फिल्म फेस्ट के तीसरे दिन की शुरूआत अक्षय कुमार स्टारर फिल्म ‘एयरलिफ्ट’ से
थियेटर अभिनेता का माध्यम है और सिनेमा डायरेक्टर का.
खराब फिल्में और गानें भी हमें खराब करते हैं
फिल्म फेस्टिवल में थियेटर और सिनेमा पर आयोजित परिचर्चा में भाग लेते हुए उन्होंने कहा कि थियेटर जीवन है. यह कलाकार तैयार करता है. उठना, बोलना, चलना, शब्दों का इस्तेमाल और वाणी के तार को कसने की कला सिखाई जाती है. थियेटर में कला का प्रदर्शन प्रत्यक्ष होता है. जिसका रसास्वादन दर्शक तुरंत करते हैं. मगर सिनेमा तमसो मां ज्योर्तिगमय की तरह अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है. यह तकनीकी आस्पेक्ट है. यहां हर चीज कैमरे की नजर से दिखती है. इसलिए थियेटर अभिनेता का माध्यम है और सिनेमा डायरेक्टर का.चर्चा के दौरान उन्होंने आज दोनों विधाओं में गिरावट आई है. इसका मुख्य कारण है साहित्य से कटाव. इसलिए साल में दो – तीन फिल्में ही अच्छी् बनती हैं. आज 100 करोड़ की क्लब में बनने वाली फिल्में भी अच्छी नहीं होती हैं. अगर 100 करोड़ क्लब वाली फिल्में बनाने वालों में हिम्मत है तो वे अच्छी फिल्में बनाएं. खाना की तरह देखना और सुनना भी आहार है. जैसे खराब खाने से हम बीमार हो जाते हैं, वैसे खराब फिल्में और गानें भी हमें खराब करते हैं. उन्होंने कहा कि आज फिल्मों में मांसल संस्कृति ने जन्म लिया, जो कतई सही नहीं है. इसलिए अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने की विधा को समझना होगा. तभी ऐसे फिल्म फेस्टिवल का उदेश्य पूरा होगा.
वहीं, मशहूर अभिनेता और रंगकर्मी संजय मिश्रा ने थियेटर और सिनेमा विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि थियेटर में कहानी शुरूआत, मध्य और एंड पर जा कर खत्म हो जाती है, मगर सिनेमा में ऐसा नहीं होता है. यह दोनों दो अलग – अलग माध्यम हैं. बस सिनेमा में एडीटर और कैमरा मैन आ जाता है. लड़का, लड़की, प्रेम कहानी और ड्रामे से इतर अब अच्छी फिल्में भी बनने लगी हैं. मगर थियेटर शुरू से ही संस्कृति और कल्चर को दिखाती है. उन्होंने कहा कि वे अभिनेता हैं और उन्हें कला ने आकर्षित करती है. वो संगीत, थियेटर, सिनेमा, नृत्य आदि कुछ भी हो. वहीं, अभिनेता विनित कुमार ने कहा कि आकर्षण का मेरे जीवन में कोई महत्व नहीं है. आज के दौर में सबकुछ फास्ट है, मगर उसके मूल चीज को दरकिनार कर कुछ भी सही नहीं हो सकता है. अभिनय में मैं अवार्ड या किसी अन्य आकर्षण की वजह से नहीं आया. मुझे खुद से जीतना है इसलिए आया. इसलिए जब मुझे कुछ भी समझ में नहीं आता है तो पीछे मुड़कर शुरू से स्टार्ट करता हूं. परिचर्चा से पहले रीजेंट सिनेमा के व्यवस्थापक पूनम सिन्हा और सुमन सिन्हा ने फूल और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया.
इससे पहले पटना फिल्म फेस्टिवल के तीसरे दिन की शुरूआत अक्षय कुमार स्टारर फिल्म एयरलिफ्ट से हुई. उसके बाद प्रतिस्पर्धा की फिल्म ले लोटा और मराठी फिल्म सैराट दिखाई गई. इसके बाद आयोजित संवाददाता सम्मेलन में अभिनेता संजय मिश्रा और अखिलेंद्र मिश्रा ने कहा कि पटना फिल्म फेस्टिवल अभी बहुत नया है. लेकिन यह एक नए पौधे की तरह है, जब पेड़ बनेगा तब इसके अच्छे परिणाम आएंगे. इसमें और भी मजा तब आएगा, जब अन्य फिल्मों के साथ बिहार के लोगों के द्वारा बनाई गईं फिल्मों का भी प्रदर्शन होगा. कहा जाएगा कि ये फिल्म पटना फेस्टिवल से आई है, जैसे कि हम कहते हैं टोरंटो, कांस के बारे में. तब पटना फिल्म फेस्टिवल का अलग रूतबा होगा. उन्होंने कहा कि राजनीति और सिनेमा में समय लगता है. अगर बीज हम लगा रहे हैं, तो फसल बच्चे काटेंगे. उन्होंने कहा कि जिन – जिन क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में आज अच्छा कर रही है, वहां उनकी सरकार उनको सहयोग करती है. अब बिहार में भी ये प्रयास शुरू हुआ है, जो काफी सराहनीय है.
अच्छी फिल्मों के लिए हमें सरकार की भी मदद चाहिए- निरहुआ
पटना फिल्म फेस्टिवल 2016 में रविंद्र भवन में क्षेत्रीय और शॉर्ट फिल्मों के प्रदर्शन के दौरान भोजपुरी सुपर स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ, अभिनेत्री आम्रपाली दूबे, निर्देशक असलम शेख और मैथिली फिल्म मेकर मुरलीधर ने ओपेन डिस्कशन सत्र में लोगों के सवालों के जवाब दिए. अभिनेता दिनेश लाल यादव निरहुआ ने भोजुपरी में अश्लीलता पर कहा कि ये सच है कि भोजपुरी फिल्मों में कुछ सी ग्रेड की फिल्में बनी, मगर ऐसा नहीं है कि यहां सिर्फ गंदी फिल्में ही बनती है. अच्छी फिल्मों के लिए हमें सरकार की भी मदद चाहिए और मीडिया की भी. मीडिया ने तो हमेशा अश्लीलता को महिमामंडित किया, लेकिन जब अच्छी फिल्में बनीं तब सराहा भी नहीं. इससे अच्छी फिल्में बनाने वाले मेकरों का मोराल भी गिरता है.
निरहुआ ने पटना फिल्म फेस्टिवल को सरकार की अच्छी पहल बताते हुए कहा कि सिर्फ कुछ ना समझ लोगों ने ऐसी फिल्में बनाई, मगर अब वे औंधे मुंह गिर गए. अब भोजपुरी में भी अच्छी फिल्में बनने लगी हैं. इसलिए सिर्फ अश्लीलता का आरोप लगाने से बेहतर होगा, अच्छी फिल्मो को सराहें भी. उन्होंने कहा कि आज सरकार का भी दायित्व बनता है कि महाराष्ट्र, साउथ की तरह अपने प्रांत की भाषा की फिल्मों को मल्टीप्लेक्स और सिनेमा हॉल में अनिवार्य करे. वहीं, निर्देशक असलम शेख ने कहा कि इंस्परेशन सब लेते हैं, जो गलत नहीं है. सिनेमा इंडस्ट्री फॉर्मूलेे को फॉलो करता है, इसी क्रम में कई बार लगता है फिल्में कॉपी की गई है. मगर हम इस्पायर होते हैं और अपने हिसाब से फिल्म बनाते हैं. उन्होंने कहा कि आज हिंदी फिल्म गैंगस ऑफ वासेपुर बनी, वैसी फिल्में हम भोजपुरी में बनाएं तो अश्लीलता का सवाल उठने लगता है. जनता बुरी फिल्मों को नकार दे, अश्लीलता खुद खत्म हो जाएगी.
चर्चा के दौरान अभिनेत्री आम्रपाली दूबे अपने करियर के बोर में चर्चा करते कहा कि भोजपुरी सिनेमा से लगाव है. भोजपुरी में बदलते समय में खुद को भी बदल रही है. आज यहां भी अच्छी फिल्में बनने लगी हैं. इस इंडस्ट्री में भी अभिनेत्री आज एक से एक अच्छी फिल्में कर रही हैं. इसलिए सिर्फ शिकायत करने से बेहतर ये है कि अच्छी फिल्मों को सराहा जाए. अच्छे अभिनय की तारीफ हो. मैथिली फिल्म मेकर मुरलीधर ने कहा कि भोजपुरी फिल्मों के भार के नीचे बिहार की अन्य भाषा की फिल्में खास कर मैथिलि दब गई सी लगती है. कथा, पटकथा, संगीत, निर्देशन और अच्छे अभिनय के बावजूद भी जब रिलीज के लिए हॉल नहीं मिलता है तब निरासाा होती है. इसलिए सरकार को राज्य में फिल्मों के विकास के लिए यहां के फिल्म मेकरों की मदद करनी होगी, तभी हमारे यहां भी अच्छी फिल्में बन पाएगी.
फिल्म फेस्टिवल के तीसरे दिन आज दूसरे स्क्रीन पर निरहुआ हिंदुस्तानी, परिवार और सस्ता जिंदगी महंगा सिंदूर का प्रदर्शन हुआ इसके अलावा तीसरे स्क्रीन पर परशॉर्ट एवं डॉक्यमेंट्री फिल्मों भी दिखाई गई. अंत में सभी अतिथियों को बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार ने शॉल और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया. इस दौरान बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम की विशेष कार्य पदाधिकारी शांति व्रत, अभिनेता विनीत कुमार, फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम, फिल्म फेस्टिवल के संयोजक कुमार रविकांत, मीडिया प्रभारी रंजन सिन्हा मौजूद रहे.