पंगत की पंगत में बैठ अतिथियों ने खाया बिहारी व्यंजन

बिहारी व्यंजनो की सजी थाली, GTRI ने की शानदार पहल

पटना,28 मई. बात जब खाने की आती है तो भारत के हर प्रदेशों के व्यंजन आंखों के सामने घूमने लगते है. फिर चाहे वह कोई चटपटा व्यंजन हो या कोई मीठे स्वाद का व्यंजन. मजेदार बात यह है कि हर प्रदेश ने अपने यहाँ बनने वाले कुछ खास पकवानों को एक साथ अतिथियों के लिए एक थाली में सजाया है जिसे राजस्थानी थाली, महाराष्ट्रीयन थाली,पंजाबी थाली जैसे कई नामों से हम जानते हैं. विशेष प्रदेशों में बनने वाली इन खास व्यंजनों की थालियों में भरे पकवानों ने लोगों का इतना दिल इतना जीता कि महानगरों तक इनकी मांग बढ़ गयी और लोकल व्यंजनों की मांग महानगरों तक बढ़ी और इन थालियों ने छोटे रेस्तरां से लेकर फाइव स्टार होटल तक अपनी जगह बना ली. आज आलम यह है कि आप देश मे चाहे कहीं भी चलें जाएं किसी प्रदेश के ये खास बनने वाले व्यंजन आपको हर जगह आसानी से मिल ही जाता है, लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि इन थालियों की लंबी कतार से अगर कुछ गायब है तो वह है बिहारी थाली. जी हाँ चौंकिये मत! बिहार में खाने की लंबी वेराइटी के बावजूद भी बिहार की अपनी कोई थाली नही बन पाई है. हाँ अब ये बात अलग है कि बिहार के लिट्टी-चोखे और चम्पारण हांडी जैसे व्यंजनों ने अपनी पहचान जरूर बना रखी है. अब सवाल यह उठता है कि बिहार की अपनी थाली क्यों नही है और अगर है तो दुनिया के सामने अबतक आई क्यों नही?




इसी सवाल ने बिहार और बिहारियों को एक मंच पर लाने वाले संस्थान GTRI(ग्रैंड ट्रंक रोड इनिशिएटिव) के अंदर एक हलचल पैदा किया और फिर बिहारियों के साथ बिहारी खानों के कई रंगों को एक थाली में परोसने के लिए देश-विदेश तक अपने हाथों के स्वाद से रु-ब-रु कराने वाले शेफ मनीष मल्होत्रा,जेपी सिंह, क्षितिज शेखर और निशांत चौबे सहित दिल्ली फ़ूड वॉक्स के संस्थापक अनुभव सपरा जैसे कई बिहारी शख्सियतों की जुटान हुई पटना के एक स्थानीय होटल में जहाँ तीन चरणों में बिहार के खान-पान की बात चली.

अलग-अलग जगहों से आये सभी बिहारी शख्सियतों ने, जो इस कार्यक्रम में बतौर अतिथि आये हुए थे उन्होंने बिहार के विभिन्न जिलों में बनने वाले स्थानीय व्यंजनों चाहे वह लिट्टी-चोखा,घुघुनी,दही बड़ा, ठेकुआ, कचवनिया,ढकनेसर, छांछ,नोनी का साग, कोहड़ा के पत्ते की सब्जी, गट्टे की सब्जी, बजका,फुलौरी,अमझोरा,मछली,चंपारण हांडी, तिसौरी, दनौरी,सुखौता और बड़ी जैसे तमाम नामों पर चर्चा हुई. इतने नामों के इस चर्चा में सवाल यह उठा कि इन सारे व्यंजनो में से किसे बिहारी थाली में शामिल किया जाय!! इसपर मंथन के बाद तय हुआ कि बिहारी थाली अलग-अलग मौसम में मिलने वाले प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है इसलिए थाली की कई वेराइटी अलग-अलग सीजन में तैयार की जा सकती है जैसे महानगरों में त्योहारों के दौरान आजकल नौरात्रा थाली उपवास रखने वालों के लिए आसानी से उपलब्ध हो जाता है.

पंगत नाम से आयोजित इस कार्यक्रम में चर्चा के बात आये सभी अतिथियों को पंगत में बैठा कर लगभग दो दर्जन बिहारी व्यंजनो को परोसा भी गया. लुप्त होती बिहार की पंगत में बैठकर खाने की परंपरा को देख सभी लोग पुराने समय की अपनी यादों में खो गए यहाँ तक कि होटल के कर्मचारियों के चेहरे पर भी मुस्कुराते हुए यह भाव देखा जा सकता था कि गाँव की उस पंगत को उन्हें थ्री स्टार होटल में देखकर खुशी हो रही थी कि परम्परा को जिंदा रखने वाले लोग जिंदा हैं. होटल की ओर से बिहारी व्यंजनो के एक स्वरूप का डेमो के तौर पर प्रदर्शन भी किया गया जिसमें लगभग 40 व्यंजनो को शामिल किया गया. GTRI द्वारा आयोजित पंगत कार्यक्रम के क्यूरेटर अदिति नन्दन ने बताया कि हमारा मुख्य उद्देश्य बिहार के व्यंजनों को एक थाली के रूप दुनिया के सामने लाना उद्देश्य है ताकि खान-पान में भी बिहार के टेस्ट को दुनिया जान सके. उन्होंने कहा कि हमारा इरादा युवा पीढ़ी को हमारी समृद्ध खाद्य परंपरा से अवगत कराना और तेज़ी से लुप्त होती जा रही अपनी बहुमूल्य विरासत को संरक्षित करना भी है. इस अवसर पर GTRI के देवेंद्र सिंह, राहुल कुमार, वैशाली समेत कई प्रतिष्ठित लोग उपस्थित थे.

पटना से ओ पी पांडेय की रिपोर्ट

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