खबर का इम्पैक्ट

By Amit Verma Mar 18, 2017

पटना नाउ की खबर का इम्पैक्ट

…और कलयुग में फँस गया क़ानूनी पेंच में “कर्ण”




बाल कल्याण समिति ने दिया आश्वासन

15-20 दिन तक करना होगा इन्तजार, फिर जारी होगा क़ानूनी फरमान

“राधा” के पास जाने की “कर्ण” राह में अभी हैं काँटे

पटना नाउ पर छपी खबर ‘कलयुग की “राधा” से छीन गया उसका “कर्ण” ‘ देख दुखी हुयी बाल कल्याण समिति, भोजपुर की अध्यक्ष डॉ सुनीता सिंह ने फ़ोन कर पटना नाउ को बुलाया. कहा कि 15 दिनों के प्रॉसेस के बाद होगा हाई कमान से फैसला कि कलयुग की “राधा” को उसका “कर्ण” मिलेगा या नहीं .

मीडिया में आयी खबरों से नाराज चल रही डॉ सुनीता ने कहा कि मीडिया ने निगेटिव खबर चला कर मेरे वर्षों के कार्य के छवि को खराब कर दिया है. मैंने किसी के बच्चे को छीना नहीं है. किसी भी बच्चे को जब लावारिस हाल में मिलने की खबर पुलिस को मिलती है तो पुलिस बाल कल्याण समिति को सुपुर्द करती है.बाल कल्याण समिति के सरकार के कई विंग काम करते हैं जो सुरक्षा से लेकर शिक्षा और परवरिश के हर पहलु पर कड़ी निगरानी रखते हैं. बच्चा कानून के जेजे एक्ट के घेरे में रहता है. जेजे एक्ट 2010 में बना था और 2015 में उसपर संशोधन भी हुए थे.

पटना नाउ ने बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष डॉ सुनीता सिंह से बात की, जिसमें कई बातों पर चर्चा हुई.

ख़ास रिपोर्ट

क्या सोचा है समिति ने बच्चे के बारे में?

डॉ सुनीता ने बताया कि उन्हें 28 दिसम्बर को पता चला कि कोई शिशु बधार में बरामद हुआ है. शाहपुर थाने ने इसके बारे में 29 दिसम्बर को पत्र दिया. बच्चे की तहकीकात शुरू हुई तो पता चला कि बच्चे के पालने वाले भाग गए. किसी भी तरह के बच्चों की सूचना हमारे लिए उसे सेफ जोन में रखना है. क्योंकि कई लोग बच्चों की तश्करी भी करते हैं. अतः बिना विभाग द्वारा लिखित आदेश के बिना कोई भी बच्चा नहीं रख सकता है. 78 दिनों बाद वो दंपति मुमताज अंसारी और हसीना गाँव लौटी जिसे चौकीदार की सूचना पर पकड़ कर आरा महिला थाना लाया गया. उन्होंने मुखिया द्वारा बच्चे को पालने के दिए कागज़ को दिखाया लेकिन चुकि मुखिया ने थाने को इसकी सूचना दिए बगैर अपने पैड पर लिखा था इसलिए वो अमान्य है.

यहाँ दो सवाल उठता है कि 78 दिनों तक फरार रहे दंपति की पुलिस ने कुर्की-जब्ती क्यों नहीं की? साथ ही मुखिया ने अगर गलत किया है तो फिर उसे गिरफ्तार य्या उसपर FIR दर्ज क्यों नहीं किया गया?

इन सवालों पर डॉ सुनीता ने बताया कि दंपतियों ने कोई ऐसा क्राइम नहीं किया था जिसकी कुर्की-जब्ती हो. हाँ मुखिया जरूर दोषी हैं और इनपर कार्रवाई होनी चाहिए थी. लेकिन साथ ही यह भी बताती हैं कि मुखिया ने जेजे एक्ट नहीं जानने की बात मानते हुए अपनी गलती मान ली है और अफ़सोस जाहिर कर चुके हैं.

आर्थिक रूप से मजबूत लोगों को ही दिया जाता है बच्चा?

बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष बताती हैं कि जिस वक्त बच्चा उन्हें महिला थाने में मिला उसके कपड़े दस्त-मूत्र से गीले थे जिसे खुद उन्होंने साफ़ कर अपनी आँचल में बच्चे को समेटा. उन्होंने साफ़ शब्दो में कहा कि बच्चे उन लोगों को ही सरकार देती है जो आर्थिक रूप से मजबूत होते है. आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को किसी भी हाल में बच्चे को नहीं दिया जाता है. चाहे वो दम्पति निःसंतान ही क्यों न हो और प्रतिदिन मजदूरी करने वाला ही क्यों न हो. सरकार हर बच्चों को बेहतर भविष्य और स्वास्थ्य के साथ पढ़ाई देने के लिए उन्हें अपने पास रखती है. साथ ही ऐसे बच्चे गलत हाथों में जाने से बचते हैं.

 

क्या आर्थिक रूप से मजबूत या विदेशी नागरिक नहीं बेंचते गोद लिए बच्चे को?

इस सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि 5 साल तक समिति उन दंपतियों का हमेशा हाल-चाल लेती है जिन्हें प्रॉसेस के बाद बच्चा सुपुर्द किया जाता है. पाँच साल बाद भी समिति बच्चों के परिजनों की समय-समय पर मॉनिटरिंग करती है.

 

आगे क्या करेगी बाल कल्याण समिति?

शिशु फ़िलहाल पटना अपना घर में है. उसके असली माता-पिता को ढूंढने के लिए अखबार में विज्ञापन निकाला जायेगा. सामान्यतः ऐसे खबरों को पढ़ने के बाद माता-पिता सामने आ जाते हैं. अगर 15 दिनों तक किसी ने क्लेम नहीं किया तो फिर उसे बेहतर जिंदगी के लिए अपना घर रखा जायेगा या फिर जो निदेशक जो तय करेंगे वो किया जायेगा.

 

मतलब “कर्ण” की राह में अभी काँटे है “राधा” तक जाने के लिए?

इस सवाल पर मुस्कुराते हुए डॉ सुनीता बोल पड़ी- आप क्या चाहते हैं? हमारा जवाब था हम तो चाहते हैं कि जिसने अबतक उसे सीने से लगा ममता की छाँव दिया बच्चा उसके पास चला जाये. मुस्कुराहट भरे एक विश्वास के साथ उन्होंने कहा कि मैं भी एक माँ हूँ और मैं भी यही चाहती हूँ बच्चा उसी परिवार को मिले. मेरी बच्चे की पालनहार ‘हसीना’ से उस बच्चे के लिए सचमुच संवेदना है, “राधा” बन गयी है उस शिशु के लिए. मैंने भी अपना बच्चा खोया है तो बच्चे का दूर होना क्या होता है अच्छी तरह समझती हूँ, पर उस परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है जो उसके राह का एक रोड़ा है. आपलोग पटना ऑफिस एक बार बात कर लीजिए. मैं कोशिश कर सकती हूँ पर वादा नहीं….

इन्ही बातों के साथ विराम लग गया बाधार में मिले शिशु के उसकी माँ तक पहुंचने का. लेकिन उम्मीद है, सरकार भारत जैसे विशाल प्रेम के देश में इतनी सख्त नहीं होगी, कि माँ-बेटे का प्यार ही छीन जाए. फिलहाल कर्ण को 15-20 दिनों तक क़ानूनी प्रक्रिया के दायरे में रहना पड़ेगा. क्योंकि कानून से कोई बड़ा नहीं.

 

आरा से ओपी पांडे

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