कोविड-19 सर्वव्यापी महामारी ने संपूर्ण विश्व के व्यक्तियों का सामान्य जीवन एवं रोजी-रोटी में व्यवधान उत्पन्न कर उनका जीवन तहस-नहस कर दिया है. ओडिशा भी इस सर्वव्यापी महामारी से बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. इस आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए सरकार के सहायक बनने में बहुत से संगठनों एवं व्यक्तियों ने पहल की है. कलिंगा इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी, भुवनेश्वर एवं सहयोगी संस्थान कलिंगा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, इन संस्थाओं ने संस्थापक प्रोफेसर अच्युत सामंथा के नेतृत्व में इस महामारी के प्रकोप से बचाव हेतु सिलसिलेवार पहल की है एवं कोरोना वायरस के विरुद्ध ओडिशा इस संग्राम में आगे आया है. केआईआईटी एवं केआईएसएस ने राज्य की स्वास्थ्य सतर्कता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, तथा वंचित एवं उपेक्षित जीवन जी रहे व्यक्तियों की पीड़ा में अत्यधिक कमी लाए हैं.
कोविड-19 के विरुद्ध ओडिशा में महत्वपूर्ण आयामों में से एक,केआईआईटी डीम्ड विश्वविद्यालय के एक संगठन कलिंगा इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज ओडिशा ने तीन जनजाति बाहुल्य जिलों एवं भुवनेश्वर में स्थित, ओडिशा सरकार की सहायता से, 4 अत्याधुनिक कोविड चिकित्सा की स्थापना की है. इन चिकित्सालयों में 12 सौ मरीजों के उपचार की संयुक्त क्षमता है. केआईएसएस कोविड चिकित्सालय, भुवनेश्वर में जो भारत में प्रथम कोविड चिकित्सालय है, इसमें अत्याधुनिक सुविधाओं सहित 500 बेड हैं साथ ही 500 संकटकालीन देखभाल बेड है. कोविड चिकित्सालयों द्वारा तुरंत देखभाल से हजारों जीवन बच गए हैं.
कोविड-19 सर्वव्यापी महामारी ना केवल एक वैश्विक स्वास्थ्य आपातकालीन संकट है वरन लंबे लॉकडाउन एवं रोजी-रोटी के नुकसान के कारण इसने गंभीर मानवीय संकट पैदा कर दिए हैं. इस भयंकर संकट के समय केआईआईटी एवं केआईएसएस ने बढ़ाए गए लॉकडाउन से जूझते हुए विभिन्न समूहों तक पहुंच बनाई है. जिसमें इस महामारी से पीड़ित 300000 व्यक्तियों से अधिक लोगों को खाद्य सामग्रियों एवं अन्य आवश्यकताओं के वितरण शामिल हैं. इसने मलिन बस्तियों में रहने वाले प्रवासी मजदूरों को अस्थाई पनाह प्रदान किया है.
केआईआईटी एवं केआईएसएस ने सर्वाधिक पीड़ित एवं सर्वहारा वर्ग के व्यक्तियों- विषम लिंगी, स्पोर्ट्स पर्सन, शारीरिक विकलांग, सेक्स वर्कर आदि तक पहुंच बनाई है. इन्हें भत्ते प्रदान कर लॉकडाउन के दौरान सहायता की है. भुवनेश्वर, कटक, पूरी एवं पास के शहरों में अनेक अध्यात्मिक केंद्रों के अन्य कर्मचारियों एवं पुजारियों को 3 माह हेतु खाद्य सामग्रियों एवं अन्य खर्चों हेतु नकदी भी प्रदान की है. इन 2 संस्थानों ने कंधमाल जिले में 40 अनाथालयों, वृद्ध आश्रमों एवं कुष्ठ केंद्रों में फुटकर खर्चों हेतु किराना एवं नगद राशि उपलब्ध कराई है. कोविड-19 सर्वव्यापी महामारी से सर्वाधिक त्रस्त छात्रों के समुदाय को जिनमें प्राथमिक स्तर से पीजी/पीएचडी स्तर तक के छात्रों को उनके अध्ययन में मदद करना शामिल है. इन्होंने ओडिशा के विभिन्न जिलों से आए छात्रों को उनके घरों तक पहुंचाने में न केवल मदद कि वरन अप्रैल से ही अध्ययन सामग्रियों, कपड़े एवं ड्राई फ्रूट भी उपलब्ध कराएं. किशोरियों को सेनेटरी नैपकिन भी उपलब्ध कराएं जोकि केआईएसएस के पुनः खुलने तक जारी रहेगा. प्रोफेसर सामंथा ने नवीन अकादमिक वर्ष तक इन समस्त सुविधाओं को जारी रखने का निर्णय लिया है, जो कि छात्रों की मदद को सर्वोपरि मानते हैं.
प्रधानमंत्री के आमंत्रण ‘आत्मनिर्भर भारत’ से प्रेरित केआईएसएस में कोविड-19 सर्वव्यापी महामारी के दौरान वोकेशनल स्किल सेंटर का विवेचन किया है जो कि एक मध्यम आकार के उद्योग के स्तर समान है. इसमें व्यवसाय की 25 प्रकार के विभिन्न उत्पाद बनाए जा रहे हैं. इन उत्पादों को केआईआईटी की इनहाउस आवश्यकताओं को पूर्ण करने के साथ ही डिस्ट्रीब्यूटर चैनल द्वारा भी विपणन किया जा रहा है. केंद्र से बिक्री के बढ़ने के साथ ही आने वाले वर्षों में केआईआईटी एवं केआईएसएस के आत्मनिर्भर होने की आशा की जा सकती है. एक अद्वितीय मानवीय पहल के अंतर्गत डीम्ड विश्वविद्यालय केआईआईटी ने ओडिशा में कोविड मृतकों के बच्चों को निशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराए जाने का निर्णय किया है. यह सुविधा अकादमिक सत्र 2020-21 एवं 2021-22 दो वर्षों हेतु उपलब्ध कराई जाएगी.
सर्वव्यापी महामारी के चलते प्रथम 6 माहो में बहुत से बच्चे अनाथ हो गए हैं. गरीब वर्ग के बच्चे यौन शोषण एवं देह व्यापार के शिकार हो सकते हैं. केआईआईटी एवं केआईएसएस लगभग 100 ऐसे अनाथ को गोद लेकर इनकी देखभाल कर रहा है एवं परिवार के आकार अनुसार प्रति माह ₹5000 से ₹20000 तक भत्ता उपलब्ध करा रहा है. जब भी अकादमिक संस्थान पुनः खुलेगा इन्हें निशुल्क शिक्षा एवं तदन्तर उच्च अध्ययन पूर्ण करने की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी.
कोविड के मृतकों के बच्चों को एवं अनाथों को सहायता प्रदान करने का कारण इस संस्थान के संस्थापक प्रोफेसर सामंथा के स्वयं के बचपन के अनुभव से प्रेरित है, जिन्होंने 4 वर्ष की छोटी आयु में पिता को खो दिया था और भूख एवं गरीबी में बचपन बिताया था. इनका सदैव यह प्रयास रहता है कि ऐसा कोई भी बच्चा माता-पिता की असमय मौत या गरीबी के कारण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित ना रह जाए.