मुख्यमंत्री खुद करें हस्तक्षेप -पीएफआई
प्रखंड में रिपोर्टिंग करने वाला धर्मेन्द्र हिम्मत वाला शख्स था
पत्थर माफियाओ के खिलाफ वह लगातार लिखता रहा
एक पत्रकार को अपना एक्रीडेशन के लिए करनी पड़ती है चिरौरी
अब तक पत्रकारों के परिजनों को क्यों नहीं मिला मुआवजा
पत्रकार संगठन प्रेस फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया(पीएफआई) के प्रदेश अध्यक्ष अमिताभ ओझा ने नीतीश सरकार और जिला प्रशासन को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि बिहार में पिछले सात महीनो में दो पत्रकारों की हत्या हुई है जबकि इस दौरान पत्रकारों को धमकी और हमले की छह घटनाएं हुई है. सीवान के पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या के मामले में सीबीआई जांच चल रही है लेकिन राज्य सरकार के स्तर से पीड़ित पत्रकार के परिजनों को कोई मुआवजा नहीं दिया गया.राज्य सरकार की यह कैसी नीति है जो शराब पीकर मरता है उसे चार लाख देते है और जो काम करते मरता है उसे कुछ नहीं.पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या के बाद सरकार के तरफ से कहा गया था कि पत्रकारों के लिए सरकार ने पांच लाख की बीमा और पेंशन की स्कीम चालू कर रखा है. लेकिन नीतीश कुमार जी आप खुद सुचना जनसंपर्क विभाग के मंत्री है जरा पता कर लीजिये एक पत्रकार को अपना एक्रीडेशन कराने के लिए जिले में डीएम और डीपीआरओ की चिरौरी करनी पड़ती है और धर्मेंद्र जैसे प्रखंड के पत्रकारों को तो शायद एक्रीडेशन हो भी नहीं पाता.रही बात पेंशन की तो जिस तरह की नियमावली आपके विभाग ने तैयार की है शायद ही किसी पत्रकार को इस सुविधा का लाभ भी मिल सके. हालाँकि इसमें सारा दोष आपका नहीं है इसमें दोष आपके विभाग के साथ साथ हमारे कई पत्रकार बिरादरी के लोगो का भी है जो आपके इर्द गिर्द चेहरा चमकाने के लिए रहते है.यही लोग एक्रीडेशन कमिटी में होते है यही लोग विधान सभा की कमिटी में होते है और यही लोग पेंशन कमिटी में होते है. क्या बिहार में और कोई पत्रकार नहीं है खैर जिन्हें ये सब करके अपना चेहरा चमकाना है ऐसा करते रहे लेकिन ऐसे लोगो से भी निवेदन है.
अपने उन भाइयों की आवाज को ऐसे नहीं कुचलिए..जो आपको सर और भैया कहते कहते नहीं थकते कम से कम उन्हें उनका हक लेने से तो नहीं रोकिये…क्योंकि आप लोग के कारण ही ऐसे पत्रकरों का एक्रीडेशन नहीं हो पाता उनका बीमा नहीं हो पाता है. अब बात मारे गए पत्रकार धर्मेंद्र के बारे में. धर्मेंद्र का पत्रकारिता कैरियर बहुत दिनों का नहीं है लेकिन एक प्रखंड में रिपोर्टिंग करने वाला वह वह हिम्मत वाला शख्स था.जहां उसका घर है वहां शुरू से ही पत्थर माफियाओ का वर्चस्व रहा है.लेकिन इसके बावजूद पत्थर माफियाओ के खिलाफ वह लिखता रहा था.अगर ऐसे पत्रकार की हत्या होती है यह निश्चित तौर पर सुशासन की सरकार पर सवाल उठाती है.धर्मेंद्र की हत्या पर भी सवाल उठेंगे हर बार की तरह व्यक्तिगत रंजिश बताई जायेगी लेकिन यह न भूले की राजदेव रंजन हत्याकांड में भी ऐसे ही सवाल उठाये गए थे लेकिन सामने क्या आया यह सबको पता है इसलिए सीएम नीतीश कुमार से हम मांग करते हैं कि इस मामले में वे खुद ही हस्तक्षेप करें क्योंकि गृह विभाग भी आपके पास है और सुचना जनसंपर्क विभाग भी.