हाल रात्रि प्रहरियों के वेतन का
हाय रे वेतन ! कछुए की चाल से भी धीमी तेरी रफ्तार क्यों!
आरा,11 सितंबर. डिजिटल जमाने में सबकुछ डिजिटल यानि कि ऑनलाइन हो रहा है लेकिन अभी भी बहुत से काम ऐसे हैं जिनका डिजिटलीकरण अभी तक या तो हो नही पाया है या विभाग की करने की मंशा नही है. उनमें से एक है स्कूलों में अपने जान को जोखिम में डाल सेवा देने वाले रात्रि प्रहरियों का. बुधवार को हाई स्कूल रात्रि प्रहरी संघ ने वेतन को लेकर जिला मुख्यालयों पर अलग-अलग जगह धरना दिया. रात्रि प्रहरियों के अनुसार उनका वेतन का बकाया 10 से 15 महीने तक रहता है. रात्रि प्रहरियों का वेतन ऊँट के मुँह में जीरे की तरह मात्र ₹-5000 ही है लेकिन वह भी उन्हें समय से मयस्सर नही होता है.
वेतन अगर आ भी जाये तो भी समय से नहीं मिलता है. डीओ ऑफिस से इन तक वेतन पहुँचने में एक माह लग जाता है. रात्रि प्रहरियों का कार्य भी कठिन और जोखिम भरा है. बीते कई सालों में स्कूल से चोरी की घटनाएं और रात्रि प्रहरियों पर हमले भी हुए हैं. इतना कुछ जोखिम के बात भी इन प्रहरियों की सिर्फ एक ही मांग है कि तय वेतन की राशि समय पर इन्हें ऑन लाइन के मध्यम सरकार कर दे. वे अपने न्यूनतम मजदूरी की मांग करते हैं.
अपने वेतन को डिजिटल कराने की मांग को ले इन्होंने एक दिवसीय धरना दिया जिसमें अध्यक्ष गजेद्र कुमार, सचिव कमलेश कुमार, कोषाध्यक्ष राकेश कुमार, जयनाथ राम, हरेंद्र कुमार, रवि कुमार, रमाकांत सिंह, प्रताप कुमार, चपू कुमार, जनार्दन राय आदि थे. मांग हो भी क्यों न डिजिटल जमाने में डिजिटल नही तो और क्या चलेगा ? देखना होगा इनकी मांगों को विभाग और सरकार कबतक संज्ञान में लेती है.
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