्धांजलि भी दी ।
नाटक उस धत्त की में क्लेश की भूमिका में मनोज मानव ,उग्र की भूमिका में निशांत खरवार और समय की भूमिका में नवोदित कलाकार सूरज मेहता के अभिनय को दर्शकों की तालियां बटोरी। कुल मिलाकर इस वैचारिक प्रस्तुति में पटनावासियों को एक प्रायोगिक नाटक की प्रस्तुति लंबे समय तक याद रखी जाने वाली प्रस्तुति बन गई। नाटक के अंत में दर्शकों से सम्वाद भी किया गया जिसमें दर्शकों ने प्रस्तुति को सराहा।
रवींद्र भरती