बिहार में कोचिंग संचालकों की मौज है. जब जहां जैसे चाहे खोल लो कोचिंग. चाहे आपके पास क्वालिफाइड शिक्षक हों या नहीं. चाहे आपके पास मूलभूत सुविधाएं हों या नहीं. इससे कोई मतलब नहीं. ये कोचिंग ना तो किसी रजिस्ट्रेशन से मतलब रखते हैं और ना ही किसी नियम-कानून से इनका कोई लेना-देना होता है.
ये कोचिंग संस्थान ना सिर्फ निबंधन में मनमानी कर रहे हैं बल्कि राजधानी की सड़कों पर इनका दबदबा दिखता है. कानून को तक पर रखकर कोचिंग वाले अपना बैनर और अवैध होर्डिंग सड़कों पर लगा रहे हैं. जिनसे आए दिन दुर्घटनाएं हो रही हैं. सड़कों के बीचोबीच एक पोल से दूसरे पोल या फिर सड़क के डिवाइडर पर लगे अवैध फ्लैक्स और बैनर से हर रोज बाइक सवार टकराते हैं और सड़कों पर गिरते हैं.
कई बार तेज हवा के साथ ये फ्लैक्स सड़क पर वाहनों पर गिरते हैं या पैदल यात्रियों पर गिरते हैं जिनसे दुर्घटना होने की आशंका बनी रहती है. पटना नगर निगम गाहे-बगाहे कार्रवाई करता भी है लेकिन ये कोचिंग वाले फिर से वहीं फ्लैक्स और बैनर टांग देते हैं.
कंकड़बाग के राजेश कुमार, जो एक बार ऐसे ही बैनर के कारण चोटिल हो चुके हैं, ने कहा कि जबतक ऐसे स्कूल और कोचिंग संचालकों के खिलाफ बैनर देखकर कार्रवाई नहीं होगी, ये नहीं सुधरेंगे.
खासकर पटना में ऐसे कोचिंग्स की भरमार है. जानकारी के मुताबिक पटना में 978 कोचिंग संस्थानों ने जिला मुख्यालय में निबंधन के लिए आवेदन दिया था, जिसमें 111 कोचिंग संस्थानों का निबंधन रद्द कर किया गया था और 266 कोचिंग संस्थानों का ही निबंधन हो पाया था. अब तक 581 कोचिंग संस्थानों ने निबंधन की प्रक्रिया पूरी नहीं की और इन पर कोई कार्रवाई भी नहीं हुई. ऐसे में कोचिंग संस्थानों की मनमानी आज भी जारी है.
आपको बता दें कि 7 साल पहले कोचिंग को लेकर मचे जबरदस्त बवाल के बाद बिहार में कोचिंग एक्ट बना था, लेकिन ताजा जानकारी के मुताबिक ये कानून महज एक मजाक बनकर रह गया है. दरअसल वर्ष 2009 में कोचिंग की मनमानी के खिलाफ छात्रों का आक्रोश फूटा था. पटना में अभूतपूर्व हंगामा हुआ था जिसमें एक छात्र की मौत भी हो गई थी. तत्कालीन NDA सरकार ने आनन-फानन में कोचिंग एक्ट 2010 बनाया, जिसमें हर कोचिंग संस्थान को सरकार के जिला मुख्यालय में अपना निबंधन कराना है. लेकिन अब तक इस कानून का पालन नहीं हो पाया है.