सरकार के उदासीनतापूर्ण रवैये के कारण दो साल से बंद
फिल्म और आर्ट फेस्टिवल तो होते है नहीं होता है तो लिटरेचर फेस्टिवल
राजधानी के साहित्यकारों को इन्जार रहता है की उनके लिए भी कुछ ऐसे कार्यक्रम हो जिससे पटना की भी एक राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान हो साथ ही बाहर के लोग भी जान सके की बिहार में नया क्या कुछ लिखा जा रहा है. कुछ विशिष्ट लोगों से उनका आमना सामना हो जिसपर वे अपनी बातों को रख सकें. दो साल तक आयोजित हुआ था पटना लिटरेचर फेस्टिवल उसके बाद सरकार के उदासीनतापूर्ण रवैये के कारण बंद हो गया. साहित्यकारों को आज भी इन्तजार रहता है की राज्य सरकार साहित्य के प्रति अपना प्रेम दिखाए और एक बड़े पैमाने पर पटना लिटरेचर फेस्टिवल की शुरुआत हो सके। जिसमें देश के नामी गिरामी साहित्यकारों के साथ बिहार के साहित्य से जुड़े लोगों के साथ पाठक वर्ग को भी एक मंच मिले जिससे देश दुनिया में लिखे जा रहे साहित्य पर चर्चा हो सके. बिहार के कुछ साहित्यकार ऐसे आयोजन कराने की बात करते है तो कुछ ये कह कर टाल देते हैं की इससे कुछ होने वाला नहीं है जब तक पूरे प्लानिंग के साथ कार्यक्रम का आयोजन ना किया जाए.
मैथिली और हिंदी में समान अधिकार से लिखने वाली,पद्मश्री एवं अनेक सम्मानों से सम्मानित, वरिष्ठ कथाकार एवं उपन्यासकार उषा किरण खान का मानना है की पुरे बिहार को अब भी इन्तजार है कि कब हो लिटरेचर फेस्टिवल. पिछले आयोजन में मैं आयोजन समिति में थी. उसके बाद हमलोगों ने सरकार से दुबारा कराने की योजना रखी पर सरकार के उदासीनता के कारण उसका आयोजन नहीं हो सका. नवरस लिटरेचर फॉउन्डेशन भी इसमें बढ़ चढ़ कर सहयोग करता था पर जब तक सरकार की ओर से जब तक प्राथमिकता नहीं दी जाएगी तब तक आयोजन करना संभव नहीं है.एक बड़ा आयोजन भी विकास के रथ चक्र की गति में अपनी बड़ी भूमिका अदा करता है .
साहित्यकार और सम्पादक शिवनारायण का मानना है की हम बड़े फेस्टिवलों की नक़ल ना करें. इसके लिए एक सुविराचित योजना बननी चाहिए जिससे आयोजन में लोगों का उत्साह बना रहे. साहित्य के विकास में कुछ काम हुआ है पर कुछ ऐसे आयोजन हो जिसमें जिसमे सरकार का भी विज़न दिखाई दे की सरकार साहित्य को लेकर कि वो और उनका कुनबा कितना गंभीर है .साहित्य के विकास के लिए महज अकादमी खोल देने से काम नहीं चला जाता . मेरे हिसाब से तो ज्ञान का एक ऐसा आयोजन हो जिसे दुनिया लाइव देख सके सुन सके .सभी वर्ग के लेखक पाठक आएं .इस आयोजन में वैसी रचनाओं पर भी चर्चा हो जो आज तक सामने नहीं आ पाई हों .इससे बिहार की उर्जा दिखेगी.
साहित्यकार कर्मेंदु शिशिर का मानना है कि लिटरेचर फेस्टिवल को जनता से जोड़ना होगा तभी इसकी उपयोगिता साहित्य के हित में है नहीं तो बाजार के चकाचौंध से साहित्य को क्या लाभ. बड़े सेलिब्रिटी को आमंत्रित कर लेने से साहित्य की गंभीरता और श्रेष्ठता ख़त्म हो जाती है. विभिन्न विधाओं के श्रेष्ठ लोगों को बुलाकर सभी को बराबर सम्मान देना होगा तभी ऐसा आयोजन सफल हो पायेगा. सम्मान दीजिए और सम्मान के साथ कार्यक्रम का आयोजन हो तो बिहार के बारे में दुर तक सन्देश जाएगा.
युवा साहित्यकार अरुण नारायण लिटरेचर फेस्टिवल के औचित्य पर सवाल उठाते हुये कहते हैं की जब तक बिहारी अस्मिता और बिहार के लोगों को नहीं रखा जाएगा तब तक इसके आयोजन का कोई मतलब नहीं है. उन्होंने कहा की भोजपुरी,मैथिली,मगही और बज्जिका जैसी भाषाओं को भी लिटरेचर फेस्टिवल में शामिल किया जाना चाहिए तभी इसमें होने वाले खर्च का सही इस्तेमाल हो पाएगा. उनका कहना है की सरकार साहित्य पुरस्कारों को टालते रही है उसे क्या फिक्र है कि फेस्टिवल हो या ना हो.
पटना लिटरेचर फेस्टिवल को लेकर युवा साहित्यकारों में खासा जोश और उमंग रहता है उन्हें श्रेष्ठ साहित्यकारों से रूबरू होने का अवसर मिलता है. अंतरसंवाद होता है. ऐसे साहित्यकार जो बाहर रहते हैं उन्हें इस कार्यक्रम के आयोजन का इन्तजार रहता है. राज्य के साहित्य से जुड़े लोगों को इन्तजार है की कब हो पटना में बिहार में लिटरेचर फेस्टिवल जिसे दुनिया याद कर सके.
रवीन्द्र भारती